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Friday, 29 December 2017

क्या है आध्यात्मिक चमत्कार ओर क्या है सनातन

उदय किसी का अचानक नही होता सूर्य देव भी धीर धीर निकलते है ओर ऊपर उठते है

धैर्य ओर तपस्या जिसमे है वही संसार को प्रकाशित कर सकता है  उसी तरह जो अपने आपको आध्यात्मिक मे पुरी तरह ढाल लेता है या पुणे रूप से समर्पित कर देता है उसके लिए समय सीमा महत्व नही रखती आध्यात्मिक मे आने के लिए या साधना, उपासना करने के लिए कोई समय सीमा नही होती इस दुनिया मे ग्यान का अथाह भण्डार है उसको समझने के लिये आज कलियुग के सौ जन्म भी कम पड़ते है पर अगर गुरु ओर इष्ट की कृपा मिल जाये तो वो चूटकीयो मे हल हो जाते है ओर आध्यात्मिक साधना मे सफलता ओर पुणे ग्यान अर्जित किया जा सकता है आज किसी से भी पुछो की आप आध्यात्मिक मे क्यू आना चाहाते है तो उनका जवाब होता है कि हम अपनी सुरक्षा ओर मिलने वाले की सुरक्षा के लिए आना चाहाते है ओर कोई मोक्ष पाने के लिये आना चाहाते है कोई परी देवी अप्सरा देवी यक्षिणी को पाने की चाहत मे आना चाहाते है क्या आध्यात्मिक का मतलब यही रह गया है क्या आप व्रत उपवास करते हो उसका असली मतलब क्या है क्या किसी को पता है व्रत उपवास आप कर रहे हो ओर भगवान का नाम लगा दोगे की आज उनका दिन है इसलिए मे उपवास रखता हुं या रखती हुं क्या भगवान ने स्वयंम कहाँ है क्या मेरे लिए व्रत उपवास रखो ॠतूं चेंज होती है हर नवरात्रि से तो उपवास आप अपने शरीर के लिये रखते हो व्रत ओर उपवास का मतलब यही है कि आप भूखे रहकर किसी भूखे को खाना खिलाना अपने हिस्से का ना की भगवान पर अहसान करना वो साधना कर लेगे वो मंत्र जप लेंगे उससे क्या हासिल होगा अरे एक बार अपनी अंतरआत्मा को साक्षी मानकर जप कर तो देखो उसकी ऊर्जा को महसूस कर के तो देखो पहले ही फायदे की सोचना यानी पक्का दुकानदार बनना अब सोचो कहाँ है आप का आध्यात्मिक ओर आध्यात्मिक मे केवल मोक्ष की चाह रखने वाले से हमारा यही कहना है कि बिना परोपकार मोक्ष संभव नही है यही सत्य है बाकी आज कल यहाँ वाटसअप ओर फेसबुक ओर गूगल पर घणा ग्यानी महात्मा है अगर इन सभी से भी आप ग्यान लेना चाहो तो शोक से लिजिये पर ग्यान लेने से पहले इन से फेश टू फेश मिल तो लिजिये वहाँ आपकी आत्मा से सवाल किजिये की ये आपको ग्यान दे सकता है या क्या मे सही जगह आया हुं थोडा ध्यान लगाईये अपनी आत्मा पर ओर अपने कुछ क्या काफी सवालो के जवाब सामने वाले के बारे मे आपको मिल जायेगे यही सत्य है बाकी मंदारी तो हर गली मे तमाशा दिखाता है वो आपको सभी जगह मिलेगे हमे इतना ग्यान तो नही पर आध्यात्मिक के नाम पर जो लूट खसोट होती है उसके जिम्मेदार आप स्वयंम है आटा छानकर रोटी बनाते हो पानी छानकर पीते हो कच्चे को पकाकर खाते हो फिर भी आप ठगे जाते है क्यू क्योंकि वहाँ आपका लोभ आप पर हावी था यानि आप कुछ नही बहुत कुछ पाने की आशा मे काफी कुछ गवा बैठते हो खैर हमारा काम है जो राह से भटक चूके है उनको राह दिखाना चमत्कार दिखाना नही कुछ भी भेजो कुछ भी जपो हमेशा उसमे गोपनीयता बनाकर रखे वो आपके हित मे है अपनी कमजोरी का बखान हर जगह ना करे उतना ही अच्छा है जहाँ तक हो सके सनातन धर्म को मजबूत करे ।।
ओर हाँ शायद कल बेवडेबाजो की इकतीस 31, तारीख है जिसको शायद हमारे सभी भाई धूमधाम से मनाते है जबकि सबका पता होता है कि अपना हिन्दू नववर्ष ये नही है फिर भी कुछ मजे के ख़ातिर हजारो अपने ही धर्म को दाव पर लगाते है कोई पच्चीस तारीख को प्लास्टिक के पोधो को पुज रहा था खैर जाने दिजिये हम क्या कर सकते है जब कोई अपनी आत्मा से सवाल नही पुछता चमत्कार कही नही है चमत्कार आपके अंदर ही है अपने अन्दर की ऊर्जा को जाग्रात करे चमत्कार ध्यान मंत्र ओर आध्यात्मिक की असलियत सभी आपके सामने होगी बस नादान बालक की कलम से आज इतना ही बाकी फिर कभी ,ज्यादा कहाँ हो ओर बुरा लगा हो तो माफी चाहाते है अच्छा लगा हो तो शेयर किजिये वरना नजरअंदाज करये बडी वाली कृपा होगी हम पर ।।
जो झुकना जानता है निश्चित ही वो झुकाना भी जानता है,  ।
धैर्य वो ओर तपस्या ही आपकी अग्निपरीक्षा है ।।

जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश ।।

Thursday, 28 December 2017

असली सनातन है क्या ओर क्या है आध्यात्मिक

जब तक कोई सनातनी अपने अंदर से सनातनी होकर भी जाति भेद रंग भेद छुआ छूत नही मिट सकता जब तक सनातन धर्म भी उसको स्वीकार करने मे असमर्थ है सनातन आध्यात्मिक उससे कई ऊपर है क्योंकि जहाँ सभी भेद मिट जाते है पर यहाँ आजकल जाति का बोल बाला है पता नही क्यू वो आध्यात्मिक को अपनी जाति से चलाना चाहाते है जबकि उनको पता होता है आध्यात्मिक मे जाति भेद की आवश्यकता नही है पर फिर भी आज भी सनातन धर्म ऐसे कई सिद्ध है जो आम आदमी की तरह
किसी को कुछ भी काम करो या राह दिखाये तो उसको यही सोचना होता है कि ये राह दिखा रहा है तो उस पर हम क्यू चले यही चला जाये।।।।
*।। जैसे थाली मे खाना परोस दिया हो ओर कोई अपने हाथ से नही वो भी भोजन बनाने वाला ही खिलाये गजब है।।*
सारी दुनिया एक सी नही होती है पर आध्यात्मिक मे रहने वाले के लिये सनातन ही उसकी पुरी दुनिया होती है हमसे कोई सहमत हो या नही हम किसी से नाराज नही ओर जरूरी नही कि आप सभी हमारी बात पर गौर करे गुरु प्रथा या गुरु क्रिया गुरु गादी गुरु स्थान भी कोई चीज होती है कम से कम उनका अनुसरण तो करे गुरू को आत्मा से अपनावो आत्मा जाति भेद नही देखती कोई कुछ कार्य देता है तो उसको पुणे विश्वास ओर आस्था से किजिये उसमे सफलता जरूर मिलेगी,
*'बिना मिले किसी के बारे मे कोई राय कायम मत किजिये ओर शब्दो का कोपी हो सकती है पर आचरण की नही यही सत्य है,*
बाकी आप सभी आध्यात्मिक विद्धवान है आप सभी के सामने हम कुछ भी नही पर आजकल ज्योतिष ओर मंत्र ज्योतिष ऐस्ट्रो ,तांत्रिक, मांत्रिक साधक भक्त के रूप मे इनके बदनाम करने वाले कई जगह सफेदपोश घुम रहे है आप पहले उनको परखे फिर आगे कोई बात करे ओर जिनकी जीविका ही आध्यात्मिक पर है तो उनको उचित मेहनताना दिया जाना चाहिए चाहे वो ऐस्ट्रो हो या हो कुण्डलीज्योतिष मंत्रज्योतिष या तांत्रिक मांत्रिक यात्रिक या हो भक्त या साधक उपासक पर किसी ओर का रोना इनके सामने रोया जाये यह भी उचित नही बीमार होने पर डाक्टर की फीस होती है तो ये अपना समय ओर उर्जा आपके लिए खर्च करते है ओर आपका काम होने के बाद आपके लिये ये बुरे हो जाते है ओर हम आप सभी आध्यात्मिक वालो से प्रार्थना करना चाहते है कि आध्यात्मिक उर्जा वहाँ खर्च करे जो आपकी बात मानते हो जहाँ बात नही मानी जाती वो केस हाथ मे लेना ही नही चाहिए पर आज का रोगी यही चाहाता है कि हलवा भी वो बनाये ओर हमे खिलाये भी वो ही बस सीधा हलवा उनके मुंह मे डाल दो वो लेटकर खाये जय हो ऐसे संतो की चलो कोई ना जाने दो आगे उनके कर्म है सभी को चमत्कार चाहिए धैर्य नही यही आज का सच है ,नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी बाकी माँ बाबा की इच्छा ओर कृपा हमारी बात अच्छी लगे हो तो शेयर करे बिना कांट छांट के बाकी किसी को बुरी लगी हो तो नजरअंदाज करे इस नादान बालक पर कृपा करे।।।

जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश ।।।
🙏🏻🌹🌹🌹🌹🌹🙏🏻

Wednesday, 27 December 2017

क्या है कर्म ओर क्या है तंत्र

आजकल तंत्र खेल हो गया दुनिया के लिये ओर गुरु नाम तो केवल वचनो के लिए रह गया है खुद नही मार सके चडियाँ पर दुसरो को कहेगे की चडियाँ ऐसे मारी जाती है आध्यात्मिक मे सभी को बना बनाया हलवा चाहिए की हमे सब सीधा मिल जाये अरे अरे सामाग्री बता रहे है भाई ओर निधी भी बता रहे है खुद बना लो ओर खाओ कोन मना करता है आदमी रोता हुआ आता है कि प्रभु हमे कई जनो ने ठगा है
माँ हिगंलाज माण्डलगढ़
अरे यार अब हम उसके कैसे समझाये की ये तेरे कर्म भी हो सकते है अपने कर्मो को कोई नही देखता अरे यहाँ सभी दुखी है कोई तन से कोई मन से तो कोई पैसो से तो कोई घर से तो कोई पडोसी से दुखी है ओर तो ओर कोई दुसरो के सुख से दुखी है आपको किसी ओर ने ठगा है हमने नही ओर हम कोई मंदिर का घण्टा तो है नही जो उसको हर कोई घण्टा समझ कर बजाने आ जाता है जब तक किसी का वक्त नही आता कोई किसी से मिल नही सकता ओर मिलना मिलाना सब उसके हाथ मे है आपका वक्त आयेगा तो सही आदमी आपसे मिलेगा पर याद रखे किसी चमत्कार की आशा मे अपना किमती समय ओर धन लुटवाने का शौक है तो सडको पर ओर आजकल तो घर घर मे काफी तांत्रिक मिल जायेगे अपने घर को लूटने से बचाना है तो पहले अपनी सोच बदलो की आपकी सोच है कहाँ ओर आप हो कहाँ जिन्न, प्रेत ,यक्षिणी, अप्सरा ,बीर ,कलवा ,क्या तूम्हारे लिये ही है क्या जो याद करते ही आ जायेगे सब सरल नही होता गुरू बिना ग्यान नही ओर गुरु बिना कोई साधना नही किसी को अपना गुरु बनाने से पहले अपनी आत्मा को अपना गुरू बनाओ ताकि आपको सही दिशा ओर सही गुरु मिले क्योंकि आत्मा से आत्मा सा सम्बन्ध  होता है ओर अपने धर्म के बारे मे पुणे जानकारी पहले प्राप्त करे ये क्या है कैसे है अधुरी जानकारी जी का जंजाल बन सकती है आइंदा ध्यान रखे कोई भी बेतुका सवाल पुछने से पहले उसके बारे मे पुणे जानकारी प्राप्त करे कि क्या ये सही है बाकी अपने इष्ट को भेजो मस्त रहो भटकाव कई चीजो को जन्म देता है इसलिए अपने भटकाव को अपने इष्ट ओर गुरु चरणो मे समर्पित करे ओर उनके द्वारा दिये गये मंत्र ओर विधान की ही समीक्षा करे ओर पुनश्चरण करे आपके लिए उतना ही अच्छा है बाकी माँ बाबा की कृपा ओर उनकी इच्छा आज के लिए सिर्फ इतना ही नादान बालक की कलम से बाकी फिर कभी ।।

जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश ।।
🙏🏻🌹🌹🌹🌹🌹🙏🏻

Monday, 25 December 2017

धारण करें षोडशी यन्त्र और रहें सुखी- संपन्न

धारण करें षोडशी यन्त्र और रहें सुखी- संपन्न

षोडशी [त्रिपुरसुन्दरी ]दश महाविद्या में से एक प्रमुख महाविद्या है और श्री कुल की अधिष्ठात्री हैं ,
इनकी साधना से धर्म-अर्थ-काम और मोक्ष चारो पुरुषार्थो की प्राप्ति होती है ,ऐसा कुछ भी नहीं जो ये देने में सक्षम नहीं ,ब्रह्मा-विष्णु-रूद्र और यम चारो इनके अधीन हैं ,ये अन्य साधनाओ में भी पूर्णता देने में समर्थ हैं |दुःख-दैन्य-किसी प्रकार की न्यूनता ,अभाव ,पीड़ा ,बाधा सभी को एक ही बार में समाप्त करने में सक्षम हैं ,इनकी साधना से कायाकल्प भी होता है ,यह सौंदर्य ,पुरुषत्व,हिम्मत, साहस ,बल ,ओज ,भी देती हैं |
षोडशी यन्त्र भगवती त्रिपुरसुंदरी [श्री विद्या ] का यन्त्र है ,जिसमे उनका अपने परिवार देवताओं के साथ वास होता है ,यह यन्त्र विशिष्ट मुहूर्त में और श्री विद्या साधक द्वारा ही निर्मित होता है ,तत्पश्चात प्राण प्रतिष्ठा ,मंत्र जप और हवन से इसे उर्जिकृत किया जाता है ,,यन्त्र धारण से शारीरिक उर्जा ,धन-संमृद्धि-संपत्ति ,साधन सम्पन्नता ,हिम्मत, साहस, बल, ओज, पौरुष, प्राप्त होता है , ,आय के नए स्रोत बनते है ,अकस्मात् धन प्राप्ति की सम्भावना बनती है, दुःख-दारिद्र्य .रोग-शोक, समाप्त होते हैं ,सुरक्षा प्राप्त होती हैं ,किसी प्रकार की अशुभता का शमन होता है ,सौभाग्य वृद्धि होती है ,ग्रह बाधा का शमन होता है ,रुकावटें दूर होती हैं ,विजय प्राप्त होती है ,यश-मान सम्मान-प्रतिष्ठा ,पुत्र पौत्रादि की उन्नति प्राप्त होती है ,कलह -कटुता का प्रभाव कम होकर खुशहाली प्राप्त होती है ,मानसिक शांति प्राप्त होती है |
यदि आप पर या घर पर नकारात्मक उर्जाओं का प्रभाव है ,दुःख-दरिद्रता से ग्रस्त हैं ,बनते काम बिगड़ रहे हैं ,रोग-शोक-कलह बढ़ गए हों ,आर्थिक-व्यावसायिक समस्याएं उत्पन्न हों ,अनेकानेक समस्याएं घर-परिवार में उत्पन्न हों तो एक बार अवश्य किसी अच्छे साधक से भोजपत्र पर निर्मित षोडशी यन्त्र चांदी के कवच में धारण करें |आपकी सारी समस्याएं क्रमशः दूर होने लगेंगी |यह अनेक बार हमारे द्वारा अनुभूत और परीक्षित है |हमने अनेकों को विभिन्न समस्याओं में इसे धारण कराया है और अब तक शत-प्रतिशत सफलता मिली है |बिगड़े बच्चों को धारण कराने से उनमे सुधार आया है जो की परिवार के सम्मान को ठेस लगाकर गलत कार्य की और झुके थे ,व्यावसायिक उतार-चढ़ाव से ग्रस्त लोगों को धारण करने पर उनके कार्य-व्यवसाय में स्थिरता प्राप्त हुई है ,पारिवारिक समस्याओं में उत्तम परिणाम प्राप्त हुए हैं |प्रत्येक क्षेत्र में सफलता बढ़ी है |घर के कलह-तनाव को दूर करने में मदद मिली है ,आया के नए स्रोत बनाने अथवा परीक्षा-शिक्षा में सफलता बढ़ी है |अतः यह अनुभूत प्रयोग है |यह अगर श्री विद्या के सिद्ध साधक द्वारा स्वयं बनाया जाता है और षोडशी मंत्र से अभिमंत्रित किया जाता है तो इससे अद्भुत परिणाम मिलते हैं |आश्चर्यजनक रूप से स्थितियां नियंत्रण में आती हैं और लाभ प्राप्त होते हैं जीवन के हर क्षेत्र में |

Sunday, 24 December 2017

हर संकट का तोड है यह गुप्त मंत्र विधान

आज सर्व संकट बाधा मुक्ति मंत्र विधान कहते है हर बाधा सकंट से मुक्ति दिलाए बाबा हनुमान जी का यह मंत्र

सभी अड़चनों से बचने के लिए रोज पढ़ें बाबा बजरंग बली का मंत्र

बार-बार परेशानी व कार्यों में रुकावट हो तो हर मंगलवार बाबा हनुमानजी के मंदिर में जाकर गुड एवं चने का प्रसाद चढ़ाना चाहिए। उस प्रसाद को वहीं मंदिर में ही बांट देना चाहिए। रोज सुबह निम्न मंत्र का जाप अवश्य करें-

आदिदेव नमस्तुभ्यं सप्तसप्ते दिवाकर!
त्वं रवे तारय स्वास्मानस्मात्संसार सागरात!!

उपरोक्त उपाय से परेशानियों एवं बाधाओं से आश्चर्यजनक रूप से मुक्ति मिलने लगेगीबात आपके विश्वास ओर आस्था की है ऐसा कोई कार्य नही है जो बाबा हनुमान जी के लिए असंभव है करके देखये रिज़ल्ट आपको पुरा मिलेगा सौ प्रतिशत,, 

क्या करे क्या ना करे गुप्त नवरात्रि मे

आज कुछ नवरात्रि मंत्र विधान कहते है नवरात्रि में करें सिद्ध मंत्रों के जाप ओर भौतिक ओर आध्यात्मिक को दे नये आयाम,,
आज कल आध्यात्मिक के साथ सभी को भौतिक सुख भी चाहिए तो गुप्त नवरात्रि मे ये निधी विधान करे...
नवरात्रि में विधि-विधान से इन सिद्ध मंत्रों के जाप करना चाहिए : -

* दुर्गा मंत्र - ॐ ह्रीं दुं दुर्गाय नमः।

- दुर्गा मंत्र का फल इस प्रकार है- सभी प्रकार की सिद्धियों के लिए इस मंत्र का प्रयोग किया जाता है। शक्तिमान, भूमिवान बनने के लिए इस मंत्र का प्रयोग कर लाभ पा सकते हैं।

* सरस्वती गायत्री मंत्र

ॐ ऐं वाग्देव्यै च विद्महे कामराजाय धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात्‌।

- उपरोक्त मंत्र के जाप से विद्या की प्राप्ति में सफलता मिलती है।

* लक्ष्मी गायत्री मंत्र

ॐ महादेव्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि, तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्‌।

- उपरोक्त मंत्र जाप करने से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।

* मां बगुलामुखी मंत्र इस प्रकार है -

ॐ ह्रीं बगुलामुखी सर्व दुष्टानांम्‌ वाचम्‌ मुखम्‌ पद्म स्तंभय जिह्वाम्‌ किल्‌य किल्‌य ह्रीं ॐ स्वाहा।

- यह मंत्र तांत्रिक सिद्ध‍ि प्राप्त करने के लिए ‍किया जाता है।

कोन है जैन तीर्थंकर ओर कोन बनता है जैन.

सभी तीर्थंकरों ने साधारण मनुष्य के रूप में जन्म लिया

क्या हैं तीर्थंकर का अर्थ :-जो देवों और मनुष्य द्वारा पूज्य होते हैं, जो स्वयं तरते हैं तथा औरों को तरने का मार्ग बताते हैं, उन्हें तीर्थंकर कहते हैं। तीर्थंकर जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त होते हैं।जैन धर्म के इन्हीं तीर्थंकरों ने क्रमिक रूप से जैन धर्म की आधारशिला रखी। वैसे तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ को ऐतिहा‍‍‍सिक लोग जैन धर्म का संस्थापक मानते हैं और चौबीसवें अंत‍िम तीर्थंकर महावीर को जैन धर्म का संशोधक माना जाता है।.

जैन धर्म के अनुसार सभी तीर्थंकरों ने साधारण मनुष्य के रूप में जन्म लिया और अपनी इंद्रिय और आत्मा पर विजय प्राप्त कर वे तीर्थंकर बने। जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर हुए हैं। तीर्थंकर अर्हंतों में से ही होते हैं।संसार के प्राचीनतम धर्मों में से एक जैन धर्म है। इस धर्म का उल्लेख 'योगवशिष्ठ', 'श्रीमद्‍भागवत', 'विष्णु पुराण', 'शाकटायन व्याकरण', पद्म पुराण', 'मत्स्य पुराण' आदि प्राचीन ग्रंथों में भी जिन, जैन और श्रमण आदि नामों से मिलता है।जैनाचार्यों को जिन, जिनदेव या जिनेन्द्र आदि शब्दों से संबोधित किया जाता है। 'जिन' शब्द से ही 'जैन' शब्द की उत्पत्ति हुई है।'जिन' किसी व्यक्ति-विशेष का नाम नहीं है, वरन जो लोग आत्म-विकारों पर विजय प्राप्त कर लेते हैं, जो अपनी इंद्रियों को वशीभूत कर लेते हैं, ऐसे आत्मजयी व्यक्ति 'जिन' कहलाते हैं। इन्हीं को पूज्य अर्थ में अर्हत, अरिहंत अथवा अरहन्त भी कहा जाता है।क्या हैं तीर्थंकर का अर्थ :-जो देवों और मनुष्य द्वारा पूज्य होते हैं, जो स्वयं तरते हैं तथा औरों को तरने का मार्ग बताते हैं, उन्हें तीर्थंकर कहते हैं। तीर्थंकर जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त हो लेकिन आजकल वो जैन है कहाँ क्या आप अपने धर्म पर अडिग है नही क्यू आप अपने पंथ से हट रहे हो जबिक जैन धर्म भी हिन्दू सनातन धर्म एक शाखा है पर आजकल जैनअपने आपको अल्पसंख्यक मान बैठा है अपने विकारो को त्याग करने की बजाय उनको अपना बैठा है क्या कारण है क्या जैन भौतिक विलास या सम्पति बनाने के लिए रह गया है तो जो तीर्थंकर थे वो क्या थे उनके आचरण ओर उपदेशो का क्या हुआ क्या आज वो शक्ति नही रह गये है क्या जो आज सब नाम ओर पैसो की चाहत रखने लग गयै है जैन, जिन,  मतलब जो सभी विकारो से दुर अब ओर क्या कहे बस आज इतना ही नादान बालक की कलम से बाकी फिर कभी सभी तीर्थंकरो को शंत शंत प्रणाम ओर सच्चे जैन को हमारा नमन जय हो नाकोडा भैरव जी की जय हो बाबा आदिनाथ पार्श्वनाथ की.
आदमी अपने सत्कर्मो से महान बनता है यही सत्य है बाकी तीर्थ करो अनके कोई फर्क नही पडता यही सत्य है..... 

Sunday, 17 December 2017

दुर्गा शाबर मन्त्र

दुर्गा शाबर मन्त्र

“ॐ ह्रीं श्रीं चामुण्डा सिंह-वाहिनी।
बीस-हस्ती भगवती,
रत्न-मण्डित सोनन की माल।
उत्तर-पथ में आप बैठी,
हाथ सिद्ध वाचा ऋद्धि-सिद्धि।
धन-धान्य देहि देहि, कुरु कुरु स्वाहा।”

विधिः- उक्त मन्त्र का सवा लाख जप कर सिद्ध कर लें। फिर आवश्यकतानुसार श्रद्धा से एक माला जप करने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं। लक्ष्मी प्राप्त होती है, नौकरी में उन्नति और व्यवसाय में वृद्धि होती है।

धन सम्बन्धी परेशानी हेतु

धन सम्बन्धी परेशानी हेतु

यदि आप भी किसी ग्रह बाधा से पीडि़त हैं और आपके पर्स में अधिक समय तक पैसा नहीं टिकता
तो निम्र उपाय करें- किसी भी शुभ मुहूर्त या अक्षय तृतीया या पूर्णिमा या दीपावली या किसी अन्य मुहूर्त में सुबह जल्दी उठें। सभी आवश्यक कार्यों से निवृत्त होकर लाल रेशमी कपड़ा लें। अब उस लाल कपड़े में चावल के 21 दानें रखें। ध्यान रहें चावल के सभी 21 दानें पूरी तरह से अखंडित होना चाहिए यानि कोई टूटा हुआ दान न रखें। उन दानों को कपड़े में बांध लें। इसके बाद धन की देवी माता लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजन करें। पूजा में यह लाल कपड़े में बंधे चावल भी रखें। पूजन के बाद यह लाल कपड़े में बंधे चावल अपने पर्स में छुपाकर रख लें। ऐसा करने पर कुछ ही समय में धन संबंधी परेशानियां दूर होने लगेंगी।

आपका भोजन और ग्रहों का प्रभाव

आपका भोजन और ग्रहों का प्रभाव

मनुष्य के जीवन और पोषण के लिए भोजन एक आवश्यक अवयव है ,इसके बिना जीना संभव नहीं है |जन्म से लेकर मृत्यु तक इसके लिए मनुष्य सदैव प्रयासरत रहता है |मनुष्य के साथ ही पूरी पृथ्वी पर पाए जाने वाले प्रत्येक वस्तु पर ग्रहों का प्रभाव पड़ता है ,किसी पर किसी ग्रह का कम प्रभाव तो किसी पर किसी ग्रह का अधिक प्रभाव पड़ता है ,जबकि ग्रहों की रश्मियाँ सब पर बराबर ही पड़ती है |ऐसा इसलिए होता है की सभी चीजों में ग्रह रश्मियों की अवशोषण क्षमता भिन्न प्रकार की होती हैं ,जिससे कोई किसी ग्रह की अधिक रश्मि अवशोषित करता है कोई कम |इस प्रकार भोजन के अवयवों पर पड़ने अथवा अवशोषित होने वाली ग्रहों की रश्मियों-प्रभावों का संतुलन अगर देख कर हम अपना भोजन व्यवस्थित करें तो काफी हद तक ग्रहों का प्रभाव नियंत्रित और संतुलित किया जा सकता है |इसके लिए हमे किस दिन कौन सा भोजन करना चाहिए इसके बारे में हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों (वैज्ञानिकों) ने बहुत ही सरल ढंग से जन साधारण के कल्याण के लिए किस दिन कौन सा भोजन खाना चाहिए इसका निर्धारण किया था जिसे आज जो भुलते जा रहे है। यदि निम्न सामान्य बातों पर थोडा ध्यान दे लें तो हम काफी लाभ उठा सकते हैं और ग्रहों के प्रभाव को नियमित कर सकते हैं |

01. सोमवार - इस दिन प्रातः काल के समय दुध, चावल, शक्कर के मिश्रण से निर्मित खीर का भोजन करे। इस दिन खीर खाने से चंद्रमा के अशुभ प्रभाव कम होता है और शुभ प्रभाव बढ़ता है।यह भोजन चन्द्रमा के बल में वृद्धि करता है |

02. मंगलवार - इस दिन प्रातः काल के समय मसूर की दाल भोजन के रूप में लेे। इस दिन मंसूर की दाल खाने से मंगल के अशुभ प्रभाव कम होता है और शुभ प्रभाव बढ़ता है।मसूर के सेवन से मन जाता है की मंगल के प्रभाव प्राप्त होते है और उसके बल में वृद्धि होती है |

03. बुधवार - इस दिन प्रातः काल के समय हरी सब्जी,मूंग की डाल आदि भोजन के रूप में लेे। इस दिन हरी सब्जी जैसे पालक, चौलाई, हरी पत्तेदार सब्जी खाने से बुध के अशुभ प्रभाव कम होता है और शुभ प्रभाव बढ़ता है।

04. गुरूवार - इस दिन प्रातः काल के समय खिचड़ी (चावल, पीली हल्दी, नमक) भोजन के रूप में लेे। इस दिन खिचड़ी खाने से गुरू के अशुभ प्रभाव कम होता है और शुभ प्रभाव बढ़ता है।इसी प्रकार इस दिन चने के दालके सेवन से भी गुरु को बल मिलता है |

05. शुक्रवार- इस दिन प्रातः काल के समय दुध, चावल, शक्कर के मिश्रण से निर्मित खीर का भोजन करे। इस दिन खीर खाने से चंद्रमा एवं शुक्र ग्रहों के अशुभ प्रभाव कम होता है और शुभ प्रभाव बढ़ता है।

06. शनिवार - इस दिन भोजन में उड़द,सरसों और तिल का प्रयोग शनि के प्रभाव में वृद्धि करता है और उसे शक्ति प्रदान करता है ,जिससे उसकी उग्रता का शमन होता है ,अशुभ प्रभाव कम होता है और शुभ प्रभाव बढ़ता है।

07. रविवार - इस दिन भोजन में नमक का प्रयोग नही करना चाहिए। इस दिन बिना नमक का भोजन करने से रवि के अशुभ प्रभाव कम होता है और शुभ प्रभाव बढ़ता है |
उपरोक्त तथ्य एक सामान्य नियम है जो ग्रहों के बल को बढ़ाते हैं ,जिससे उनकी उग्रता कम होती है और यदि उनके कमजोर होने से हानि हो रही हो तो उसमे कमी आती है |यद्यपि यहाँ यह विचारनीय अवश्य हो सकता है की ,इनमे से यदि कोई ग्रह किसी के लिए अशुभ हो तो उसके बल में वृद्धि होने से संभव है कुछ दिक्कतें उत्पन्न हों ,अतः योग्य विद्वान् से परामर्श भी लें तो बेहतर होगा |यह नियम सभी ग्रहों के बल में वृद्धि के लिए बनाये जाते हैं जिनमे सामयिक आवश्यकतानुसार परिवर्तन संभव होते हैं

अलौकिक गुण हैं नारियल में

अलौकिक गुण हैं नारियल में
हम सभी जानते हैं पूजन कर्म में नारियल का महत्वपूर्ण स्थान है। किसी भी देवी-देवता की पूजा नारियल के बिना अधूरी ही मानी जातीहै।
नारियल खाने से शारीरिक दुर्बलता एवं भगवान को नारियल चढ़ाने से धन संबंधी समस्याएं दूर हो जाती हैं।
यह भी एक तथ्य है कि महिलाएं नारियल नहीं फोड़तीं। नारियल बीज रूप है, इसलिए इसे उत्पादन (प्रजनन) क्षमता से जोड़ा गया है। स्त्रियों बीज रूप से ही शिशु को जन्म देतीहै और इसलिए नारी के लिए बीज रूपी नारियल को फोड़ना अशुभ माना गया है। देवी-देवताओं को श्रीफल चढ़ाने के बाद पुरुष ही इसे फोड़ते हैं। नारियल से निकले जल से भगवान की प्रतिमाओं का अभिषेक भी किया जाता है।
नारियल को श्रीफल भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है, जब भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर अवतार लिया तो वे अपने साथ तीन चीजें- लक्ष्मी, नारियल का वृक्ष तथा कामधेनु लाए।इसलिए नारियल के वृक्ष को कल्पवृक्ष भी कहते है। नारियल में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ही देवताओं का वास माना गया है।श्रीफल भगवान शिव का परम प्रिय फल है। नारियल में बनी तीन आंखों को त्रिनेत्र के रूप में देखा जाता है।
नारियल की तासीर ठंडी होती है। ताजा नारियल कैलोरी से भरपूर होता है। इसमें अनेक पोषक तत्व होते हैं। नारियल के कोमल तनों से जो रस निकलता है उसे माड़ी (नीरा) कहते हैं उसे लज्जतदार पेय माना जाता है। सोते समय नारियल पानी पीने से नाड़ी संस्थान को बल मिलता है तथा नींद अच्छी आतीहै।
जिन शिशुओं को दूध नहीं पचता उन्हें दूध के साथ नारियल पानी मिलाकर पिलाना चाहिए। शिशु को डि-हाइड्रेशन होने पर नारियल पानी में नीबू का रस मिलाकर पिलाएं। नरियल का पानी हैजे में रामबाण औषधि है।
नारियल की गिरी (खोपरा) खाने से कामशक्ति बढ़ती है। मिश्री के साथ खाने से गर्भवती स्त्री की शारीरिक दुर्बलता दूर होती है तथा बच्चा सुंदर होता है। सूखी गिरी खाने से आंख की रोशनी तथा गुर्दों के शक्ति मिलती है। पौष, माघ और फाल्गुन माह में नियमित सुबह गिरी के साथ गुड़ खाने से वक्षस्थल में वृद्धि होती है, शारीरिक दुर्बलता दूर होतीहै।
इसके पानी में पोटेशियम और क्लोरीन होता है जोi मां के दूध के समान होता है। नारियल कठिनता से पचने वाला, वातशोधक, विष्टïम्भी, पुष्टिïकारक, बलवर्धक और वात-पित्त व रक्तविकार नाशक होता है।
श्रीफल शुभ, समृद्धि, सम्मान, उन्नति और सौभाग्य का सूचक है। सम्मान करने के लिए शॉल के साथ श्रीफल भी दिया जाता है। सामाजिक रीति-रिवाजों में भी नारियल भेंट करने की परंपरा है। जैसे बिदाई के समय तिलककर नारियल और धनराशि भेंट की जाती है। रक्षाबंधन पर बहनें भाइयों को राखी बांध कर नारियल भेंट करती हैं और रक्षा का वचन लेती हैं।..................................

तांत्रिक सिद्धि में कुंआरी कन्या क्यों?

तांत्रिक सिद्धि में कुंआरी कन्या क्यों?

तंत्र शास्त्र के बारे में बहुत-सी भ्रांतियां प्रचलित हैं। विशेषत: पचं 'मकार' साधना को लेकर, जिसमें मत्स्य, मदिरा, मुद्रा मैथुन आदि का वर्णन है। इसी कारण कुंआरी कन्या तथा मैथुन पर समय-समय पर आक्षेप लगते रहे हैं।

वस्तुत: इन शब्दों का अर्थ शाब्दिक न होकर गुप्त था जिसमें कुंआरी कन्या का महत्व नारी में अंतरनिहित चुंबकीय शक्ति (मैग्नेटिक फोर्स) से था।

नारी जितना पुरुष के संसर्ग में आती है वह उतनी ही चुंबकीय शक्ति का क्षरण करती जाती है। चुंबकीय शक्ति ही आद्याशक्ति है जिसे अंतर्निहित करके काम शक्ति को आत्मशक्ति में परिवर्तित किया जाता है। यह शक्ति दो केंद्रों में विलीन होती है।

प्रथमत: मूलाधार चक्र में, जहां से यह ऊर्जा जननेंद्रिय के मार्ग से नीचे प्रवाहित होकर प्रकृति में विलीन हो जाती है और यदि यही ऊर्जा भौंहों के मध्य स्‍थि‍त आज्ञा चक्र से जब ऊपर को प्रवाहित होती है तो सहस्रार स्‍थि‍त ब्रह्म से एकीकृत हो जाती है।

अत: कुंआरी कन्या का प्रयोग तांत्रिक उसकी शक्ति की सहायता से दैहिक सुख प्राप्त करने हेतु नहीं, ‍अपितु उसे भैरवी रूप में प्रतिष्ठित करके ब्रह्म से सायुज्य प्राप्त करने हेतु करता है।
ये भैरवी क्रिया वाम मार्गी क्रिया तामसिक है इसके पीछे जो गलत धारण है उसको दिमाग से निकाल दे

जानये तंत्र साधना में नारी क्यों है जरूरी...

तंत्र साधना में नारी क्यों है जरूरी...

ऋग्वेद के नासदीय सूक्त (अष्टक 8, मं. 10 सू. 129) में वर्णित है कि प्रारंभ में अंधकार था एवं जल की प्रधानता थी
और संसार की उत्पत्ति जल से ही हुई है। जल का ही एक पर्यायवाची 'नार' है।

सृजन के समय विष्णु जल की शैया पर विराजमान होते हैं और नारायण कहलाते हैं एवं उस समय उनकी नाभि से प्रस्फुटित कमल की कर्णिका पर स्थित ब्रह्मा ही संसार का सृजन करते हैं और नारी का नाभि से ही सृजन प्रारंभ होता है तथा उसका प्रस्फुटन नाभि के नीचे के भाग में स्थि‍त सृजन पद्म में होता है।

सृजन की प्रक्रिया में नारायण एवं नारी दोनों समान धर्मी हैं एवं अष्टकमल युक्त तथा पूर्ण हैं जबकि पुरुष केवल सप्त कमलमय है, जो अपूर्ण है। इसी कारण तंत्र शास्त्र में तंत्रराज श्रीयंत्र की रचना में रक्तवर्णी अष्ट कमल विद्यमान होता है, जो नारी की अथवा शक्ति की सृजनता का प्रतीक है।

इसी श्रीयंत्र में अष्ट कमल के पश्चात षोडश दलीय कमल सृष्टि की आद्या शक्ति 'चन्द्रा' के सृष्टि रूप में प्रस्फुटन का प्रतीक है। चंद्रमा 16 कलाओं में पूर्णता को प्राप्त करता है। इसी के अनुरूप षोडशी देवी का मंत्र 16 अक्षरों का है तथा श्रीयंत्र में 16 कमल दल होते हैं। तदनुरूप नारी 27 दिन के चक्र के पश्चात 28वें दिन पुन: नवसृजन के लिए पुन: कुमारी रूपा हो जाती है।

यह संपूर्ण संसार द्वंद्वात्मक है, मिथुनजन्य है एवं इसके समस्त पदार्थ स्त्री तथा पुरुष में विभाजित हैं। इन दोनों के बीच आकर्षण शक्ति ही संसार के अस्तित्व का मूलाधार है जिसे आदि शंकराचार्यजी ने सौंदर्य लहरी के प्रथम श्लोक में व्यक्त किया है।

शिव:शक्तया युक्तो यदि भवति शक्त: प्रभवितुं।
न चेदेवं देवो न खलु कुशल: स्पन्दितुमपि।

यह आकर्षण ही कामशक्ति है जिसे तंत्र में आदिशक्ति कहा गया है। यह परंपरागत पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) में से एक है। तंत्र शास्त्र के अनुसार नारी इसी आदिशक्ति का साकार प्रतिरूप है। षटचक्र भेदन व तंत्र साधना में स्त्री की उपस्थिति अनिवार्य है, क्योंकि साधना स्थूल शरीर द्वारा न होकर सूक्ष्म शरीर द्वारा ही संभव है।

भगवान ‍शनि के प्रमुख मंत्र जो आपको दे सुख आपार,

भगवान ‍शनि के प्रमुख मंत्र

ढैया व साढ़ेसाती में लाभ : शनि स्त्रोत, शनि मंत्र, शनि वज्रपिंजर कवच तथा महाकाल शनि मृत्युंजय स्त्रोत का पाठ करने से जिन जातकों को शनि की साढ़ेसाती व ढैया चल रहा है, उन्हें मानसिक शांति, कवच की प्राप्ति तथा सुरक्षा के साथ भाग्य उन्नति का लाभ होता है। सामान्य जातक जिन्हें ढैया अथवा साढ़ेसाती नहीं है,
वे शनि कृपा प्राप्ति के लिए अपंग आश्रम में भोजन तथा चिकित्सालय में रुग्णों को ब्रेड व बिस्किट बांट सकते हैं।

* महामृत्युंजय मंत्र का सवा लाख जप (नित्य 10 माला, 125 दिन) करें-

- ॐ त्र्यम्बकम्‌ यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनं उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्‌।

* शनि के निम्न मंत्र का 21 दिन में 23 हजार जप करें -
- ॐ शन्नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
शंयोरभिश्रवन्तु नः। ऊँ शं शनैश्चराय नमः।

* पौराणिक शनि मंत्र :
- ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌।
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्‌।

* टोटका - शनिवार के दिन उड़द, तिल, तेल, गु़ड का लड्डू बना लें और जहां हल न चला हो वहां गाड़ दें।

Friday, 15 December 2017

सोमवार 18/12/2017 को है सोमवती अमावस्या क्या करे क्या ना करे

18/12/2017 को है सोमवती अमावस्या क्या करे क्या ना करे देखे एक कथा ओर एक विधान,

सोमवती अमावस्या की प्रचलित कथा

एक गरीब ब्राह्मण परिवार था। उस परिवार में पति-पत्नी के अलावा एक पुत्री भी थी। वह पुत्री धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। उस पुत्री में समय और बढ़ती उम्र के साथ सभी स्त्रियोचित गुणों का विकास हो रहा था। वह लड़की सुंदर, संस्कारवान एवं गुणवान थी। किंतु गरीब होने के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था।
एक दिन उस ब्राह्मण के घर एक साधु महाराज पधारें। वो उस कन्या के सेवाभाव से काफी प्रसन्न हुए। कन्या को लंबी आयु का आशीर्वाद देते हुए साधु ने कहा कि इस कन्या के हथेली में विवाह योग्य रेखा नहीं है।
तब ब्राह्मण दम्पति ने साधु से उपाय पूछा, कि कन्या ऐसा क्या करें कि उसके हाथ में विवाह योग बन जाए। साधु ने कुछ देर विचार करने के बाद अपनी अंतर्दृष्टि से ध्यान करके बताया कि कुछ दूरी पर एक गांव में सोना नाम की धोबिन जाति की एक महिला अपने बेटे और बहू के साथ रहती है, जो बहुत ही आचार-विचार और संस्कार संपन्न तथा पति परायण है।
यदि यह कन्या उसकी सेवा करे और वह महिला इसकी शादी में अपने मांग का सिंदूर लगा दें, उसके बाद इस कन्या का विवाह हो तो इस कन्या का वैधव्य योग मिट सकता है। साधु ने यह भी बताया कि वह महिला कहीं आती-जाती नहीं है।
यह बात सुनकर ब्राह्मणी ने अपनी बेटी से धोबिन की सेवा करने की बात कही। अगल दिन कन्या प्रात: काल ही उठ कर सोना धोबिन के घर जाकर, साफ-सफाई और अन्य सारे करके अपने घर वापस आ जाती।
एक दिन सोना धोबिन अपनी बहू से पूछती है कि- तुम तो सुबह ही उठकर सारे काम कर लेती हो और पता भी नहीं चलता।
बहू ने कहा- मां जी, मैंने तो सोचा कि आप ही सुबह उठकर सारे काम खुद ही खत्म कर लेती हैं। मैं तो देर से उठती हूं। इस पर दोनों सास-बहू निगरानी करने लगी कि कौन है जो सुबह ही घर का सारा काम करके चला जाता है।
कई दिनों के बाद धोबिन ने देखा कि एक कन्या मुंह अंधेरे घर में आती है और सारे काम करने के बाद चली जाती है। जब वह जाने लगी तो सोना धोबिन उसके पैरों पर गिर पड़ी, पूछने लगी कि आप कौन है और इस तरह छुपकर मेरे घर की चाकरी क्यों करती हैं?
तब कन्या ने साधु द्बारा कही गई सारी बात बताई। सोना धोबिन पति परायण थी, उसमें तेज था। वह तैयार हो गई। सोना धोबिन के पति थोड़ा अस्वस्थ थे। उसने अपनी बहू से अपने लौट आने तक घर पर ही रहने को कहा।
सोना धोबिन ने जैसे ही अपने मांग का सिन्दूर उस कन्या की मांग में लगाया, उसका पति मर गया। उसे इस बात का पता चल गया। वह घर से निराजल ही चली थी, यह सोचकर की रास्ते में कहीं पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसे भंवरी देकर और उसकी परिक्रमा करके ही जल ग्रहण करेगी।
उस दिन सोमवती अमावस्या थी। ब्राह्मण के घर मिले पूए-पकवान की जगह उसने ईंट के टुकडों से 108 बार भंवरी देकर 108 बार पीपल के पेड़ की परिक्रमा की और उसके बाद जल ग्रहण किया। ऐसा करते ही उसके पति के मुर्दा शरीर में वापस जान आ गई। धोबिन का पति वापस जीवित हो उठा।
इसीलिए सोमवती अमावस्या के दिन से शुरू करके जो व्यक्ति हर अमावस्या के दिन भंवरी देता है, उसके सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। पीपल के पेड़ में सभी देवों का वास होता है। अतः जो व्यक्ति हर अमावस्या को न कर सके, वह सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या के दिन 108 वस्तुओं कि भंवरी देकर सोना धोबिन और गौरी-गणेश का पूजन करता है, उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
ऐसी प्रचलित परंपरा है कि पहली सोमवती अमावस्या के दिन धान, पान, हल्दी, सिंदूर और सुपाड़ी की भंवरी दी जाती है। उसके बाद की सोमवती अमावस्या को अपने सामर्थ्य के हिसाब से फल, मिठाई, सुहाग सामग्री, खाने की सामग्री इत्यादि की भंवरी दी जाती है और फिर भंवरी पर चढाया गया सामान किसी सुपात्र ब्राह्मण, ननंद या भांजे को दिया जा सकता है।

Wednesday, 13 December 2017

क्या है सिद्धि ओर साधक क्या है गुरुइष्ट कृपा..

आध्यात्मिक मे जब तक आप अपने इष्ट ओर गुरु कृपा से पुणे मंत्र विधान ओर क्रिया ना कर लो
मणिकणिका घाट
जब तक किसी का आश्वासन ना दे ना किसी की क्रिया का काट करे क्योंकि गुरु मंत्र आपका बह्मास्त्रा हो सकता है पर परिवार वालो का नही ये शक्तियां अच्छी भी होती है बुरी भी इसलिए आध्यात्मिक या तंत्र मे अगर आप सांसारिक ओर आध्यात्मिक मे जी रहे है तो दो चीजो का आप हमेशा ध्यान रखे पहली अपनी ओर अपनो की सुरक्षा दुसरी अपने घर बार की सुरक्षा अगर गुरु पदाति से कुछ क्रिया या मंत्र मिला हो तो उसका मानसिक जप ओर क्रिया कम से कम महीने मे एक बार अपने घर ओर कारोबारी वाली जगह पर होनी चाहिए या जब तक पहले अपने भौतिक जीवन की सारी सुविधा को पुणे कीजिये फिर आध्यात्मिक मे पुरी तरह से आ जाये ओर जितना सुरक्षा मंत्र ओर गुरु मंत्र का जाप ओर अनुसरण जितना हो सके करे उतना ही अच्छा है बाकी गुगल गुरु कई मिलेगे पर एक से बढकर एक भविष्यवक्ता पर गुरु ग्यान ओर क्रिया कही से नही मिलेगी यही सत्य है,,
भविष्य वाणी जिसकी फेल हो जाये ओर साल दो साल मे जो भविष्यवक्ता हो ,तो कहना ही क्या जो आजकल कई भविष्यवक्ताओ को हम फेसबुक ओर वाटसअप पर देख चूके है कई बंदे ने सौ से ज्यादा भविष्यवाणीयाँ  की होगी पर जिसमे मे से मौसम की जानकारी जी टीवी न्यूज मे होती है वो ही सत्य साबित हुयी इसके अलावा अपनी पोस्ट को जो भविष्यवाणी फेल होते ही खुद रिमुव करते उनका तो कहना ही क्या गुरु कृपा ओर गुरु भक्ति मे रात दिन का फर्क है जो गुरु भक्ति को समझा वो ही शिष्य जो प्रचार मे रहा ओर जो शिष्य नही माने उनको भी गुरु कहे उनका तो क्या कहना बाकी जय हो गूगल ओर वाटसअप गुरुजनो की हम तो आप सभी से इतना ही कहना चाहते है कि बिना सोचे समझे कोई कार्य ना करे अच्छा है वो ही आपके हित मे तंत्र ओर आध्यात्मिक भक्ति उपासना सिद्धि तंत्र क्रिया एक नंगी तलवार है ओर उस पर चलना ना चलना ये आपकी इच्छा है ओर अच्छा करना बुरा करना आपके ऊपर है भुगतान यही करके जाना है भुगत कर या भुगता कर यही सच है नही किया तो कर के देखो साधक पर जिन शक्तियो की कृपा होती है वो शक्तियां उसके ओर उसके परिवार की उसको मानने वालो को जीवन भर रक्षा करती है पर उसमे भी गुरु इष्ट योग क्रिया उतम कार्य करती है यही आध्यात्मिक का पुणे सत्य है गृहस्थ साधक को शाक्त को शक्ति से उर्जा मिलती है अब उस उर्जा का प्रयोग कहाँ करता है ये शाक्त ही अच्छी तरह कर सकता है पर नारी से दुर बुरे विचारो से दुर इन सभी को अपनो से दुर करने यही साधक की निशानी है बाकी जैसा आपको समझ मे आये करे आगे माँ बाबा की इच्छा ओर कृपा आज बस इतना ही नादान बालक की कलम से ॐ नमो सिद्धाये,, 

जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश
🌹🙏🏻🌹

Tuesday, 5 December 2017

आसानी से तंत्र से लक्ष्मी प्राप्ति के प्रयोग

तंत्र से लक्ष्मी प्राप्ति के प्रयोग

नागेश्वर तंत्रःनागेश्वर को प्रचलित भाषा में ‘नागकेसर’ कहते हैं। काली मिर्च के समान गोल, गेरु के रंग का यह गोल फूल घुण्डीनुमा होता है। पंसारियों की दूकान से आसानी से प्राप्त हो जाने वाली नागकेसर शीतलचीनी (कबाबचीनी) के आकार से मिलता-जुलता फूल होता है। यही यहाँ पर प्रयोजनीय माना गया है।१॰ किसी भी पूर्णिमा के दिन बुध की होरा में गोरोचन तथा नागकेसर खरीद कर ले आइए। बुध की होरा काल में ही कहीं से अशोक के वृक्ष का एक अखण्डित पत्ता तोड़कर लाइए। गोरोचन तथा नागकेसर को दही में घोलकर पत्ते पर एक स्वस्तिक चिह्न बनाएँ। जैसी भी श्रद्धाभाव से पत्ते पर बने स्वस्तिक की पूजा हो सके, करें। एक माह तक देवी-देवताओं को धूपबत्ती दिखलाने के साथ-साथ यह पत्ते को भी दिखाएँ। आगामी पूर्णिमा को बुध की होरा में यह प्रयोग पुनः दोहराएँ। अपने प्रयोग के लिये प्रत्येक पुर्णिमा को एक नया पत्ता तोड़कर लाना आवश्यक है। गोरोचन तथा नागकेसर एक बार ही बाजार से लेकर रख सकते हैं। पुराने पत्ते को प्रयोग के बाद कहीं भी घर से बाहर पवित्र स्थान में छोड़ दें।
किसी शुभ-मुहूर्त्त में नागकेसर लाकर घर में पवित्र स्थान पर रखलें। सोमवार के दिन शिवजी की पूजा करें और प्रतिमा पर चन्दन-पुष्प के साथ नागकेसर भी अर्पित करें। पूजनोपरान्त किसी मिठाई का नैवेद्य शिवजी को अर्पण करने के बाद यथासम्भव मन्त्र का भी जाप करें ‘ॐ नमः शिवाय’। उपवास भी करें। इस प्रकार २१ सोमवारों तक नियमित साधना करें। वैसे नागकेसर तो शिव-प्रतिमा पर नित्य ही अर्पित करें, किन्तु सोमवार को उपवास रखते हुए विशेष रुप से साधना करें। अन्तिम अर्थात् २१वें सोमवार को पूजा के पश्चात् किसी सुहागिनी-सपुत्रा-ब्राह्मणी को निमन्त्रण देकर बुलाऐं और उसे भोजन, वस्त्र, दान-दक्षिणा देकर आदर-पूर्वक विदा करें।इक्कीस सोमवारों तक नागकेसर-तन्त्र द्वारा की गई यह शिवजी की पूजा साधक को दरिद्रता के पाश से मुक्त करके धन-सम्पन्न बना देती है।
पीत वस्त्र में नागकेसर, हल्दी, सुपारी, एक सिक्का, ताँबे का टुकड़ा, चावल पोटली बना लें। इस पोटली को शिवजी के सम्मुख रखकर, धूप-दीप से पूजन करके सिद्ध कर लें फिर आलमारी, तिजोरी, भण्डार में कहीं भी रख दें। यह धनदायक प्रयोग है। इसके अतिरिक्त “नागकेसर” को प्रत्येक प्रयोग में “ॐ नमः शिवाय” से अभिमन्त्रित करना चाहिए।
कभी-कभी उधार में बहुत-सा पैसा फंस जाता है। ऐसी स्थिति में यह प्रयोग करके देखें-किसी भी शुक्ल पक्ष की अष्टमी को रुई धुनने वाले से थोड़ी साफ रुई खरीदकर ले आएँ। उसकी चार बत्तियाँ बना लें। बत्तियों को जावित्री, नागकेसर तथा काले तिल (तीनों अल्प मात्रा में) थोड़ा-सा गीला करके सान लें। यह चारों बत्तियाँ किसी चौमुखे दिए में रख लें। रात्रि को सुविधानुसार किसी भी समय दिए में तिल का तेल डालकर चौराहे पर चुपके से रखकर जला दें। अपनी मध्यमा अंगुली का साफ पिन से एक बूँद खून निकाल कर दिए पर टपका दें। मन में सम्बन्धित व्यक्ति या व्यक्तियों के नाम, जिनसे कार्य है, तीन बार पुकारें। मन में विश्वास जमाएं कि परिश्रम से अर्जित आपकी धनराशि आपको अवश्य ही मिलेगी। इसके बाद बिना पीछे मुड़े चुपचाप घर लौट आएँ। अगले दिन सर्वप्रथम एक रोटी पर गुड़ रखकर गाय को खिला दें। यदि गाय न मिल सके तो उसके नाम से निकालकर घर की छत पर रख दें।
जिस किसी पूर्णिमा को सोमवार हो उस दिन यह प्रयोग करें। कहीं से नागकेसर के फूल प्राप्त कर, किसी भी मन्दिर में शिवलिंग पर पाँच बिल्वपत्रों के साथ यह फूल भी चढ़ा दीजिए। इससे पूर्व शिवलिंग को कच्चे दूध, गंगाजल, शहद, दही से धोकर पवित्र कर सकते हो। तो यथाशक्ति करें। यह क्रिया अगली पूर्णिमा तक निरन्तर करते रहें। इस पूजा में एक दिन का भी नागा नहीं होना चाहिए। ऐसा होने पर आपकी पूजा खण्डित हो जायेगी। आपको फिर किसी पूर्णिमा के दिन पड़नेवाले सोमवार को प्रारम्भ करने तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। इस एक माह के लगभग जैसी भी श्रद्धाभाव से पूजा-अर्चना बन पड़े, करें। भगवान को चढ़ाए प्रसाद के ग्रहण करने के उपरान्त ही कुछ खाएँ। अन्तिम दिन चढ़ाए गये फूल तथा बिल्वपत्रों में से एक अपने साथ श्रद्धाभाव से घर ले आएँ। इन्हें घर, दुकान, फैक्ट्री कहीं भी पैसे रखने के स्थान में रख दें। धन-सम्पदा अर्जित कराने में नागकेसर के पुष्प चमत्कारी प्रभाव दिखलाते हैं।

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मार्जारी तंत्र :
मार्जारी अर्थात्‌ बिल्ली सिंह परिवार का जीव है। केवल आकार का अंतर इसे सिंह से पृथक करता है, अन्यथा यह सर्वांग में, सिंह का लघु संस्करण ही है। मार्जारी अर्थात्‌ बिल्ली की दो श्रेणियाँ होती हैं- पालतू और जंगली। जंगली को वन बिलाव कहते हैं। यह आकार में बड़ा होता है, जबकि घरों में घूमने वाली बिल्लियाँ छोटी होती हैं। वन बिलाव को पालतू नहीं बनाया जा सकता, किन्तु घरों में घूमने वाली बिल्लियाँ पालतू हो जाती हैं। अधिकाशतः यह काले रंग की होती हैं, किन्तु सफेद, चितकबरी और लाल (नारंगी) रंग की बिल्लियाँ भी देखी जाती हैं। घरों में घूमने वाली बिल्ली (मादा) भी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त कराने में सहायक होती है, किन्तु यह तंत्र प्रयोग दुर्लभ और अज्ञात होने के कारण सर्वसाधारण के लिए लाभकारी नहीं हो पाता। वैसे यदि कोई व्यक्ति इस मार्जारी यंत्र का प्रयोग करे तो निश्चित रूप से वह लाभान्वित हो सकता है।
गाय, भैंस, बकरी की तरह लगभग सभी चौपाए मादा पशुओं के पेट से प्रसव के पश्चात्‌ एक झिल्ली जैसी वस्तु निकलती है। वस्तुतः इसी झिल्ली में गर्भस्थ बच्चा रहता है। बच्चे के जन्म के समय वह भी बच्चे के साथ बाहर आ जाती है। यह पॉलिथीन की थैली की तरह पारदर्शी लिजलिजी, रक्त और पानी के मिश्रण से तर होती है। सामान्यतः यह नाल या आँवल कहलाती हैं।
इस नाल को तांत्रिक साधना में बहुत महत्व प्राप्त है। स्त्री की नाल का उपयोग वन्ध्या अथवा मृतवत्सा स्त्रियों के लिए परम हितकर माना गया है। वैसे अन्य पशुओं की नाल के भी विविध उपयोग होते हैं। यहाँ केवल मार्जारी (बिल्ली) की नाल का ही तांत्रिक प्रयोग लिखा जा रहा है, जिसे सुलभ हो, इसका प्रयोग करके लक्ष्मी की कृपा प्राप्त कर सकता है।
जब पालतू बिल्ली का प्रसव काल निकट हो, उसके लिए रहने और खाने की ऐसी व्यवस्था करें कि वह आपके कमरे में ही रहे। यह कुछ कठिन कार्य नहीं है, प्रेमपूर्वक पाली गई बिल्लियाँ तो कुर्सी, बिस्तर और गोद तक में बराबर मालिक के पास बैठी रहती हैं। उस पर बराबर निगाह रखें। जिस समय वह बच्चों को जन्म दे रही हो, सावधानी से उसकी रखवाली करें। बच्चों के जन्म के तुरंत बाद ही उसके पेट से नाल (झिल्ली) निकलती है और स्वभावतः तुरंत ही बिल्ली उसे खा जाती है। बहुत कम लोग ही उसे प्राप्त कर पाते हैं। अतः उपाय यह है कि जैसे ही बिल्ली के पेट से नाल बाहर आए, उस पर कपड़ा ढँक दें। ढँक जाने पर बिल्ली उसे तुरंत खा नहीं सकेगी। चूँकि प्रसव पीड़ा के कारण वह कुछ शिथिल भी रहती है, इसलिए तेजी से झपट नहीं सकती। जैसे भी हो, प्रसव के बाद उसकी नाल उठा लेनी चाहिए। फिर उसे धूप में सुखाकर प्रयोजनीय रूप दिया जाता है।
धूप में सुखाते समय भी उसकी रखवाली में सतर्कता आवश्यक है। अन्यथा कौआ, चील, कुत्ता आदि कोई भी उसे उठाकर ले जा सकता है। तेज धूप में दो-तीन दिनों तक रखने से वह चमड़े की तरह सूख जाएगी। सूख जाने पर उसके चौकोर टुकड़े (दो या तीन वर्ग इंच के या जैसे भी सुविधा हो) कर लें और उन पर हल्दी लगाकर रख दें। हल्दी का चूर्ण अथवा लेप कुछ भी लगाया जा सकता है। इस प्रकार हल्दी लगाया हुआ बिल्ली की नाल का टुकड़ा लक्ष्मी यंत्र का अचूक घटक होता है।
तंत्र साधना के लिए किसी शुभ मुहूर्त में स्नान-पूजा करके शुद्ध स्थान पर बैठ जाएँ और हल्दी लगा हुआ नाल का सीधा टुकड़ा बाएँ हाथ में लेकर मुट्ठी बंद कर लें और लक्ष्मी, रुपया, सोना, चाँदी अथवा किसी आभूषण का ध्यान करते हुए 54 बार यह मंत्र पढ़ें- ‘मर्जबान उल किस्ता’। इसके पश्चात्‌ उसे माथे से लगाकर अपने संदूक, पिटारी, बैग या जहाँ भी रुपए-पैसे या जेवर हों, रख दें। कुछ ही समय बाद आश्चर्यजनक रूप से श्री-सम्पत्ति की वृद्धि होने लगती है। इस नाल यंत्र का प्रभाव विशेष रूप से धातु लाभ (सोना-चाँदी की प्राप्ति) कराता है।

जब सताये पैसो की चिंता तो ये उपाय जरूर करे

जय माँ जय बाबा महाकाल, जय बजरंग बली की दोस्तो,


जब सताए पैसों की कमी, करें यह प्रयोग

धन जीवन की सबसे प्रमुख आवश्यकताओं में से एक है। इसके अभाव में जीवन बेकार ही लगता है। सभी लोगों को धन की कामना होती है लेकिन कम ही लोग ऐसे होते हैं जिनकी यह इच्छा पूरी होती है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनहे जीवन भर धन के अभाव में रहना पड़ता है। कुछ साधारण तंत्र प्रयोग करने से धन प्राप्ति के मार्ग खुल सकते हैं। इन प्रयोगों को करते समय मन में श्रृद्धा का भाव होना चाहिए तभी यह प्रयोग सफल होते हैं। कुछ तंत्र प्रयोग इस प्रकार हैं-
- शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार को लक्ष्मी-नारायण मंदिर में जाकर शाम के समय नौ वर्ष से कम उम्र की कन्याओं को खीर के साथ मिश्री का भोजन कराएं तथा उपहार में कोई लाल वस्तु दें। यह उपाय लगातार तीन शुक्रवार करें।
- यदि अचानक ज्यादा खर्च की स्थिति बने तो मंगलवार के दिन हनुमानजी के मंदिर में गुड़-चने का भोग लगाएं और 11 बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। यह प्रयोग तीन मंगलवार तक करें।
- पुष्य नक्षत्र के शुभ मुहूर्त में शंखपुष्पी की जड़ को विधिवत लेकर आएं और उसे धूप देकर भगवान शिव का ध्यान करते हुए चांदी की डिब्बी में रखें। इसे अपनी तिजोरी में रखने से आर्थिक समस्या दूर हो जाएगी।
- पीपल के पत्ते पर राम लिखकर तथा कुछ मीठा रखकर हनुमान मंदिर में चढ़ाएं। इससे धन लाभ होने लगेगा।
- शुक्रवार के दिन से प्रतिदिन शाम के समय तुलसी के पौधे के सामने गाय के घी का दीपक जलाएं।
- तिजोरी में गुंजा के बीज रखने से भी धन की वृद्धि होती है।

गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा मानस मे किये गये कुछ पक्रट मंत्र

गोस्वामी तुलसीदासजी के द्वारा प्रकट किये गये रामचरितमानस के मन्त्र

गोस्वामी तुलसीदासजी के द्वारा प्रकट किये गये रामचरितमानस के मन्त्र

केवल दो ही चौपाइयों का सम्पुट अधिक मिलता है,एक तो "मंगल भुवन अमंगल हारी,द्रवउ से दसरथ अजिर बिहारी",और दूसरी"दीन दयाल बिरदु सम्भारी,हरहु नाथ मम संकट भारी",इसके बाद जो अधिक जानते है,वे अधिक और चौपाइयों का बखान करते है.पहली चौपाई का भाव केवल एक मनुष्य या परिवार के लिये नही है,इस चौपाई का भाव अगर समझा जावे तो बहुत बडा मिलता है,मंगल का अर्थ अगर ज्योतिष से लिया जावे तो भाई से मिलता है,शरीर में खून से मिलता है,संसार में धर्म से मिलता है,और हिम्मत और साहस से मिलता है,संसार में चलने वाले धर्म के अन्दर अधर्म को चलने से रोकने के लिये प्रार्थना का रूप यह चौपाई है,और प्रभु राम से प्रार्थना की गयी है,कि धर्म के प्रति अब तो इस अधर्मी संसार के मन में द्रवता का भाव भरो,द्रवता का अर्थ दायलुता से है,जो लोग एक दूसरे को मारे डाल रहे है,शराब मांस का भक्षण करने के बाद उनको पता नही होता कि वे क्या करने जा रहे है,जिस जर जोरू जमीन के लिये वे लडे जा रहे है,वह कल भी उनकी नही थी,आज कुछ समय के लिये वे मान सकते है,कि उनकी है,लेकिन कल और किसी की होगी,करोडों वर्षों से यह कहानी चली आ रही है,राजाओं ने फ़ौजें कटवादीं,लाखों लोग इन तीन के लिये मरे और मारे गये है,लेकिन समझ आज भी किसी को नही आ रही है.रामायण की चौपाइयों का अर्थ और उनका महत्व हम आगे कभी समझायेंगे,लेकिन जिन चौपाइयों को केवल स्मरण करने से बाधा दूर होती है,और प्रधानत: शांति का भान होता है,उन चौपाइयों का अर्थ और स्मरण का तरीका हम आपके समक्ष प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहे है,किसी प्रकार की भाषाई त्रुटि अगर हो जाती है,तो सज्जन क्षमा भी करेंगे,ऐसा मेरा विश्वास है.

मकडी के जाल से रूकती है आपकी उन्नति

मकड़ी के जाले हटाओं, धन की बचत बढ़ाओं

सामान्यत: मकड़ी अधिकांश घरों में अपने जाले बना लेती है। यह जाले हमारे घर-परिवार या ऑफिस के शुभ नहीं होते हैं। इससे धन के आगमन में रुकावट पैदा होती है और स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां खड़ी हो जाती हैं।मकड़ी के जाले अशुभ माने जाते हैं।
वास्तु के अनुसार जिस घर की दीवारों या छत पर मकड़ी के जाले रहते हैं, ठीक से सफाई नहीं होती, वहां धन कमी रहती है। ऐसे घर में परिवार के लोग चाहे जितना धन कमा लें लेकिन बचत कर पाना काफी मुश्किल हो जाता है।मकड़ी के जाले घर की बरकत को प्रभावित करते हैं। यह दरिद्रता के प्रतीक है। जहां ऐसे जाले रहते हैं वहां धन की देवी महालक्ष्मी निवास नहीं करती है। शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है देवी लक्ष्मी उसी घर में कृपा बरसाती हैं जहां पूरी तरह से साफ-सफाई रहती है।
यदि आपका घर पूरा साफ है लेकिन कहीं-कहीं मकड़ी के जाले लटक रहे हैं तो उन्हें तुरंत हटा दें। इससे आपके घर में धन का आगमन होगा और बचत बढ़ेगी। मकड़ी के जाले स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक हैं। इसी वजह से इन्हें घर में नहीं रहने देना चाहिए।मकड़ी के जाले बुरी शक्तियों को भी आकर्षित करते हैं जिससे घर के सदस्यों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। घर की पॉजीटिव एनर्जी खत्म होती है। इन सभी कारणों के चलते घर की छत या दीवारों से मकड़ी के जाले तुरंत हटा दिए जाने चाहिए।

आईये ज्‍योतिष सीखें

ज्‍योतिष सीखें


ज्योतिष सीखने की इच्छा अधिकतर लोगों में होती है। लेकिन उनके सामने समस्या यह होती है कि ज्योतिष की शुरूआत कहाँ से की जाये?
कुछ जिज्ञासु मेहनत करके किसी ज्यातिषी को पढ़ाने के लिये राज़ी तो कर लेते हैं, लेकिन गुरूजी कुछ इस तरह ज्योतिष पढ़ाते हैं कि जिज्ञासु ज्योतिष सीखने की बजाय भाग खड़े होते हैं। बहुत से पढ़ाने वाले ज्योतिष की शुरुआत कुण्डली-निर्माण से करते हैं। ज़्यादातर जिज्ञासु कुण्डली-निर्माण की गणित से ही घबरा जाते हैं। वहीं बचे-खुचे “भयात/भभोत” जैसे मुश्किल शब्द सुनकर भाग खड़े होते हैं।
अगर कुछ छोटी-छोटी बातों पर ग़ौर किया जाए, तो आसानी से ज्योतिष की गहराइयों में उतरा जा सकता है। ज्योतिष सीखने के इच्छुक नये विद्यार्थियों को कुछ बातें ध्यान में रखनी चाहिए-
शुरूआत में थोड़ा-थोड़ा पढ़ें।
जब तक पहला पाठ समझ में न आये, दूसरे पाठ या पुस्तक पर न जायें।
जो कुछ भी पढ़ें, उसे आत्मसात कर लें।
बिना गुरू-आज्ञा या मार्गदर्शक की सलाह के अन्य ज्योतिष पुस्तकें न पढ़ें।
शुरूआती दौर में कुण्डली-निर्माण की ओर ध्यान न लगायें, बल्कि कुण्डली के विश्लेषण पर ध्यान दें।
शुरूआती दौर में अपने मित्रों और रिश्तेदारों से कुण्डलियाँ मांगे, उनका विश्लेषण करें।
जहाँ तक हो सके हिन्दी के साथ-साथ ज्योतिष की अंग्रेज़ी की शब्दावली को भी समझें।
अगर ज्योतिष सीखने के इच्छुक लोग उपर्युक्त बिन्दुओं को ध्यान में रखेंगे, तो वे जल्दी ही इस विषय पर अच्छी पकड़ बना सकते हैं।
ज्‍योतिष के मुख्‍य दो विभाग हैं - गणित और फलित। गणित के अन्दर मुख्‍य रूप से जन्‍म कुण्‍डली बनाना आता है। इसमें समय और स्‍थान के हिसाब से ग्रहों की स्थिति की गणना की जाती है। दूसरी ओर, फलित विभाग में उन गणनाओं के आधार पर भविष्‍यफल बताया जाता है। इस शृंखला में हम ज्‍यो‍तिष के गणित वाले हिस्से की चर्चा बाद में करेंगे और पहले फलित ज्‍योतिष पर ध्यान लगाएंगे। किसी बच्चे के जन्म के समय अन्तरिक्ष में ग्रहों की स्थिति का एक नक्शा बनाकर रख लिया जाता है इस नक्शे केा जन्म कुण्डली कहते हैं। आजकल बाज़ार में बहुत-से कम्‍प्‍यूटर सॉफ़्टवेयर उपलब्‍ध हैं और उन्‍हे जन्‍म कुण्‍डली निर्माण और अन्‍य गणनाओं के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
पूरी ज्‍योतिष नौ ग्रहों, बारह राशियों, सत्ताईस नक्षत्रों और बारह भावों पर टिकी हुई है। सारे भविष्‍यफल का मूल आधार इनका आपस में संयोग है। नौ ग्रह इस प्रकार हैं -
ग्रह अन्‍य नाम अंग्रेजी नाम
सूर्य रवि सन
चंद्र सोम मून
मंगल कुज मार्स
बुध मरकरी
गुरू बृहस्‍पति ज्‍यूपिटर
शुक्र भार्गव वीनस
शनि मंद सैटर्न
राहु नॉर्थ नोड
केतु साउथ नोड
आधुनिक खगोल विज्ञान (एस्‍ट्रोनॉमी) के हिसाब से सूर्य तारा और चन्‍द्रमा उपग्रह है, लेकिन भारतीय ज्‍योतिष में इन्‍हें ग्रहों में शामिल किया गया है। राहु और केतु गणितीय बिन्‍दु मात्र हैं और इन्‍हें भी भारतीय ज्‍योतिष में ग्रह का दर्जा हासिल है।
भारतीय ज्‍योतिष पृथ्‍वी को केन्द्र में मानकर चलती है। राशिचक्र वह वृत्त है जिसपर नौ ग्रह घूमते हुए मालूम होते हैं। इस राशिचक्र को अगर बारह भागों में बांटा जाये, तो हर एक भाग को एक राशि कहते हैं। इन बारह राशियों के नाम हैं- मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्‍या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन। इसी तरह जब राशिचक्र को सत्‍ताईस भागों में बांटा जाता है, तब हर एक भाग को नक्षत्र कहते हैं। हम नक्षत्रों की चर्चा आने वाले समय में करेंगे।
एक वृत्त को गणित में 360 कलाओं (डिग्री) में बाँटा जाता है। इसलिए एक राशि, जो राशिचक्र का बारहवाँ भाग है, 30 कलाओं की हुई। फ़िलहाल ज़्यादा गणित में जाने की बजाय बस इतना जानना काफी होगा कि हर राशि 30 कलाओं की होती है।
हर राशि का मालिक एक ग्रह होता है जो इस प्रकार हैं -
राशि अंग्रेजी नाम मालिक ग्रह
मेष एरीज़ मंगल
वृषभ टॉरस शुक्र
मिथुन जैमिनी बुध
कर्क कैंसर चन्द्र
सिंह लियो सूर्य
कन्या वरगो बुध
तुला लिबरा शुक्र
वृश्चिक स्कॉर्पियो मंगल
धनु सैजीटेरियस गुरू
मकर कैप्रीकॉर्न शनि
कुम्भ एक्वेरियस शनि
मीन पाइसेज़ गुरू
आज का लेख बस यहीं तक। लेख के अगले क्रम में जानेंगे कि राशि व ग्रहों के क्‍या स्‍वाभाव हैं और उन्हें भविष्‍यकथन के लिए कैसे उपयोग किया जा सकता है।

पिछली बार हमनें राशि, ग्रह, एवं राशि स्‍वामियों के बारे में जाना। वह अत्‍यन्‍त ही महत्‍वपूर्ण सूचना थी और उसे कण्‍ठस्‍थ करने की कोशिश करें। इस बार हम ग्रह एवं राशियों के कुछ वर्गीकरण को जानेंगे जो कि फलित ज्‍योतिष के लिए अत्‍यन्‍त ही महत्‍वपूर्ण हैं। पहला वर्गीकरण शुभ ग्रह और पाप ग्रह का इस प्रकार है -
शुभ ग्रह:  चन्द्रमा, बुध, शुक्र, गुरू हैं
पापी ग्रह:  सूर्य, मंगल, शनि, राहु, केतु हैं
साधारणत चन्‍द्र एवं बुध को सदैव ही शुभ नहीं गिना जाता। पूर्ण चन्‍द्र अर्थात पूर्णिमा के पास का चन्‍द्र शुभ एवं अमावस्‍या के पास का चन्‍द्र शुभ नहीं गिना जाता। इसी प्रकार बुध अगर शुभ ग्रह के साथ हो तो शुभ होता है और यदि पापी ग्रह के साथ हो तो पापी हो जाता है।
यह ध्‍यान रखने वाली बात है कि सभी पापी ग्रह सदैव ही बुरा फल नहीं देते। न ही सभी शुभ ग्रह सदैव ही शुभ फल देते हैं। अच्‍छा या बुरा फल कई अन्‍य बातों जैसे ग्रह का स्‍वामित्‍व, ग्रह की राशि स्थिति, दृष्टियों इत्‍यादि पर भी निर्भर करता है जिसकी चर्चा हम आगे करेंगे।
जैसा कि उपर कहा गया एक ग्रह का अच्‍छा या बुरा फल कई अन्‍य बातों पर निर्भर करता है और उनमें से एक है ग्रह की राशि में स्थिति। कोई भी ग्रह सामान्‍यत अपनी उच्‍च राशि, मित्र राशि, एवं खुद की राशि में अच्‍छा फल देते हैं। इसके विपरीत ग्रह अपनी नीच राशि और शत्रु राशि में बुरा फल देते हैं।

ग्रहों की उच्‍चादि राशि स्थिति इस प्रकार है -
ग्रह
उच्च राशि
नीच राशि
स्‍वग्रह राशि
1
सूर्य,मेष
तुला
सिंह
2
चन्द्रमा,  वृषभ
वृश्चिक
कर्क
3
मंगल,   मकर
 कर्क
मेष, वृश्चिक
4
बुध, कन्या
मीन         
मिथुन, कन्या
5
 गुरू,   कर्क 
मकर
 धनु, मीन
6
शुक्र,   मीन       
कन्या
वृषभ, तुला
7
शनि,  तुला                 मेष  मकर, कुम्भ
8
 राहु, धनु           मिथुन
9
केतु    मिथुन धनु

उपर की तालिका में कुछ ध्‍यान देने वाले बिन्‍दु इस प्रकार हैं -
1 ग्रह की उच्‍च राशि और नीच राशि एक दूसरे से सप्‍तम होती हैं। उदाहरणार्थ सूर्य मेष में उच्‍च का होता है जो कि राशि चक्र की पहली राशि है और तुला में नीच होता है जो कि राशि चक्र की सातवीं राशि है।
2 सूर्य और चन्‍द्र सिर्फ एक राशि के स्‍वामी हैं। राहु एवं केतु किसी भी राशि के स्‍वामी नहीं हैं। अन्‍य ग्रह दो-दो राशियों के स्‍वामी हैं।
3 राहु एवं केतु की अपनी कोई राशि नहीं होती। राहु-केतु की उच्‍च एवं नीच राशियां भी सभी ज्‍योतिषी प्रयोग नहीं करते हैं।

पिछली बार हमने प्रत्येक ग्रह की उच्च नीच और स्वग्रह राशि के बारे में जाना था। हमनें पढ़ा था कि राहु और केतु की कोई राशि नहीं होती और राहु-केतु की उच्च एवं नीच राशियां भी सभी ज्योतिषी प्रयोग नहीं करते। लेकिन, फलित ज्योतिष में ग्रहों के मित्र, शत्रु ग्रह के बारे में जानना भी अति आवश्यक है। इसलिए इस बार इनकी जानकारी।
ग्रहों के नाम                मित्र                   शत्रु                   सम

सूर्य                  चन्द्र, मंगल, गुरू            शनि, शुक्र                 बुध
चन्द्रमा                   सूर्य, बुध                   कोई नहीं                शेष ग्रह
मंगल                    सूर्य, चन्द्र, गुरू              बुध                      शेष ग्रह
बुध                           सूर्य, शुक्र                  चंद्र                      शुक्र, शनि
गुरू                  सुर्य, चंन्‍द्र, मंगल             शुक्र, बुध                 शनि
शुक्र                     शनि, बुध                    शेष ग्रह                   गुरू, मंगल
शनि                  बुध, शुक्र                      शेष ग्रह                   गुरु
राहु, केतु               शुक्र, शनि               सूर्य, चन्‍द्र, मंगल           गुरु, बुध
यह तालिका अति महत्वपूर्ण है और इसे भी कण्ठस्थ् करने की कोशिश करनी चाहिए। यदि यह तालिका बहुत बड़ी लगे तो डरने की कोई जरुरत नहीं। तालिका समय एवं अभ्याकस के साथ खुद व खुद याद हो जाती है। मोटे तौर पर वैसे हम ग्रहों को दो भागों में विभाजित कर सकते हैं, जो कि एक दूसरे के शत्रु हैं -
भाग 1 - सूर्य, चंद्र, मंगल और गुरु
भाग 2 - बुध, शुक्र, शनि, राहु, केतु
यह याद रखने का आसान तरीका है परन्तु हर बार सही नहीं है। उपर वाली तालिका कण्ठस्थ हो तो ज्यादा बेहतर है।
मित्र-शत्रु का तात्पर्य यह है कि जो ग्रह अपनी मित्र ग्रहों की राशि में हो एवं मित्र ग्रहों के साथ हो, वह ग्रह अपना शुभ फल देगा। इसके विपरीत कोई ग्रह अपने शत्रु ग्रह की राशि में हो या शत्रु ग्रह के साथ हो तो उसके शुभ फल में कमी आ जाएगी।
चलिए एक उदाहर लेते हैं। उपर की तालिका से यह देखा जा सकता है कि सूर्य और शनि एक दूसरे के शत्रु ग्रह हैं। अगर सूर्य शनि की राशि मकर या कुंभ में स्थित है या सूर्य शनि के साथ स्थित हो तो सूर्य अपना शुभ फल नहीं दे पाएगा। इसके विपरीत यदि सूर्य अपने मित्र ग्रहों च्ंद्र, मंगल, गुरु की राशि में या उनके सा‍थ स्थित हो तो सामान्‍यत वह अपना शुभ फल देगा
इस सप्ताह के लिए बस इतना ही। आगे जानेंगे कुण्डली का स्वरुप, ग्रह-भाव-राशि का कारकत्वक एवं ज्योतिष में उनका प्रयोग आदि।

ज्‍योतिष सीखें भाग-4

इस सप्‍ताह हम जानेंगे की कुण्‍डली में ग्रह एवं राशि इत्‍यादि को कैसे दर्शाया जाता है। साथ ही लग्‍न एवं अन्‍य भावों के बारे में भी जानेंगे। कुण्‍डली को जन्‍म समय के ग्रहों की स्थिति की तस्‍वीर कहा जा सकता है। कुण्‍डली को देखकर यह पता लगाया जा सकता है कि जन्‍म समय में विभिन्‍न ग्रह आकाश में कहां स्थित थे। भारत में विभिन्‍न प्रान्‍तों में कुण्‍डली को चित्रित करने का अलग अलग तरीका है। मुख्‍यत: कुण्‍डली को उत्‍तर भारत, दक्षिण भारत या बंगाल में अलग अलग तरीके से दिखाया जाता है। हम सिर्फ उत्‍तर भारतीय तरीके की चर्चा करेंगे।
कुण्‍डली से ग्रहों की राशि में स्थिति एवं ग्रहों की भावों में स्थिति पता चलती है। ग्रह एवं राशि की चर्चा हम पहले ही कर चुके हैं और भाव की चर्चा हम आगे करेंगे। उत्तर भारत की कुण्डली में लग्न राशि पहले स्थान में लिखी जाती है तथा फिर दाएं से बाएं राशियों की संख्या को स्थापित कर लेते हैं। अर्थात राशि स्थापना (anti-clock wise) होती हैं तथा राशि का सूचक अंक ही अनिवार्य रूप से स्थानों में भरा जाता है। एक उदाहरण कुण्‍डली से इसे समझते हैं।
भाव
थोडी देर के लिए सारे अंको और ग्रहों के नाम भूल जाते हैं। हमें कुण्‍डली में बारह खाने दिखेंगे, जिसमें से आठ त्रिकोणाकार एवं चार आयताकार हैं। चार आयतों में से सबसे ऊपर वाला आयत लग्‍न या प्रथम भाव कहलाता है। उदाहरण कुण्‍डली में इसमें रंग भरा गया है। लग्‍न की स्थिति कुण्‍डली में सदैव निश्चित है। लग्‍न से एन्‍टी क्‍लॉक वाइज जब गिनना शुरू करें जो अगला खाना द्वितीय भाव कहलाजा है। उससे अगला खाना तृतीय भाव कहलाता है और इसी तरह आगे की गिनती करते हैं। साधारण बोलचाल में भाव को घर या खाना भी कह देते हैं। अ्ंग्रेजी में भाव को हाउस (house) एवं लग्‍न को असेन्‍डेन्‍ट (ascendant) कहते हैं।
भावेश
कुण्‍डली में जो अंक लिखे हैं वो राशि बताते हैं। उदाहरण कुण्‍डली में लग्‍न के अन्‍दर 11 नम्‍बर लिखा है अत: कहा जा सकता है की लग्‍न या प्रथम भाव में ग्‍यारह अर्थात कुम्‍भ राशि पड़ी है। इसी तरह द्वितीय भाव में बारहवीं अर्थात मीन राशि पड़ी है। हम पहले से ही जानते हैं कि कुम्‍भ का स्‍वामी ग्रह शनि एवं मीन का स्‍वामी ग्रह गुरु है। अत: ज्‍योतिषीय भाषा में हम कहेंगे कि प्रभम भाव का स्‍वामी शनि है (क्‍योंकि पहले घर में 11 लिखा हुआ है)। भाव के स्‍वामी को भावेश भी कहते हैं।
प्रथम भाव के स्‍वामी को प्रथमेश या लग्‍नेश भी कहते हैं। इसी प्रकार द्वितीय भाव के स्‍वामी को द्वितीयेश, तृतीय भाव के स्‍वामी को तृतीयेश इत्‍यादि कहते हैं।
ग्रहों की भावगत स्थिति
उदाहरण कुण्‍डली में उपर वाले आयत से एन्‍टी क्‍लॉक वाइज गिने तो शुक्र एवं राहु वाले खाने तक पहुंचने तक हम पांच गिन लेंगे। अत: हम कहेंगे की राहु एवं शुक्र पांचवे भाव में स्थित हैं। इसी प्रकार चंद्र एवं मंगल छठे, शनि - सूर्य-बुध सातवें, और गुरु-केतु ग्‍यारवें भाव में स्थित हैं। यही ग्रहो की भाव स्थिति है।
ग्रहों की राशिगत स्थिति
ग्रहों की राशिगत स्थिति जानना आसान है। जिस ग्रह के खाने में जो अंक लिखा होता है, वही उसकी राशिगत स्थिति होती है। उदाहरण कुण्‍डली में शुक्र एवं राहु के आगे 3 लिखा है अत: शुक्र एवं राहु 3 अर्थात मिथुन राशि में स्थित हैं। इसी प्रकार च्रद्र एवं मंगल के आगे चार लिखा है अत: वे कर्क राशि में स्थित हैं जो कि राशिचक्र की चौथी राशि है।
याद रखें कि ग्रह की भावगत स्थिति एवं राशिगत स्थिति दो अलग अलग चीजें हैं। इन्हें लेकर कोई कन्फ्यूजन नहीं होना चाहिए।

ज्योतिष में फलकथन का आधार मुख्यतः ग्रहों, राशियों और भावों का स्वाभाव, कारकत्‍व एवं उनका आपसी संबध है।
ग्रहों को ज्योतिष में जीव की तरह माना जाता है - राशियों एवं भावों को वह क्षेत्र मान जाता है, जहाँ ग्रह विचरण करते हैं। ग्रहों का ग्रहों से संबध, राशियों से संबध, भावों से संबध आदि से फलकथन का निर्धारण होता है।
ज्योतिष में ग्रहों का एक जीव की तरह 'स्‍वभाव' होता है। इसके अलाव ग्रहों का 'कारकत्‍व' भी होता है। राशियों का केवल 'स्‍वभाव' एवं भावों का केवल 'कारकत्‍व' होता है। स्‍वभाव और कारकत्‍व में फर्क समझना बहुत जरूरी है।
सरल शब्‍दों में 'स्‍वभाव' 'कैसे' का जबाब देता है और 'कारकत्‍व' 'क्‍या' का जबाब देता है। इसे एक उदाहरण से समझते हैं। माना की सूर्य ग्रह मंगल की मेष राशि में दशम भाव में स्थित है। ऐसी स्थिति में सूर्य क्‍या परिणाम देगा?
नीचे भाव के कारकत्‍व की तालिका दी है, जिससे पता चलता है कि दशम भाव व्यवसाय एवं व्यापार का कारक है। अत: सूर्य क्‍या देगा, इसका उत्‍तर मिला की सूर्य 'व्‍यवसाय' देगा। वह व्‍यापार या व्‍यवसाय कैसा होगा - सूर्य के स्‍वाभाव और मेष राशि के स्‍वाभाव जैसा। सूर्य एक आक्रामक ग्रह है और मंगल की मेष राशि भी आक्रामक राशि है अत: व्‍यवसाय आक्रामक हो सकता है। दूसरे शब्‍दों में जातक सेना या खेल के व्‍यवयाय में हो सकता है, जहां आक्रामकता की जरूरत होती है। इसी तरह ग्रह, राशि, एवं भावों के स्‍वाभाव एवं कारकत्‍व को मिलाकर फलकथन किया जाता है।
दुनिया की समस्त चल एवं अचल वस्तुएं ग्रह, राशि और भाव से निर्धारित होती है। चूँकि दुनिया की सभी चल एवं अचल वस्तुओं के बारे मैं तो चर्चा नहीं की जा सकती, इसलिए सिर्फ मुख्य मुख्य कारकत्‍व के बारे में चर्चा करेंगे।
सबसे पहले हम भाव के बारे में जानते हैं। भाव के कारकत्‍व इस प्रकार हैं -
प्रथम भाव : प्रथम भाव से विचारणीय विषय हैं - जन्म, सिर, शरीर, अंग, आयु, रंग-रूप, कद, जाति आदि।

द्वितीय भाव: दूसरे भाव से विचारणीय विषय हैं - रुपया पैसा, धन, नेत्र, मुख, वाणी, आर्थिक स्थिति, कुटुंब, भोजन, जिह्य, दांत, मृत्यु, नाक आदि।

तृतीय भाव : तृतीय भाव के अंतर्गत आने वाले विषय हैं - स्वयं से छोटे सहोदर, साहस, डर, कान, शक्ति, मानसिक संतुलन आदि।

चतुर्थ भाव : इस भाव के अंतर्गत प्रमुख विषय - सुख, विद्या, वाहन, ह्दय, संपत्ति, गृह, माता, संबंधी गण,पशुधन और इमारतें।

पंचव भाव : पंचम भाव के विचारणीय विषय हैं - संतान, संतान सुख, बुद्धि कुशाग्रता, प्रशंसा योग्य कार्य, दान, मनोरंजन, जुआ आदि।

षष्ठ भाव : इस भाव से विचारणीय विषय हैं - रोग, शारीरिक वक्रता, शत्रु कष्ट, चिंता, चोट, मुकदमेबाजी, मामा, अवसाद आदि।

सप्तम भाव : विवाह, पत्‍नी, यौन सुख, यात्रा, मृत्यु, पार्टनर आदि विचारणीय विषय सप्तम भाव से संबंधित हैं।

अष्टम भाव : आयु, दुर्भाग्य, पापकर्म, कर्ज, शत्रुता, अकाल मृत्यु, कठिनाइयां, सन्ताप और पिछले जन्म के कर्मों के मुताबिक सुख व दुख, परलोक गमन आदि विचारणीय विषय आठवें भाव से संबंधित हैं।

नवम भाव : इस भाव से विचारणीय विषय हैं - पिता, भाग्य, गुरु, प्रशंसा, योग्य कार्य, धर्म, दानशीलता, पूर्वजन्मों का संचि पुण्य।

दशम भाव : दशम भाव से विचारणीय विषय हैं - उदरपालन, व्यवसाय, व्यापार, प्रतिष्ठा, श्रेणी, पद, प्रसिद्धि, अधिकार, प्रभुत्व, पैतृक व्यवसाय।

एकादश भाव : इस भाव से विचारणीय विषय हैं - लाभ, ज्येष्ठ भ्राता, मुनाफा, आभूषण, अभिलाषा पूर्ति, धन संपत्ति की प्राप्ति, व्यापार में लाभ आदि।

द्वादश भाव : इस भाव से संबंधित विचारणीय विषय हैं - व्यय, यातना, मोक्ष, दरिद्रता, शत्रुता के कार्य, दान, चोरी से हानि, बंधन, चोरों से संबंध, बायीं आंख, शय्यासुख, पैर आदि।
इस बार इतना ही। ग्रहों का स्‍वभाव/ कारकत्‍व व राशियों के स्‍वाभाव की चर्चा हम अगले पाठ में करेंगे।

पिछले अंक में हमनें भाव कारकत्‍व के बारे में जाना। हमने यह भी जाना कि कारकात्‍व एवं स्‍वभाव में क्‍या फर्क होता है। इस बार पहले हम राशियों के बारे में जानते हैं। राशियों के स्‍वभाव इस प्रकार हैं-
मेष – पुरुष जाति, चरसंज्ञक, अग्नि तत्व, पूर्व दिशा की मालिक, मस्तक का बोध कराने वाली, पृष्ठोदय, उग्र प्रकृति, लाल-पीले वर्ण वाली, कान्तिहीन, क्षत्रियवर्ण, सभी समान अंग वाली और अल्पसन्तति है। यह पित्त प्रकृतिकारक है। इसका प्राकृतिक स्वभाव साहसी, अभिमानी और मित्रों पर कृपा रखने वाला है।
वृष – स्त्री राशि, स्थिरसंज्ञक, भूमितत्व, शीतल स्वभाव, कान्ति रहित, दक्षिण दिशा की स्वामिनी, वातप्रकृति, रात्रिबली, चार चरण वाली, श्वेत वर्ण, महाशब्दकारी, विषमोदयी, मध्य सन्तति, शुभकारक, वैश्य वर्ण और शिथिल शरीर है। यह अर्द्धजल राशि कहलाती है। इसका प्राकृतिक स्वभाव स्वार्थी, समझ-बूझकर काम करने वाली और सांसारिक कार्यों में दक्ष होती है। इससे कण्ठ, मुख और कपोलों का विचार किया जाता है।
मिथुन – पश्चिम दिशा की स्वामिनी, वायुतत्व, तोते के समान हरित वर्ण वाली, पुरुष राशि, द्विस्वभाव, विषमोदयी, उष्ण, शूद्रवर्ण, महाशब्दकारी, चिकनी, दिनबली, मध्य सन्तति और शिथिल शरीर है। इसका प्राकृतिक स्वभाव विद्याध्ययनी और शिल्पी है। इससे हाथ, शरीर के कंधों और बाहुओं का विचार किया जाता है।
 कर्क – चर, स्त्री जाति, सौम्य और कफ प्रकृति, जलचारी, समोदयी, रात्रिबली, उत्तर दिशा की स्वामिनी, रक्त-धवल मिश्रित वर्ण, बहुचरण एवं संतान वाली है। इसका प्राकृतिक स्वभाव सांसारिक उन्नति में प्रयत्नशीलता, लज्जा, और कार्यस्थैर्य है। इससे पेट, वक्षःस्थल और गुर्दे का विचार किया जाता है।
सिंह – पुरुष जाति, स्थिरसंज्ञक, अग्नितत्व, दिनबली, पित्त प्रकृति, पीत वर्ण, उष्ण स्वभाव, पूर्व दिशा की स्वामिनी, पुष्ट शरीर, क्षत्रिय वर्ण, अल्पसन्तति, भ्रमणप्रिय और निर्जल राशि है। इसका प्राकृतिक स्वरूप मेष राशि जैसा है, पर तो भी इसमें स्वातन्त्र्य प्रेम और उदारता विशेष रूप से विद्यमान है। इससे हृदय का विचार किया जाता है।
कन्या – पिंगल वर्ण, स्त्रीजाति, द्विस्वभाव, दक्षिण दिशा की स्वामिनी, रात्रिबली, वायु और शीत प्रकृति, पृथ्वीतत्व और अल्पसन्तान वाली है। इसका प्राकृतिक स्वभाव मिथुन जैसा है, पर विशेषता इतनी है कि अपनी उन्नति और मान पर पूर्ण ध्यान रखने की यह कोशिश करती है। इससे पेट का विचार किया जाता है।
तुला – पुरुष जाति, चरसंज्ञक, वायुतत्व, पश्चिम दिशा की स्वामिनी, अल्पसंतान वाली, श्यामवर्ण शीर्षोदयी, शूद्रसंज्ञक, दिनबली, क्रूर स्वभाव और पाद जल राशि है। इसका प्राकृतिक स्वभाव विचारशील, ज्ञानप्रिय, कार्य-सम्पादक और राजनीतिज्ञ है। इससे नाभि के नीचे के अंगों का विचार किया जाता है।
वृश्चिक – स्थिरसंज्ञक, शुभ्रवर्ण, स्त्रीजाति, जलतत्व, उत्तर दिशा की स्वामिनी, रात्रिबली, कफ प्रकृति, बहुसन्तति, ब्राह्मण वर्ण और अर्द्ध जल राशि है। इसका प्राकृतिक स्वभाव दम्भी, हठी, दृढ़प्रतिज्ञ, स्पष्टवादी और निर्मल है। इससे शरीर के क़द और जननेन्द्रियों का विचार किया जाता है।
धनु – पुरुष जाति, कांचन वर्ण, द्विस्वभाव, क्रूरसंज्ञक, पित्त प्रकृति, दिनबली, पूर्व दिशा की स्वामिनी, दृढ़ शरीर, अग्नि तत्व, क्षत्रिय वर्ण, अल्पसन्तति और अर्द्ध जल राशि है। इसका प्राकृतिक स्वभाव अधिकारप्रिय, करुणामय और मर्यादा का इच्छुक है। इससे पैरों की सन्धि और जंघाओं का विचार किया जाता है।
मकर – चरसंज्ञक, स्त्री जाति, पृथ्वीतत्व, वात प्रकृति, पिंगल वर्ण, रात्रिबली, वैश्यवर्ण, शिथिल शरीर और दक्षिण दिशा की स्वामिनी है। इसका प्राकृतिक स्वभाव उच्च दशाभिलाषी है। इससे घुटनों का विचार किया जाता है।
कुम्भ – पुरुष जाति, स्थिरसंज्ञक, वायु तत्व, विचित्र वर्ण, शीर्षोदय, अर्द्धजल, त्रिदोष प्रकृति, दिनबली, पश्चिम दिशा की स्वामिनी, उष्ण स्वभाव, शूद्र वर्ण, क्रूर एवं मध्य संतान वाली है। इसका प्राकृतिक स्वभाव विचारशील, शान्तचित्त, धर्मवीर और नवीन बातों का आविष्कारक है। इससे पेट की भीतरी भागों का विचार किया जाता है।
मीन – द्विस्वभाव, स्त्री जाति, कफ प्रकृति, जलतत्व, रात्रिबली, विप्रवर्ण, उत्तरदिशा की स्वामिनी और पिंगल वर्ण है। इसका प्राकृतिक स्वभाव उत्तम, दयालु और दानशील है। यह सम्पूर्ण जलराशि है। इससे पैरों का विचार किया जाता है।
राशियों के स्वभाव जानने के बाद हम अब अगली बार ग्रहों के कारकत्व और स्वभाव के बारे में जानेंगे।

पिछले अंक में  हमनें राशि के स्‍वाभाव के बारे में जाना। हमने यह भी जाना कि कारकात्‍व एवं स्‍वभाव में क्‍या फर्क होता है। इस बार पहले हम ग्रहों के बारे में जानते हैं। नवग्रह के कारकत्‍व एवं स्‍वभाव इस प्रकार हैं -
सूर्य –
स्‍वभाव: चौकौर, छोटा कद, गहरा लाल रंग, पुरुष, क्षत्रिय जाति, पाप ग्रह, सत्वगुण प्रधान, अग्नि तत्व, पित्त प्रकृति है।
कारकत्‍व: राजा, ज्ञानी, पिता, स्‍वर्ण, तांबा, फलदार वृक्ष, छोटे वृक्ष, गेंहू, हड्डी, सिर, नेत्र, दिमाग़ व हृदय पर अपना प्रभाव रखता है।
चन्द्र  –
स्‍वभाव: गोल, स्त्री, वैश्य जाति, सौम्य ग्रह, सत्वगुण, जल तत्व, वात कफ प्रकृति है।
कारकत्‍व: सफेद रंग, माता, कलाप्रिय, सफेद वृक्ष, चांदी, मिठा, चावल, छाती, थूक, जल, फेंफड़े तथा नेत्र-ज्योति पर अपना प्रभाव रखता है।
मंगल  –
स्‍वभाव: तंदुरस्‍त  शरीर, चौकौर, क्रूर, आक्रामक, पुरुष, क्षत्रिय, पाप, तमोगुणी, अग्नितत्व, पित्त प्रकृति है।
कारकत्‍व: लाल रंग, भाई बहन, युद्ध, हथियार, चोर, घाव, दाल, पित्त, रक्त, मांसपेशियाँ, ऑपरेशन, कान, नाक आदि का प्रतिनिधि है।
बुध –
स्‍वभाव: दुबला  शरीर, नपुंसक, वैश्य जाति, समग्रह, रजोगुणी, पृथ्वी तत्व व त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) प्रकृति है।
कारकत्‍व: हरा रंग, चना, मामा, गणित, व्‍यापार, वायुरोग, वाक्, जीभ, तालु, स्वर, गुप्त रोग, गूंगापन, आलस्य व कोढ़ का प्रतिनिधि है।
बृहस्पति  –
स्‍वभाव: भारी मोटा शरीर, पुरुष, ब्राह्मण, सौम्य, सत्वगुणी, आकाश तत्व व कफ प्रकृति है।
कारकत्‍व: पीला रंग, वेद, धर्म, भक्ति, स्‍वर्ण, ज्ञानी, गरु, चर्बी, कफ, सूजन, घर, विद्या, पुत्र, पौत्र, विवाह तथा गुर्दे का प्रतिनिधित्व करता है।
शुक्र –
स्‍वभाव: सुन्‍दर  शरीर, स्त्री, ब्राह्मण, सौम्य, रजोगुणी, जल तत्व व कफ प्रकृति है।
कारकत्‍व: सफेद रंग, सुन्‍दर कपडे, सुन्‍दरता, पत्‍नी, प्रेम सम्‍बन्‍ध, वीर्य, काम-शक्ति, वैवाहिक सुख, काव्य, गान शक्ति, आँख व स्त्री का प्रतिनिधि है।
शनि –
स्‍वभाव: काला रंग, धसी हुई आंखें, पतला लंबा शरीर, क्रूर, नपुंसक, शूद्रवर्ण, पाप, तमोगुणी, वात कफ प्रकृति व वायु तत्व प्रधान है।
कारकत्‍व: काला रंग, चाचा, ईर्ष्‍या, धूर्तता, चोर, जंगली जानवर, नौकर, आयु, तिल, शारीरिक बल, योगाभ्यास, ऐश्वर्य, वैराग्य, नौकरी, हृदय रोग आदि का प्रतिनिधि है।
राहु  व केतु –
स्‍वाभाव: पाप  ग्रह, चाण्डाल, तमोगुणी, वात पित्त प्रकृति व नपुंसक हैं।
कारकत्‍व: गहरा धुंए जैसा रंग, पितामह मातामह, धोखा, दुर्घटना, झगडा, चोरी, सर्प, विदेश, चर्म रोग, पैर, भूख व उन्नति में बाधा के प्रतिनिधि हैं।
राहु का स्‍वाभाव शनि की तरह और केतु का स्‍वाभाव मंगल की तरह होता है।
Horoscope
भाव, ग्रह और राशि की अब आपको पर्याप्‍त जानकारी हो चुकी है और आप शुरूआती भविष्‍यफल के लिए तैयार हैं। एक उदाहरण से जानते हैं कि इस जानकारी का प्रयोग भविष्‍यफल जानने के लिए कैसे किया जाय। अपनी उदाहरण कुण्‍डली एक बार फिर देखते हैं। माना की हमें कुण्‍डली वाले के रंग रूप के विषय में जानना है। अब हम जानते हैं कि रंग रूप के लिए विचारणीय भाव प्रथम भाव है। प्रथम भाव, जिसे लग्‍न भी कहते हैं, का स्‍वामी शनि है क्‍योंकि प्रथव भाव में ग्‍यारह नम्‍बर की राशि अर्थात कुम्‍भ राशि पड़ी है और कुम्‍भ राशि का स्‍वामी शनि होता है। तो कुण्‍डली वाले का रूप रंग शनि से प्रभावित रहेगा। शनि सूर्य और बुध के साथ सप्‍तम भाव में सिंह राशि में स्थित है। सिंह राशि का स्‍वामी भी सूर्य है अत: रंग रूप पर सूर्य का प्रभाव भी रहेगा। शनि का स्‍वभाव - काला रंग, धसी हुई आंखें, पतला लंबा शरीर, क्रूर, नपुंसक, शूद्रवर्ण, पाप, तमोगुणी, वात कफ प्रकृति व वायु तत्व प्रधान है। और सूर्य का स्‍वाभाव - चौकौर, छोटा कद, गहरा लाल रंग, पुरुष, क्षत्रिय जाति, पाप ग्रह, सत्वगुण प्रधान, अग्नि तत्व, पित्त प्रकृति है। अत: जातक पर इन दोनों का मिला जुला स्‍वाभाव होगा।

किसी भी अन्‍य विषय की तरह ज्‍योतिष की अपनी शब्‍दावली है। ज्‍योतिष के लेखों को, ज्‍योतिष की पुस्‍तकों को आदि समझने के लिए शब्‍दावली को जानना जरूरी है। सबसे पहले हम भाव से जुड़े हुए कुछ महत्‍वपूर्ण संज्ञाओं को जानते हैं -

भाव संज्ञाएं

केन्‍द्र - एक, चार, सात और दसवें भाव को एक साथ केन्‍द्र भी कहते हैं।
त्रिकोण - एक, पांच और नौवें भाव को एक साथ त्रिकोण भी कहते हैं।
उपचय - एक, तीन, छ:, दस और ग्‍यारह भावों को एक साथ उपचय कहते हैं।

मारक - दो और सात भाव मा‍रक कहलाते हैं।
दु:स्‍थान - छ:, आठ और बारह भाव दु:स्‍थान या दुष्‍ट-स्‍थान कहलाते हैं।
क्रूर स्‍थान - तीन, छ:, ग्‍यारह

राशि संज्ञाएं
अग्नि आदि संज्ञाएं
अग्नि - मेष  सिंह   धनु
पृथ्‍वी - वृषभ कन्या  मकर
वायु - मिथुन तुला   कुम्भ
जल - कर्क   वृश्चिक मीन
नोट: मेषादि द्वादश राशियां अग्नि, पृथ्‍वी, वायु और जल के क्रम में होती हैं।
चरादि संज्ञाएं
चर – मेष,कर्क,      तुला,मकर
स्थिर – वृषभ,सिंह,वृश्चिक,कुम्भ
द्विस्‍वाभाव – मिथुन,कन्या,धनु,मीन

नोट: मेषादि द्वादश राशियां चर, स्थिर और द्विस्‍वाभाव के क्रम में होती हैं।

पुरुष एवं स्‍त्री संज्ञक राशियां
पुरुष – मेष,मिथुन,सिंह,तुला,धनु,कुम्भ
स्‍त्री – वृषभ,कर्क,कन्या,वृश्चिक,मकर,मीन

नोट: सम राशियां स्‍त्री संज्ञक और विषम राशियां पुरुष संज्ञक होती हैं।

ज्योतिष की पुस्तकों, लेखों आदि को पढ़ते वक्त इस तरह के शब्द लगातार इस्तेमाल किए जाते हैं,इसलिए इस शब्दावली को कंठस्थ कर लेना चाहिए। ताकि पढ़ते वक्त बात ठीक तरह से समझ आए। अगले पाठ में कुछ और महत्वपूर्ण जानकारियों पर बात करेंगे।

फलादेश के सामान्य नियम

यह जानना बहुत जरूरी है कि कोई ग्रह जातक को क्या फल देगा। कोई ग्रह कैसा फल देगा, वह उसकी कुण्डली में स्थिति, युति एवं दृष्टि आदि पर निर्भर करता है। जो ग्रह जितना ज्यादा शुभ होगा, अपने कारकत्व को और जिस भाव में वह स्थित है, उसके कारकत्वों को उतना ही अधिक दे पाएगा। नीचे कुछ सामान्य नियम दिए जा रहे हैं, जिससे पता चलेगा कि कोई ग्रह शुभ है या अशुभ। शुभता ग्रह के बल में वृद्धि करेगी और अशुभता ग्रह के बल में कमी करेगी।
नियम 1 - जो ग्रह अपनी उच्च, अपनी या अपने मित्र ग्रह की राशि में हो - शुभ फलदायक होगा। इसके विपरीत नीच राशि में या अपने शत्रु की राशि में ग्रह अशुभफल दायक होगा।
नियम 2 - जो ग्रह अपनी राशि पर दृष्टि डालता है, वह शुभ फल देता है।
नियम 3 - जो ग्रह अपने मित्र ग्रहों के साथ या मध्य हो वह शुभ फलदायक होता है। मित्रों के मध्य होने को मलतब यह है कि उस राशि से, जहां वह ग्रह स्थित है, अगली और पिछली राशि में मित्र ग्रह स्थित हैं।
नियम 4 - जो ग्रह अपनी नीच राशि से उच्च राशि की ओर भ्रमण करे और वक्री न हो तो शुभ फल देगा।
नियम 5 - जो ग्रह लग्नेहश का मित्र हो।
नियम 6 - त्रिकोण के स्वा‍मी सदा शुभ फल देते हैं।
नियम 7 - केन्द्र का स्वामी शुभ ग्रह अपनी शुभता छोड़ देता है और अशुभ ग्रह अपनी अशुभता छोड़ देता है।
नियम 8 - क्रूर भावों (3, 6, 11) के स्वामी सदा अशुभ फल देते हैं।
नियम 9 - उपाच्य भावों (1, 3, 6, 10, 11) में ग्रह के कारकत्वत में वृद्धि होती है।
नियम 10 - दुष्ट स्थानों (6, 8, 12) में ग्रह अशुभ फल देते हैं।
नियम 11 - शुभ ग्रह केन्द्र (1, 4, 7, 10) में शुभफल देते हैं, पाप ग्रह केन्द्र में अशुभ फल देते हैं।
नियम 12 - पूर्णिमा के पास का चन्द्र शुभफलदायक और अमावस्या  के पास का चंद्र अशुभफलदायक होता है।

नियम 13 - बुध, राहु और केतु जिस ग्रह के साथ होते हैं, वैसा ही फल देते हैं।

नियम 14 - सूर्य के निकट ग्रह अस्त हो जाते हैं और अशुभ फल देते हैं।
इन सभी नियम के परिणाम को मिलाकर हम जान सकते हैं कि कोई ग्रह अपना और स्थित भाव का फल दे पाएगा कि नहींय़ जैसा कि उपर बताया गया शुभ ग्रह अपने कारकत्व को देने में सक्षम होता है परन्तु अशुभ ग्रह अपने कारकत्व को नहीं दे पाता।

सफलता और समृद्धि के योग

किसी कुण्‍डली में क्‍या संभावनाएं हैं, यह ज्‍योतिष में योगों से देखा जाता है। भारतीय ज्‍योतिष में हजारों योगों का वर्णन है जो कि ग्रह, राशि और भावों इत्‍यादि के मिलने से बनते हैं। हम उन सारे योगों का वर्णन न करके, सिर्फ कुछ महत्‍वपूर्ण तथ्‍यों का वर्णन करेंगे जिससे हमें पता चलेगा कि जातक कितना सफल और समृद्ध होगा। सफतला, समृद्धि और खुशहाली को मैं 'संभावना' कहूंगा।

किसी कुण्‍डली की संभावना निम्‍न तथ्‍यों से पता लगाई जा सकती है
1- लग्‍न की शक्ति
2- चन्‍द्र की शक्ति
3- सूर्य की शक्ति
4- दशम भाव की शक्ति
5- योग

लग्‍न, सूर्य, चंद्र और दशम भाव की शक्ति पहले दिए हुए 14 नियमों के आधार पर निर्धारित की जा सकती है। योग इस प्रकार हैं -

योगकारक ग्रह
सूर्य और चंन्‍द्र को ?

पुजा मे तांबे का बर्तन ही क्यू लेते है उपयोग मे

पूजा में तांबे के बर्तन ही क्यों उपयोग में लाना चाहिए?

भारतीय पूजा पद्धति में धातुओं के बर्तन का बड़ा महत्व है। हर तरह की धातु अलग फल देती है और उसका अलग वैज्ञानिक कारण भी है। सोना, चांदी, तांबा इन तीनों धातुओं को पवित्र माना गया है। हिन्दू धर्म में ऐसा माना गया है कि ये धातुएं कभी अपवित्र नहीं होती है। पूजा में इन्ही धातुओं के यंत्र भी उपयोग में लाए जाते हैं क्योंकि इन से यंत्र को सिद्धि प्राप्त होती है।

लेकिन सोना, चांदी धातुएं महंगी है जबकि तांबा इन दोनों की तुलना में सस्ता होने के साथ ही मंगल की धातु मानी गई। माना जाता है कि तांबे के बर्तन का पानी पीने से खून साफ होता है। इसलिए जब पूजा में आचमन किया जाता है तो अचमनी तांबे की ही रखी जानी चाहिए क्योंकि पूजा के पहले पवित्र क्रिया के अंर्तगत हम जब तीन बार आचमन करते हैं तो उस जल से कई तरह के रोग दूर होते हैं और रक्त प्रवाह बढ़ता है। इससे पूजा में मन लगता है और एकाग्रता बढ़ती है।
क्योंकि लोहा, स्टील और एल्यूमीनियम को अपवित्र धातु माना गया है तथा पूजा और धार्मिक क्रियाकलापों में इन धातुओं के बर्तनों के उपयोग की मनाही की गई है। इन धातुओं की मूर्तियां भी नहीं बनाई जाती। लोहे में हवा पानी से जंग लगता है। एल्यूमीनियम से भी कालिख निकलती है। इसलिए इन्हें अपवित्र कहा गया है। जंग आदि शरीर में जाने पर घातक बीमारियों को जन्म देते हैं। इसलिए लोहा, एल्युमीनियम और स्टील को पूजा में निषेध माना गया है। पूजा में सोने, चांदी, पीतल, तांबे के बर्तनों का उपयोग करना चाहिए।

Saturday, 2 December 2017

आज गुरु दत्तात्रेय जयंती

गुरु दत्तात्रेय जयंती

गुरु दत्तात्रेय का जन्म दिवस मार्गशीर्ष की पूर्णिमा जो आज है अतः आज मनाया जा रहा है यह उत्सव महाराष्ट्र में खासतौर से मनाया जाता है
हिन्दुधर्म में तीन देव  भगवान ब्रह्मा विष्णु महेश का सबसे उच्च स्थान है भगवान दत्तात्रेय का रूप इन तीनो देवो के रूप में मिलकर बना है
भगवान दत्तात्रेय सप्त ऋषि अत्रि एविम माता अनुसुइया के पुत्र है माता अनुसुईया एक पतिव्रता नारी थी इन्होंने ब्रह्मा विष्णु महेश के समान बल वाले पुत्र के लिए कठिन तपस्या की थी उनकी कठिन साधना के कारण तीनो देव इनकी प्रशंसा करते थे जिस कारण तीनो देवियो को माता अनुसुईया से ईर्ष्या होनी लगी तब तीनो देवियो के कहने पर त्रिदेव माता अनुसुईया की परीक्षा लेने आश्रम पहुंचे । तीनो देव रूप बदल कर अनुसुईया के पास पहुचे और भोजन कराने को कहा माता ने हां बोल दिया लेकिन तीनो ने कहा कि भोजन तभी ग्रहण करेंगे जब वे निर्वस्त्र हो कर शुद्धता से उन्हें भोजन परसेंगी माता ने कुछ विचार कर हामी भर दी माता ने मंत्र उच्चारण कर तीनो त्रिदेवो को तीन छोट छोटे बच्चों में परिवर्तित कर दिया और तीनों को बिना वस्त्र के स्तनपान कराया
जब ऋषि अत्रि आश्रम आये तो माता अनुसुईया ने सारी बात विस्तार से रख्खी जिसे ऋषि अत्रि पहले से जानते थे ऋषि अत्रि ने मंत्रो के द्वारा तीनो देवो को एक रूप में परिवर्तित कर एक बालक का रूप दे दिया जिसके तीन मुख एवं छः हाथ थे अपने पति को इस रूप में देख तीनो देवियो पछतावा होता है और ऋषि अत्रि एवं माता अनुसुईया से छमा मांग अपने पतियों को वापस देने का आग्रह करती है ऋषि अत्रि तीनो देवो को उनका मूर्त रूप दे देते है लेकिन तीनो देवो ने अपने आशीर्वाद के द्वारा दत्तात्रेय भगवान को बनाते है जो तीनों देवो का रूप कहलाते है इस प्रकार माता अनुसुईया परीक्षा में सफल हुई और उन्हें तीनो देवो के समान के पुत्र की प्राप्ति हुई


वराह दन्त (शुकर दन्त) पवारफुल प्रयोग विधान

शुक्रर दन्त सिद्ध करने का मंत्र..

“ ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं वाराह-दन्ताय भैरवाय नमः ”

 ‘शूकर-दन्त’ को सामने रखकर मन्त्र का  दीपावली, दशहरा , होली, आदि में १०८ बार जप करे। फिर इसका ताबीज गले में पहन ,  ताबीज धारण करने वाले पर भूत-प्रेत , जादू-टोना का प्रभाव नहीं होगा।

लोगों का वशीकरण होगा।

 मुकदमें में विजय प्राप्ति होगी।

रोगी ठीक होने लगेगा।

चिन्ताएँ दूर होंगी और शत्रु परास्त होंगे।

व्यापार में वृद्धि होगी।

अचूक चमत्कारी मायावी कुबेर धन लक्ष्मी उपाय

धन लक्ष्मी प्राप्ति का अचूक चमत्कारी मायावी
माँ धनलक्ष्मी 


 || मंत्र: ||

ॐ यक्षायै कुबेरायै वैष्णवायै धनधान्याधिपते धनधान्यसमृद्धेन में देहि दाप स्वाहा:

विधि: लक्ष्मी प्राप्ति की ये साधना कुबेर भगवन की साधना है।  इसके लिए पहले कुबेर यन्त्र का प्रबंध कर लो।


नहा कर पीले धुले हुए कपडे पहन लो।


समय - जिस दिन अमावस हो और रविवार हो उस रात ये साधना करनी है , बस एक रात की ही ये साधना है इस से आपके धन प्राप्ति के मार्ग खुल जायेंगे। 

साधक को रात के वक़्त खाली पेट रहना होगा।

कुबेर यन्त्र को पीले कपडे के आसान पर किसी आम की टेबल पर स्थापित करो और पूजन करो।


कोई पीले रंग की मिठाई ही अगर घर पर बनी हुई हो तो परसाद के लिए साथ रख सकते हो। घी का दिया जलाओ और धुप बत्ती लगाओ।


अब दिए गए मंत्र की मूंगे की माला से बस ११ माला का जप करना है।  जप के बाद गौ माता की आरती भी करनी है उसी दिए और धुप से और फिर वापिस दिए और धुप को अपनी जगह रख दो और गाय का परसाद गाय को खिला दो और फिर बाँट दो।

अब आपके धन प्राप्ति के सभी मार्ग खुले मिलेंगे इसको पुणे विश्वास से करके देखे.... 

काले जादू को पलटाना अचूक उपाय,

काले जादू को पलटाना

॥ मंत्र ॥

ॐ वज्र मुस्ठी वज्र किवाड़।
वज्र बाँधों दश द्वार।
वज्र पानी पिबेच्चांगे।
डाकिनी डापिनी रक्षोव सर्वांगे।
मन्त्र ज्यो शत्रु भयो।
डाकिनी वायो, जानु वायो।
काली काली शामनते।
ब्रह्मा की धीशु शाशु।
डाकिनी मिली करि।
मोरो जिड़ घात करेति।
पतने पानी करे।
गुआ करे।
याने करे।
सुते करे।
परिहासे करे।
नयन कटाक्षी करे।
आपो न हाते। परहाते।
जियति संचारे।
किलनी पोतनी।
अनिन्तुश्वरि करे।
एते विज्ञानं अहिन न नगयो।
मोहि करेत्साराकुठीतिलसकम सरुपद्रे।
ॐ मोसिद्धि गुरुपराय स्वीलिंग।
महादेव की आज्ञा।

विधि: २१ दिनों का ये अनुष्ठान है, २१ माला प्रतिदिन करनी है सूर्योदय से पहले।  और फिर जब भी आवश्यकता पड़े जल में त्राटक करते हुए मंत्र को सात बार जप करके जल में फूंक मारो।  तब ये जल काले जादू से ग्रसित व्यक्ति को पिलायें। जिसने किया है ये कला जादू। इस मंत्र शक्ति से कला जादू या किया कराया टोटका वापिस करने वाले पर चला जायेगा और कभी वापिस नही आएगा पर बुरा किसी का ना सोचे अपने परिवार का अच्छा ही सोचे ओर माँ महाकाली को अपना इष्ट मानते हुये जप करे ओर ये सब कार्य गुरुदेव की देखरेख मे हो तो अच्छा है.. सफलता आपके साथ होगी

रोज सुबह माँ आदिशक्ति का यह मंत्र बोलने मिलेगी सभी कामो मे सफलता

हर सुबह यह देवी मंत्र बोलने से काम होंगे सफल









इनमें ही हिन्दू वर्ष का पहला महीना चैत्र भी प्रमुख हैं। इसी माह के शुक्ल पक्ष की शुरूआत देवी भक्ति की 9 शुभ रातों यानी नवरात्रि से …होती है और यह काल हर मनोरथ पूरा करने वाला माना गया है।
यही वजह है कि पूरे चैत्र माह ही हर सुबह ही देवी स्मरण हर काम व मकसद सफल बनाने वाला माना गया है। ये सफलताएं इंसान को कई तरह से संकल्प, कर्म व कर्तव्य से जोड़कर जीवन में उजागर होती है। दरअसल, इंसानी जीवन की अहम इच्छाओं में एक है – सफलता, जिसे पाने के लिए बेहद जरूरी है – ज्ञान।
ज्ञानशक्ति ही मन को संकल्पित और चरित्र को उजला बनाकर कामयाबी के शिखर तक पहुंचाती है। इसके लिए

देवी उपासना के विशेष मंत्र जप का पूरे चैत्र माह में सवेरे बोलने का खास महत्व है।
अगर आप भी ज्ञान और कौशल से सफल व शक्ति संपन्न बनना चाहते हैं तो इस देवी मंत्र का स्मरण देवी के नीचे बताए तरीके से पूजा के बाद स्फटिक की माला से यथाशक्ति या 108 बार जरूर करें –
- स्नान के बाद देवी मंदिर या घर में देवी प्रतिमा की कुंकुम, फूल, अक्षत, लाल सूत्र व लाल वस्त्र चढ़ाकर मिठाई का भोग लगाएं।
- पूजा के बाद मंदिर में ही दीप जलाकर आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुख कर बैठें और यह मंत्र ध्यान करें –

विद्या: समस्तास्तव देवि भेदा: स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु। त्वयैकया पूरितमम्बयैत् का ते स्तुति: स्तव्यपरा परोक्ति:।।
- मंत्र ध्यान के बाद देवी आरती करें और सुख व सबलता की प्रार्थना करें।
आपको हर काम मे मिलेगी सफलता बस विश्वास आपका यही सत्य है,,,