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Sunday, 24 December 2017

कोन है जैन तीर्थंकर ओर कोन बनता है जैन.

सभी तीर्थंकरों ने साधारण मनुष्य के रूप में जन्म लिया

क्या हैं तीर्थंकर का अर्थ :-जो देवों और मनुष्य द्वारा पूज्य होते हैं, जो स्वयं तरते हैं तथा औरों को तरने का मार्ग बताते हैं, उन्हें तीर्थंकर कहते हैं। तीर्थंकर जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त होते हैं।जैन धर्म के इन्हीं तीर्थंकरों ने क्रमिक रूप से जैन धर्म की आधारशिला रखी। वैसे तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ को ऐतिहा‍‍‍सिक लोग जैन धर्म का संस्थापक मानते हैं और चौबीसवें अंत‍िम तीर्थंकर महावीर को जैन धर्म का संशोधक माना जाता है।.

जैन धर्म के अनुसार सभी तीर्थंकरों ने साधारण मनुष्य के रूप में जन्म लिया और अपनी इंद्रिय और आत्मा पर विजय प्राप्त कर वे तीर्थंकर बने। जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर हुए हैं। तीर्थंकर अर्हंतों में से ही होते हैं।संसार के प्राचीनतम धर्मों में से एक जैन धर्म है। इस धर्म का उल्लेख 'योगवशिष्ठ', 'श्रीमद्‍भागवत', 'विष्णु पुराण', 'शाकटायन व्याकरण', पद्म पुराण', 'मत्स्य पुराण' आदि प्राचीन ग्रंथों में भी जिन, जैन और श्रमण आदि नामों से मिलता है।जैनाचार्यों को जिन, जिनदेव या जिनेन्द्र आदि शब्दों से संबोधित किया जाता है। 'जिन' शब्द से ही 'जैन' शब्द की उत्पत्ति हुई है।'जिन' किसी व्यक्ति-विशेष का नाम नहीं है, वरन जो लोग आत्म-विकारों पर विजय प्राप्त कर लेते हैं, जो अपनी इंद्रियों को वशीभूत कर लेते हैं, ऐसे आत्मजयी व्यक्ति 'जिन' कहलाते हैं। इन्हीं को पूज्य अर्थ में अर्हत, अरिहंत अथवा अरहन्त भी कहा जाता है।क्या हैं तीर्थंकर का अर्थ :-जो देवों और मनुष्य द्वारा पूज्य होते हैं, जो स्वयं तरते हैं तथा औरों को तरने का मार्ग बताते हैं, उन्हें तीर्थंकर कहते हैं। तीर्थंकर जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त हो लेकिन आजकल वो जैन है कहाँ क्या आप अपने धर्म पर अडिग है नही क्यू आप अपने पंथ से हट रहे हो जबिक जैन धर्म भी हिन्दू सनातन धर्म एक शाखा है पर आजकल जैनअपने आपको अल्पसंख्यक मान बैठा है अपने विकारो को त्याग करने की बजाय उनको अपना बैठा है क्या कारण है क्या जैन भौतिक विलास या सम्पति बनाने के लिए रह गया है तो जो तीर्थंकर थे वो क्या थे उनके आचरण ओर उपदेशो का क्या हुआ क्या आज वो शक्ति नही रह गये है क्या जो आज सब नाम ओर पैसो की चाहत रखने लग गयै है जैन, जिन,  मतलब जो सभी विकारो से दुर अब ओर क्या कहे बस आज इतना ही नादान बालक की कलम से बाकी फिर कभी सभी तीर्थंकरो को शंत शंत प्रणाम ओर सच्चे जैन को हमारा नमन जय हो नाकोडा भैरव जी की जय हो बाबा आदिनाथ पार्श्वनाथ की.
आदमी अपने सत्कर्मो से महान बनता है यही सत्य है बाकी तीर्थ करो अनके कोई फर्क नही पडता यही सत्य है..... 

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