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Thursday, 30 November 2017

बाबा बजरंग बली का पावरफुल वशीकरण मंत्र

आज आप सभी को बाबा बजरंग बली का वशीकरण मन्त्र विधान कहते है पर जो करना सोच समझकर करना.. आगे माँ बाबा की इच्छा... गुरु आग्या जरुर ले..


“ॐ पीर बजरङ्गी, राम लक्ष्मण के सङ्गी।
जहां-जहां जाए, फतह के डङ्के बजाय।
‘अमुक को मोह के, मेरे पास न लाए, तो अञ्जनी का पूत न कहाय।
दुहाई राम-जानकी की।”

नोट, अमुक या अमुकी की जगह लडकी या लडके का नाम लिखे....

विधि - ११ माला ११ दिनों तक, उक्त मन्त्र का जप कर ke इसे सिद्ध कर ले। शुभ दिन है ‘हनुमान-जयन्ती’ या ‘राम-नवमी’ । दूध निर्मित पदार्थ या दूध पर प्रयोग के समय ११ बार मन्त्र पढ़कर पिला या खिला देने से, वशीकरण  पक्का होगा बात आस्था ओर विश्वास की है.. ।

वास्तविक तंत्र है क्या, क्या आप जानते है,

वास्तविक तंत्र है क्या ,क्या आप जानते है नही तो आईये जानते है की असली तंत्र किसको कहाँ जाता है ओर क्यू एक छोटा सी पहल तंत्र विधान है क्या कहते है..

मंत्र साधनाओं एवं तंत्र के क्षेत्र में आज लोगों में रूचि बड़ी है, परन्तु फिर भी समाज में तंत्र के नाम से अभी भी भय व्याप्त है| यह पूर्ण शुद्ध सात्विक प्रक्रिया है, विद्या है परन्तु कालान्तर में तंत्र साधनाओं में विकृतियां आ गई| समाज के कुछ ओछे व्यक्तियों ने अपने निजी स्वार्थवश ऋषियों द्वारा बताए अर्थ को परिवर्तित कर अपनी अनुकूलता के अनुसार परिभाषा दे दी| वह विडम्बना रही है, कि भारतीय ज्ञान का यह उज्ज्वलतम पक्ष अर्थात तंत्र समाज में घृणित हो गया और आज भी समाज का अधिकांश भाग तंत्र के इस घृणित पक्ष से त्रस्त और भयभीत है|

परम्परागत तरीके से चले आ रहे इन तंत्र विद्याओं में परिवर्तन आवश्यक है| परम्परागत और नवीनता तो प्रकृति का नियम है| परम्परागत रूप से  चली आ रही साधना पद्धतियों में भी समयानुकूल परिवर्तन आवश्यक है तभी तंत्र और मंत्र की विशाल शक्ति से समाज का प्रत्येक व्यक्ति लाभान्वित हो सकेगा| यह युग के अनुकूल मंत्र साधनाएं प्रस्तुत कर सकें, चिन्तन दे सकें जिसे सामान्य व्यक्ति भी संपन्न कर लाभान्वित हो सके| और जब तक परिवर्तन नहीं होगा तब तक न अज्ञान मिटेगा और न ही ज्ञान का संचार ही हो सकेगा|

ओर तंत्र शास्त्र भारत की एक प्राचीन विद्या है। तंत्र ग्रंथ भगवान शिव के मुख से आविर्भूत हुए हैं। उनको पवित्र और प्रामाणिक माना गया है। भारतीय साहित्य में 'तंत्र' की एक विशिष्ट स्थिति है, पर कुछ साधक इस शक्ति का दुरुपयोग करने लग गए, जिसके कारण यह विद्या बदनाम हो गई।

कामी, क्रोधी, लालची, इनसे भक्ति न होय ।
 भक्ति करे कोइ सूरमा, जाति वरन कुल खोय ॥

जो तंत्र से भय खाता हैं, वह मनुष्य ही नहीं हैं, वह साधक तो बन ही नहीं सकता! गुरु गोरखनाथ के समय में तंत्र अपने आप में एक सर्वोत्कृष्ट विद्या थी और समाज का प्रत्येक वर्ग उसे अपना रहा था! जीवन की जटिल समस्याओं को सुलझाने में केवल तंत्र ही सहायक हो सकता हैं! परन्तु गोरखनाथ के बाद में भयानन्द आदि जो लोग हुए उन्होंने तंत्र को एक विकृत रूप दे दिया! उन्होंने तंत्र का तात्पर्य भोग, विलास, मद्य, मांस, पंचमकार को ही मान लिया ।

“मद्यं मांसं तथा मत्स्यं मुद्रा मैथुनमेव च, मकार पंचवर्गस्यात सह तंत्रः सह तान्त्रिकां”

जो व्यक्ति इन पांच मकारो में लिप्त रहता हैं वही तांत्रिक हैं, भयानन्द ने ऐसा कहा! उसने कहा की उसे मांस, मछली और मदिरा तो खानी ही चाहिए, और वह नित्य स्त्री के साथ समागम करता हुआ साधना करे! ये ऐसी गलत धरना समाज में फैली की जो ढोंगी थे, जो पाखंडी थे, उन्होंने इस श्लोक को महत्वपूर्ण मान लिया और शराब पीने लगे, धनोपार्जन करने लगे, और मूल तंत्र से अलग हट गए, धूर्तता और छल मात्र रह गया! और समाज ऐसे लोगों से भय खाने लगे! और दूर हटने लगे! लोग सोचने लगे कि ऐसा कैसा तंत्र हैं, इससे समाज का क्या हित हो सकता हैं? लोगों ने इन तांत्रिकों का नाम लेना बंद कर दिया, उनका सम्मान करना बंद कर दिया, अपना दुःख तो भोगते रहे परन्तु अपनी समस्याओं को उन तांत्रिकों से कहने में कतराने लगे, क्योंकि उनके पास जाना ही कई प्रकार की समस्याओं को मोल लेना था! और ऐसा लगने लगा कि तंत्र समाज के लिए उपयोगी नहीं हैं।

परन्तु दोष तंत्र का नहीं, उन पथभ्रष्ट लोगों का रहा, जिनकी वजह से तंत्र भी बदनाम हो गया! सही अर्थों में देखा जायें तो तंत्र का तात्पर्य तो जीवन को सभी दृष्टियों से पूर्णता देना हैं!

जब हम मंत्र के माध्यम से देवता को अनुकूल बना सकते हैं, तो फिर तंत्र की हमारे जीवन में कहाँ अनुकूलता रह जाती हैं? मंत्र का तात्पर्य हैं, देवता की प्रार्थना करना, हाथ जोड़ना, निवेदन करना, भोग लगाना, आरती करना, धुप अगरबत्ती करना, पर यह आवश्यक नहीं कि लक्ष्मी प्रसन्ना हो ही और हमारा घर अक्षय धन से भर दे! तब दुसरे तरीके से यदि आपमें हिम्मत हैं, साहस हैं, हौसला हैं, तो क्षमता के साथ लक्ष्मी की आँख में आँख डालकर आप खड़े हो जाते हैं और कहते हैं कि मैं यह तंत्र साधना कर रहा हूँ, मैं तुम्हें तंत्र में आबद्ध कर रहा हूँ और तुम्हें हर हालत में सम्पन्नता देनी हैं, और देनी ही पड़ेगी।

पहले प्रकार से स्तुति या प्रार्थना करने से देवता प्रसन्ना न भी हो परन्तु तंत्र से तो देवता बाध्य होते ही हैं, उन्हें वरदान देना ही पड़ता हैं! मंत्र और तंत्र दोनों ही पद्धतियों में साधना विधि, पूजा का प्रकार, न्यास सभी कुछ लगभग एक जैसा ही होता हैं, बस अंतर होता हैं, तो दोनों के मंत्र विन्यास में, तांत्रोक्त मंत्र अधिक तीक्ष्ण होता हैं! जीवन की किसी भी विपरीत स्थिति में तंत्र अचूक और अनिवार्य विधा हैं।

आज के युग में हमारे पास इतना समय नहीं हैं, कि हम बार-बार हाथ जोड़े, बार-बार घी के दिए जलाएं, बार-बार भोग लगायें, लक्ष्मी की आरती उतारते रहे और बीसों साल दरिद्री बने रहे, इसलिए तंत्र ज्यादा महत्वपूर्ण हैं, कि लक्ष्मी बाध्य हो ही जायें और कम से कम समय में सफलता मिले! बड़े ही व्यवस्थित तरीके से मंत्र और साधना करने की क्रिया तंत्र हैं! किस ढंग से मंत्र का प्रयोग किया जायें, साधना को पूर्णता दी जायें, उस क्रिया का नाम तंत्र हैं! और तंत्र साधना में यदि कोई न्यूनता रह जायें, तो यह तो हो सकता हैं, कि सफलता नहीं मिले परन्तु कोई विपरीत परिणाम नहीं मिलता! तंत्र के माध्यम से कोई भी गृहस्थ वह सब कुछ हस्तगत कर सकता हैं, जो उसके जीवन का लक्ष्य हैं! तंत्र तो अपने आप में अत्यंत सौम्य साधना का प्रकार हैं, पंचमकार तो उसमें आवश्यक हैं ही नहीं! बल्कि इससे परे हटकर जो पूर्ण पवित्रमय सात्विक तरीके, हर प्रकार के व्यसनों से दूर रहता हुआ साधना करता हैं तो वह तंत्र साधना हैं।

जनसाधारण में इसका व्यापक प्रचार न होने का एक कारण यह भी था कि तंत्रों के कुछ अंश समझने में इतने कठिन हैं कि गुरु के बिना समझे नहीं जा सकते । अतः  ज्ञान का अभाव ही शंकाओं का कारण बना।

तंत्र शास्त्र वेदों के समय से हमारे धर्म का अभिन्न अंग रहा है। वैसे तो सभी साधनाओं में मंत्र, तंत्र एक-दूसरे से इतने मिले हुए हैं कि उनको अलग-अलग नहीं किया जा सकता, पर जिन साधनों में तंत्र की प्रधानता होती है, उन्हें हम 'तंत्र साधना' मान लेते हैं। 'यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे' की उक्ति के अनुसार हमारे शरीर की रचना भी उसी आधार पर हुई है जिस पर पूर्ण ब्रह्माण्ड की।

तांत्रिक साधना का मूल उद्देश्य सिद्धि से साक्षात्कार करना है। इसके लिए अन्तर्मुखी होकर साधनाएँ की जाती हैं। तांत्रिक साधना को साधारणतया तीन मार्ग : वाम मार्ग, दक्षिण मार्ग व मधयम मार्ग कहा गया है।

श्मशान में साधना करने वाले का निडर होना आवश्यक है। जो निडर नहीं हैं, वे दुस्साहस न करें। तांत्रिकों का यह अटूट विश्वास है, जब रात के समय सारा संसार सोता है तब केवल योगी जागते हैं।

तांत्रिक साधना का मूल उद्देश्य सिद्धि से साक्षात्कार करना है। यह एक अत्यंत ही रहस्यमय शास्त्र है ।
चूँकि इस शास्त्र की वैधता विवादित है अतः हमारे द्वारा दी जा रही सामग्री के आधार पर किसी भी प्रकार के प्रयोग करने से पूर्व किसी योग्य तांत्रिक गुरु की सलाह अवश्य लें। अन्यथा किसी भी प्रकार के लाभ-हानि की जिम्मेदारी आपकी होगी।

परस्पर आश्रित या आपस में संक्रिया करने वाली चीजों का समूह, जो मिलकर सम्पूर्ण बनती हैं, निकाय, तंत्र, प्रणाली या सिस्टम (System) कहलातीं हैं। कार है और चलाने का मन्त्र भी आता है, यानी शुद्ध आधुनिक भाषा मे ड्राइविन्ग भी आती है, रास्ते मे जाकर कार किसी आन्तरिक खराबी के कारण खराब होकर खडी हो जाती है, अब उसके अन्दर का तन्त्र नही आता है, यानी कि किस कारण से वह खराब हुई है और क्या खराब हुआ है, तो यन्त्र यानी कार और मन्त्र यानी ड्राइविन्ग दोनो ही बेकार हो गये, किसी भी वस्तु, व्यक्ति, स्थान, और समय का अन्दरूनी ज्ञान रखने वाले को तान्त्रिक कहा जाता है, तो तन्त्र का पूरा अर्थ इन्जीनियर या मैकेनिक से लिया जा सकता है जो कि भौतिक वस्तुओं का और उनके अन्दर की जानकारी रखता है, शरीर और शरीर के अन्दर की जानकारी रखने वाले को डाक्टर कहा जाता है, और जो पराशक्तियों की अन्दर की और बाहर की जानकारी रखता है, वह ज्योतिषी या ब्रह्मज्ञानी कहलाता है, जिस प्रकार से बिजली का जानकार लाख कोशिश करने पर भी तार के अन्दर की बिजली को नही दिखा सकता, केवल अपने विषेष यन्त्रों की सहायता से उसकी नाप या प्रयोग की विधि दे सकता है, उसी तरह से ब्रह्मज्ञान की जानकारी केवल महसूस करवाकर ही दी जा सकती है।

जो वस्तु जितने कम समय के प्रति अपनी जीवन क्रिया को रखती है वह उतनी ही अच्छी तरह से दिखाई देती है और अपना प्रभाव जरूर कम समय के लिये देती है मगर लोग कहने लगते है, कि वे उसे जानते है, जैसे कम वोल्टेज पर वल्व धीमी रोशनी देगा, मगर अधिक समय तक चलेगा, और जो वल्व अधिक रोशनी अधिक वोल्टेज की वजह से देगा तो उसका चलने का समय भी कम होगा, उसी तरह से जो क्रिया दिन और रात के गुजरने के बाद चौबीस घंटे में मिलती है वह साक्षात समझ मे आती है कि कल ठंड थी और आज गर्मी है, मगर मनुष्य की औसत उम्र अगर साठ साल की है तो जो जीवन का दिन और रात होगी वह उसी अनुपात में लम्बी होगी, और उसी क्रिया से समझ में आयेगा.जितना लम्बा समय होगा उतना लम्बा ही कारण होगा, अधिकतर जीवन के खेल बहुत लोग समझ नही पाते, मगर जो रोजाना विभिन्न कारणों के प्रति अपनी जानकारी रखते है वे तुरत फ़ुरत में अपनी सटीक राय दे देते है.यही तन्त्र और और तान्त्रिक का रूप कहलाता है.

तन्त्र परम्परा से जुडे हुए आगम ग्रन्थ हैं। इनके वक्ता साधारणतयः शिवजी होते हैं।

तन्त्र का शाब्दिक उद्भव इस प्रकार माना जाता है - “तनोति त्रायति तन्त्र” । जिससे अभिप्राय है – तनना, विस्तार, फैलाव इस प्रकार इससे त्राण होना तन्त्र है। हिन्दू, बौद्ध तथा जैन दर्शनों में तन्त्र परम्परायें मिलती हैं। यहाँ पर तन्त्र साधना से अभिप्राय "गुह्य या गूढ़ साधनाओं" से किया जाता रहा है।

तन्त्रों को वेदों के काल के बाद की रचना माना जाता है और साहित्यक रूप में जिस प्रकार पुराण ग्रन्थ मध्ययुग की दार्शनिक-धार्मिक रचनायें माने जाते हैं उसी प्रकार तन्त्रों में प्राचीन-अख्यान, कथानक आदि का समावेश होता है। अपनी विषयवस्तु की दृष्टि से ये धर्म, दर्शन, सृष्टिरचना शास्त्र, प्रचीन विज्ञान आदि के इनसाक्लोपीडिया भी कहे जा सकते हैं।

समाज में आज बहुत ही ऐसे व्यक्ति मिलेंगे जो भौतिक चिन्तन से ऊपर उठाकर साधनात्मक जीवन जीने की ललक रखते हैं| मात्र दैनिक पूजा या अर्चना से ही प्रसन्न हो जाते हैं, परन्तु उनमें दुर्लभ साधनाओं के प्रति बिल्कुल कोई लालसा नहीं है| पूजा एक अलग चीज है, साधना एक बिल्कुल अलग चीज है|

साधना केवल वही दे सकता है जो गुरु है| आज गाँव, नुक्कड़ में कई पुजारी मिल जायेंगे, पंडित मिल जायेंगे पर वे गुरु नहीं हो सकते, उनमें कोई साधनात्मक बल नहीं होता है| वह पूजा, कर्मकांड मात्र एक ढकोसला है जिसमें समाज आज पुरी तरह फंसा है| यही कारण है कि व्यक्ति जीवन भर मन्दिर जाते हैं, सत्य नारायण की कथा तो कराते हैं, यज्ञ भी कराते हैं, परन्तु उन्हें न तो किसी प्रकार की कोई साधनात्मक अनुभूति होती है और न ही किसी देवी या देवता के दर्शन ही होते हैं फिर भी वे स्वयं साधना के क्षेत्र में पदार्पण नहीं करते| यदि व्यक्ति इन्हें जीवन में स्थान दें, तो वह सब कुछ स्वयं ही प्राप्त कर सकता है ऐसा नही है कि सभी कर्म कांड ज्योतिषये गलत है साल मे एक बार अच्छे आचार्य या मंत्र ज्योतिष से होम शांति हवन या नो चण्डी सर्व बाधा निवारण मंत्र हवन जप के साथ या सक्षम है तो शतचण्डी उचित जानकार ज्योतिष के सानीधेय मे हो तो बहुत अच्छा..बाकी कई जगह दुकाने खुली है बाकायदा उनकी रेट लिस्ट है यही सत्य है

साधना से या तंत्र, मंत्र ज्योतिष या सही कर्म कांण्डी आचार्य  से न तो भयभीत होने की आवश्यकता है और न ही घृणा करने की आवश्यकता है|पहले  इनके वास्तविक अर्थ को समझ कर तीव्रता से इस क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने की| अधिकांशतः लोग तंत्र को वामाचार अथवा बलि परम्परा से जोड़ते हैं परन्तु तंत्र में बलि का वास्तविक अर्थ क्या है इस और ध्यान दिया ही नहीं गया| ग्राम देवता, कुल देवता या इष्ट देवता को प्रसन्न करने के लिये बलि परम्परा आदि गाँवों में प्रचलित है, और कई ओझा, तांत्रिक बलि देते भी हैं, परन्तु शायद उन ढोंगियों  को यह ज्ञात नहीं है कि बलि का तात्पर्य होता है अपने अहंकार की बलि, अपनी पाशविक प्रवृत्तियों की बलि न कि किसी पशु या भैस की बलि| इस अहम् की बलि के बाद इष्ट देवता के प्रति समर्पण का भाव उत्पन्न होता है और ईश्वरीय कृपा प्राप्त होती है|

तंत्र या साधना क्षेत्र तो पूर्ण सात्विक प्रक्रिया है, जिसे मात्र आत्म शुद्धि द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है| इसमें मांस, मदिरा, मैथुन आदि का तो नाम ही नहीं है, अपितु इसके विपरीत साधनाओं में सफलता तभी मिल सकती है, जब साधक अपने विकारों, काम, क्रोध, लोभ, अहम् की बलि दे सके| केवल यही बलि साधक को देनी होती हैं...

नोट, सारे मंत्र विधान या साधना अच्छे गुरु की देखरेख मे ही करे बाकी आपकी हालत के आप स्वयंम जिम्मेदार होंगे....

जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 

पावरफुल वुडू वशीकरण शाबर मंत्र

पावरफुल वशीकरण वडू शाबर मंत्र..
जय माँ जय बाबा की.....

बांधूं इंद्र को, बांधूं तार।
बांधूं बांधूं लोहे का आरा।
उठे इंद्र न बोले बाबा।
सुख साख धूनी हो जाय।
तन ऊपर फेंकी , कड़े होय सूत।
में तो बंधन बांध्यो, सांस सुसुर जाया पूत।
मन बांधूं, मंत्र बांधूं विद्या के साथ।
चार खूंट फिर आये फलानि फलाने के साथ।

नोट: स्त्री को मोहित करना है तो फलानि फलाने के साथ नहीं तो पुरुष के लिए फलाना फलानि के साथ

विधि : यदि कामिनी को मोहित करना हो तो शनिवार को उसके बांये पैर के नीचे कि मिटटी और पुरुष को आकर्षित करना हो तो दायें पैर के नीचे कि मिटटी ले आओ।  उस मिटटी से एक मिलती जुलती  प्रतिमा बना लो।  अब आधी रात को नंगे होकर ऊपर दिया गए मंत्र से पूजन और धुप दीप करो।  एक घंटे तक मंत्र जप करके फिर एक कच्चे सूत से मंत्र जप करते हुए उस पुतली को बांध दें, और उसको छुपा कर रख दें। और अब चमत्कार देखें।
सावधान,, गलत कार्य कैसे भी किया जाये तो वो गलत ही होगा क्योंकि उसके परिणाम कभी ना कभी भोगने पडते है..
जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश 

नींबू एक उपाय अनेक देखये कुछ टोटके

टोटका ही नहीं वास्‍तु दोष कम करने में भी इस्‍तेमाल होता है नींबू

नींबू एक ऐसा वृक्ष, जो लगभग हर जगह आसानी से मिल जाता है। नींबू विटामिन सी का प्रमुख स्रोत है। यह अम्लीय होने पर भी पित्तनाशक होता है। अन्य फल पकने पर मीठे हो जाते हैं, परन्तु नींबू अपनी प्रत्येक अवस्था में अम्लीय ही रहता है। यह एक औषधीय फल है, जिसका प्रयोग अधिकतर लोग अपने भोजन को रूचिकर बनाने में करते है।
धार्मिक कार्यो के रूप में प्रायः नींबू का प्रयोग नजर दोष तथा किसी के द्वारा टोने-टोटके से बचाने के लिए भी किया जाता है। नींबू का विभिन्न प्रकार से प्रयोग करके बुरी नजर एंव बुरी हवाओं से बचा जा सकता है।
1- नींबू का पौधा घर में होने से बुरी हवायें घर में प्रवेश नहीं कर पाती है एंव वास्तु दोष का प्रभाव भी कम हो जाता है।
2- जब कभी किसी छोटे बच्चों को नजर लग जाती है तो, वह दूध उलटने लगता है और दूध पीना बन्द कर देता है, ऐसे में परिवार के लोग चिंतित और परेशान हो जाते है। ऐसी स्थिति में एक बेदाग नींबू लें और उसको बीच में आधा काट दें तथा कटे वाले भाग में थोड़े काले तिल के कुछ दाने दबा दें। और फिर उपर से काला धागा लपेट दें। अब उसी नींबू को बालक पर उल्टी तरफ से 7 बार उतारें। इसके पश्चात उसी नींबू को घर से दूर किसी निर्जन स्थान पर फेंक दें। इस उपाय से शीघ्र ही लाभ मिलेगा।
3- यदि एक स्वस्थ्य व्यक्ति अचानक अस्वस्थ्य हो जायें और उस पर चिकित्सा का प्रभाव नहीं हो रहा है तो समझना चाहिए कि उक्त व्यक्ति नजरदोष से ग्रसित है। ऐसी स्थिति में एक साबूत नींबू के उपर काली स्याही से 307 लिख दें और उस व्यक्ति के उपर उल्टी तरफ से 7 बार उतारें। इसके पश्चात उसी नींबू को चार भागों में इस प्रकार से काटें कि वह नीचें से जुड़े रहें। और फिर उसी नींबू को घर से बाहर किसी निर्जन स्थान पा फेंक दें। यह उपाय करने से पीडि़त व्यक्ति शीघ्र ही स्वस्थ्य हो जायेगा।
4- मोटापा दूर करने के लिए- प्रातः काल खाली पेट 250 मिली हल्के गर्म जल में एक नींबू का रस व दो चम्मच शहद मिलाकर नित्य सेवन करने से लाभ मिलेगा।
5- यदि किसी मनुष्य को रात में अक्सर डारवने सपने आते है, जिसके कारण वह डर जाता और ठीक से नींद नहीं आती है। ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति की तकिये के नीचे एक हरा नींबू रख दें, और सूख जाने पर वह नींबू हटाकर दूसरा हरा नींबू रख दें। यह क्रिया लगातार 5 बार करने से दुःस्वपन आना बन्द हो जायेंगे और ठीक से नींद भी आने लगेगी।

Wednesday, 29 November 2017

गोरक्ष आदेश नव नाथ स्तुति

यू तो नाथ सम्प्रदाय मे कई नाथ हुये है पर नवनाथ ओर चौरासी सिद्धो को ज्यादा महत्व दिया है क्योंकि यह सभी किसी ना किसी देव के अंशाअवतार रहे है इसलिए सभी अपनी प्रति या परिपाटी छोड़ चूके है पर नाथ संप्रदाय अभी तक बाबा सदाशिव आदिनाथ यानि भोलेनाथ के वचनो पर कायम है

प्रमुख नाथ.., सिद्धो आदेश,
ॐ सिद्धायै नमः
बाबा सदाशिव आदिनाथ जी जो जैन धर्म मे भी आदि नाथ के नाम से जाने जाते है,
मत्स्येन्द्र नाथ जी, मछेन्द्र नाथ जी,
गोरक्ष नाथजी , गोरख नाथ जी,
जलंधर नाथ जी ,जन पीर साहिब ,
कनीफा नाथ जी,
गहनीनाथ जी, गाबी पीर साहिब,
नागेश नाथ जी,
चपटीनाथ जी,
भरतरीनाथ जी,
रेवण नाथ जी,
स्तुति,,
“आदि-नाथ कैलाश-निवासी, उदय-नाथ काटै जम-फाँसी। सत्य-नाथ सारनी सन्त भाखै, सन्तोष-नाथ सदा सन्तन की राखै। कन्थडी-नाथ सदा ,सुख-दाई, अञ्चति अचम्भे-नाथ सहाई। ज्ञान-पारखी सिद्ध चौरङ्गी, मत्स्येन्द्र-नाथ दादा बहुरङ्गी। गोरख-नाथ सकल घट-व्यापी, काटै कलि-मल, तारै भव-पीरा। नव-नाथों के नाम सुमिरिए, तनिक भस्मी ले मस्तक धरिए। रोग-शोक-दारिद नशावै, निर्मल देह परम सुख पावै। भूत-प्रेत-भय-भञ्जना, नव-नाथों का नाम। सेवक सुमरे चन्द्र-नाथ, पूर्ण होंय सब काम।।”

विधिः- प्रतिदिन नव-नाथों का पूजन कर उक्त स्तुति का २१ बार पाठ कर मस्तक पर भस्म लगाए। इससे नवनाथों की कृपा मिलती है। साथ ही सब प्रकार के भय-पीड़ा, रोग-दोष, भूत-प्रेत-बाधा दूर होकर मनोकामना, सुख-सम्पत्ति आदि अभीष्ट कार्य सिद्ध होते हैं। २१ दिनों तक, २१ बार पाठ करने से सिद्धि होती है।

जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश..

Monday, 27 November 2017

कुलदेवता आकर्षण मंत्र

कुलदेवता आकर्षण मंत्र...


ॐ नमो कामद काली कामक्षा देवी तेरे सुमरे बेडा पार,
पढि पढि मारुं गिन गिन फूल,
जाहि बुलाई सोई आये,
हांक मार हनुमान वीर पकड ला जल्दी,
दुहाई तोय सीता सती, अंजनी माता की,
मेरा मंत्र सांचा पिण्ड काचा, फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा,

इस मंत्र का ५१ दिन तक जाप होता है बाबा लंगोटी वाले के मंदिर मे बाबा के सभी यम नियम का पालन होता है ५१ दिन पूरे होने पर ५२ वे विशेष पुजा होती है जिसमें आपको कोई आदमी दिखाई दे सकता है ओर कोई ध्वनि भी सुनाई दे सकती है या स्वप्न भी आ सकता है ५१ दिन मंत्र जप करने के बाद आप इसका प्रयोग किसी ओर के लिये भी कर सकते है किसी का दोष जानने के लिये..
पुणे विधी आप यहाँ किसी भी ऐडमिन से प्राप्त कर सकते है

जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश..
🙏🏻🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🙏🏻

श्री हनुमाष्टादशाक्षर मन्त्र-प्रयोग

श्री हनुमाष्टादशाक्षर मन्त्र-प्रयोग
मन्त्रः-

जय माँ जय बाबा महाकाल....

*“ॐ नमो हनुमते आवेशय आवेशय स्वाहा ।”*

विधिः- अब विधा विधान कहते है सबसे पहले हनुमान जी की एक मूर्त्ति रक्त-चन्दन से बनवाए ।
किसी शुभ मुहूर्त्त में उस मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा कर उसे रक्त-वस्त्रों से सु-शोभित करे ।
फिर रात्रि में स्वयं रक्त-वस्त्र धारण कर, रक्त आसन पर पूर्व की तरफ मुँह करके बैठे ।
हनुमान जी उक्त मूर्त्ति का पञ्चोपचार से पूजन करे ।
किसी नवीन पात्र में गुड़ के चूरे का नैवेद्य लगाए और नैवेद्य को मूर्ति के सम्मुख रखा रहने दे ।
घृत का ‘दीपक’ जलाकर, रुद्राक्ष की माला से उक्त ‘मन्त्र’ का नित्य ११०० जप करे .
और जप के बाद स्वयं भोजन कर, ‘जप’-स्थान पर रक्त-वस्त्र के बिछावन पर सो जाए ।
अगली रात्रि में जब पुनः पूजन कर नैवेद्य लगाए, तब पहले दिन के नैवेद्य को दूसरे पात्र में रख लें । इस प्रकार २१ दिन करे ।
२२वें दिन एकत्र हुआ ‘नैवेद्य’ किसी दुर्बल ब्राह्मण को दे दें
अथवा
पृथ्वी में गाड़ दे ।
ऐसा करने से हनुमान जी रात्रि में स्वप्न में दर्शन देकर सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान कर सेकतेे हैं ।
स्वप्न नही आये तो दुबारा कोशिश करे पर पुणे समर्पित की भावना से '
‘पर प्रयोग’ को गुप्त-भाव से करना चाहिए ओर किसी को बताना भी नही चाहिए.. ।
प्रणाम प
जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश....
🙏🏻🌹🌹🌹🌹🌹🙏🏻

Sunday, 26 November 2017

आत्मा अवलोकन

ॐ जय माँ जय महाकाल ॐ

ध्यान से आत्मा का महत्व

मैं तुम्हे बहुत कुछ देना चाहती हूं पर तुम अपने अंतर वो जिज्ञासा जगाओ।
लेने की अगर तुम स्वार्थी हुए तो बड़ी पराकाष्ठा होगी। तुम्हारे अस्तित्व की
अपने अंदर वो तपिश पैदा करो कि अगर तुम्हारे औरामैं कोई भी प्राणी आये वो परम आनंद से भर जाये।तुम देखो उस घटना के क्रम को ,परत दर परत उतरती जाएगी तुम्हे सपने की आखरी में तुम पाओगे तुम शुन्यम स्थिति में हो, जिसे तुम अपना अपना की गुहार लगाये हुये हो, वो तुम्हारा कुछ नही तुम भी वो नही जो तुम सपने में देख रहे हो।अब निकल आओ अपने इस निर्जीव पोशाक से
आत्मअवलोकन

ॐ जय माँ जय महाकाल ॐ

प्रैत बाधा मुक्ति का सरल ओर छोटा सा पर सटीक उपाय

आज एक प्रेत बाधा का छोटा सा मंत्र दे रहे है जो दो साल पहले भी दिया था आज वापस दे रहे काम मे ले तो अपने गुरु ओर इष्ट ओर मंत्र के प्रति पुणे विश्वास के साथ करे...

मंत्र,,,

बन्द बन्द शिव बन्द बन्द..

विधी...
इस मंत्र का ग्यारह हजार का जाप करे...
ओर एक सौ आठ बार जप हवन कर लिजिये गुगल से....
फिर उडद के दानो से जप करते हुये प्रेत बाधा यूक्त व्यक्ति पर फेंकते जाये...

Friday, 24 November 2017

गुरू क्या है ओर गुरू मंत्र क्या है गुरु तत्व क्या है

गुरु क्या है गुरु मंत्र क्या है
गुरु का मतलब क्या है शिष्य कोन ओर क्या पुरक है दोनो  मे पर गुरु का बोध शिष्य को हो तभी तो गुरु तत्व जाग्रत अवस्था मे आता है बिना गुरु नाम का बोध हुये आप कैसे शिष्य हो ये हमे नही पता गुरु अपने आप मे महा बीज मंत्र है गुरु किसी इंसान को कहाँ जाता है या नही ये आप की अवस्था पर निर्भर है जब तक आप अपने अंदर गुरु नाम का दीप नही जला लेते तब तक गुरु शिष्य का रिश्ता बेमानी है सबसे पहले आपमे अपने गुरु के प्रति आदर भाव होना जरुरी है उनका चेहरा नही चरण देखना जरुरी है जो गुरु चरणो का चेहता बन गया उससे पर इष्ट कृपा भी जल्दी होती है बाकी जगत पिता के कई पुत्र है जौ अपने आपको उनके चैले मानते है जैसे जगत पिता ने उनको क्रिया दी हो मंत्र दिये हो पर आजकल सब संभव है इसमे कोई बडी बात नही है ओर तो ओर कोई बोतल मे जिन्न भूत के नाम से बंद बोतल मे भूत जिन्न बेच रहा है कोई पैसे लेकर देवी यक्षिणी की साधना करा रहा है अरे साधना करने से पहले उससे ये तो पुछौ की उसने देवी यक्षिणी की साधना की है उसका क्या अनुभव है क्या उनकी प्रतिक्रिया है किस रुप मे प्राप्त करे या कोई देवी कर्णपश्चिनी साधना बेच रहा है या कोई शिविर लगाकर शाबर साधना या दिक्षा दे रहा है उनसे इनका बेसिक ग्यान तो लो पहले की उनका अनुभव कैसा था ओर उनके पास है क्या तीन दिन मे कोई साधक नही बन सकता उनमे समय लगता है जिनके गुरु का पता नही गुरु स्थान का पता नही वो आजकल आचार्य बने हुये है किताबी ग्यान के हिसाब बस रटे रटाये शब्दो का ग्यान देने से पहले कोई उनका मर्म नही समझ पाते बस सबको मारण मोहन वशीकरण उच्चाटन ओर प्रेत साधना या कोई देवीयो को प्रकट करने लगा है उनसे दीक्षा ले रहे है जिनका इनसे कोई दुर दुर का नाता नही क्या गुरु ओर शिष्य का संबंध इन सभी साधनाओ तक ही सीमित रह गया है, क्या इसलिए गुरु की जरुरत पडती है क्या बुरी शक्तियों को प्रकट होना या अच्छी शक्तियां का प्रकट होना आपके अनुसरण पर निर्भर है किसी ओर पर नही गुरु तूल्य होना या गुरु होना या बनाना ये आप पर निर्भर है गुरु नाम का वो बह्मस्त्रा है जो आपकी जिंदगी भर रक्षा करता है ये आपकी ढाल है इसलिए आपमे गुरु तत्व का उत्पन्न होना जरुरी है जब तक आप अपने ओर गुरु के प्रति वफादार नही रह सकते कोई आपमे सिद्धि या साधना जैसी वस्तू उत्पन्न नही कर सकता यही सत्य है जिसकी जानकारी उसको पाने की तमन्ना अच्छी है पर जब तक गुरु ना कहे उससे दूर रहो यह भी सत्य है गुरु बिना शिष्य उस डाली की तरह होता है जो पेड से टूट कर लटक चूकी हो हर साधना मे गुरु मंत्र का विशेष महत्व होता यही आपका सुरक्षा कवच होता है इसलिए जब भी कोई साधना करो गुरु मंत्र का जप शुरुआत मे बीच मे अंत मे जरूर करे आपको सफलता जरूर मिलेगी जो गुरु मुखी होते है वो दुसरे गुरु की निंदा भी नही करते जितना अपने गुरु का सम्मान करते हो उतना ही ओर गुरुओ का सम्मान करे उतना ही अच्छा है बाकी आप ओर आपका आध्यात्मिक आपको मुबारक मानो तो अच्छा नही मानो तो अच्छा यहाँ कोई पुणे नही  पर कोई किसी से कम नही यही सत्य है इसलिए पहले स्वयंम को परखो फिर आगे बढो किताबी  ओर गुगल बाबाओ से अच्छा है कि स्वयंम अनुभव लो ओर गुरु चरणो मे रहकर लो बाकी कोई चमत्कार कर दे या सब झूठ है यही सत्य है नादान बालक की कलम से आज सिर्फ इतना ही आगे कल बाकी आप ओर आपकी सोच को शंत शंत प्रणाम.......

जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश
🌹🙏🏻🌹

Thursday, 23 November 2017

काली हल्दी के अदभुत प्रयोग



हल्दी के बारे में हम सभी जानते हैं। इसका प्रयोग मसाले के रूप में होता है साथ ही पूजा-पाठ में भी इसका उपयोग किया जाता है। हल्दी की एक प्रजाति ऐसी भी है जिसका उपयोग तांत्रिक क्रियाओं के लिए किया जाता है, वह है काली हल्दी। काली हल्दी को धन व बुद्धि का कारक माना जाता है। काली हल्दी का सेवन तो नहीं किया जाता लेकिन इसे तंत्र के हिसाब से बहुत पूज्यनीय और उपयोगी माना गया है। यह अनेक तरह के बुरे प्रभाव को कम करती है। काली हल्दी से संबंधित कुछ टोटके इस प्रकार हैं-

टोटके

- काली हल्दी के 7 से 9 दाने बनाएं। उन्हें धागे में पिरोकर धूप, गूगल और लोबान से शोधन करने के बाद पहन लें। जो भी व्यक्ति इस तरह की माला पहनता है वह ग्रहों के दुष्प्रभावों से व टोने- टोटके व नजर के प्रभाव से सुरक्षित रहता है।

- गुरु पुष्य योग में काली हल्दी को सिंदूर में रखकर धूप देने के बाद लाल कपड़े में लपेटकर एक सिक्के के साथ वहां रख दें जहां आप पैसे रखते हैं। इसके प्रभाव से धन की वृद्धि होने लगती है।

- यदि आप किसी भी नए कार्य के लिए जा रहे है तो काली हल्दी का टीका लगाकर जाएं। यह टीका आपको सफलता दिलाएगा।

- यदि आप किसी को आकर्षित करना चाहते हैं तो प्रतिदिन काली हल्दी का तिलक लगाएं। किसी को भी आकर्षित करने के लिए काली हल्दी का तिलक एक सरल तांत्रिक उपाय है।

- काली हल्दी का चूर्ण दूध में डालकर चेहरे और शरीर पर लेप करने से त्वचा में निखार आ जाता है।

Wednesday, 22 November 2017

क्या रानी पदमावती फिल्म अकेली ही है जिसके साथ छेडछाड की गयी..

क्यू दोस्तो हिन्दू धर्म या भारतीय संस्कृति के खिलाफ ये अकेला फिल्म बनाने वाला डायरेक्टर ही जिम्मेदार रहेता है क्या नही इतिहास ओर हिन्दू धर्म के खिलाफ कई बार छेडछाड की गयी है एक बार नही बार बार की गयी है जहाँ साधु संतो पर फिल्मो मे आरोप प्रत्यारोप दिखाये गये है ओर बाहर मुर्ख हिन्दू को तालियाँ बजाते हुये देखा जा सकता है चाहे वो किसी भी राजनीति दल का शासन हो हिन्दू खिलाफत मे कोई नही बोलता हीरो हीरोइन उनकी चहते होते है इसलिए फिल्म का बहिष्कार ठीक है पर क्या उन हीरो हीरोइन का बहिष्कार नही कर सकते क्या वो जीन वस्तूओ का एड करते है उनका बहिष्कार क्यू नही सब जानते है कि फिल्म इण्डस्ट्रीज मे ज्यादातर लेखक कोन है ओर फिल्मकार कोन कोन है ओर उन फिल्मो मे पैसा कोन लगता है ये सबको पता है पर सब मौन है अपने ही धर्म का मजाक उडाने का मजा लेने के लिये यही सत्य है अभी नही सम्भले तो वो दिन दुर नही जब साधु संत देखने को नही मिलेगे ओर सनातन धर्म का मूल स्वरुप देखने को नही मिलेगा आज बस इतना ही नादान बालक की कलम ...

जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश
🌹🙏🏻🌹

Tuesday, 21 November 2017

पुणे विश्वास ही जाग्रत की अवस्था है..

सफलता आदमी का परिचय देती है पर थक कर बैठने से सफलता का परिचय नही होता यही सत्य है  जिनके कई देवता होता है उनको कही काम नही होता है चाहे करो कोई भी टोना टोटका चाहे करो कोई मंत्र विधान ,ये छोडा वो पकडा मे जिंदगी निकल जाती है.. फिर दोषारोपण होता रहता है जिसका एक रास्ता हो मंजिल मिल ही जाती है पर जिनको रास्ता बदल बदल कर जाने की आदत हो वो कभी मंजिल तक नही पहुच पाते यही सत्य है... बाकी माँ बाबा की कृपा ओर इच्छा..
कदमो के थक जाने से मंजिल ओर रस्ते नही मिलते।
फर्क तो जब पड़ता है जब इंसान का दिल तक जाए
मुकम्मल ना सही अधूरा ही रहने दो....
ये रास्ता अपना है पर कोई मक़सद तो हो,
मंजिल तो मिल ही जायेगी, हौसला तो हो,
चलने का नाम हो जिंदगी, रुकने का नाम ही मौत है,
समझने वाले समझ जाये इतना ही तो दुर नही है,
दीदार उसका सकुन तो मिल ही जायेगा विश्वास करके तो देखे,
नादान बालक की कलम से आज सिर्फ इतना ही आगे कल...



जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश
🌹🙏🏻🌹

Monday, 20 November 2017

बाबा हनुमान जी का रहस्यमय सर्वबाधा मंत्र

बाबा हनुमान जी मंत्र

मनुष्य शारीरिक, मानसिक और बाहरी (भू‍त-प्रेत) नजर इत्यादि बीमारियों से परेशान रहता है। शारीरिक बीमारी के लिए डॉक्टर या वैद्य के पास जाकर मनुष्य ठ‍ीक हो जाता है। मानसिक बीमारी का सरलत‍म उपाय हो जाता है। परंतु मनुष्य जब भूत-प्रेत अथवा नजर, हाय या किसी दुष्ट आत्मा के जाल में फंस जाता है तब वह परेशान हो जाता है।

इसके ‍इलाज के लिए स्वयं एवं परिवार वाले हर जगह जाते हैं- जैसे तांत्रिक, मांत्रिक, जानकार के पास। परंतु मरीज ठीक नहीं होता है। मरीज की हालत बिगड़ने लगती है। ऐसा प्रतीत होता है कि मरीज शारीरिक एवं मानसिक दोनों ब‍ीमारी से ग्रस्त है।

ऐसे में पवन पुत्र हनुमान जी की आराधना करें। मरीज अवश्‍य ही ठीक हो जाएगा। यहां हम आपको श्री हनुमान मंत्र (जंजीरा) दे रहे हैं। जो इक्कीस दिन में सिद्ध हो जाता है। इसे सिद्ध करके दूसरों की सहायता करें और उनकी प्रेत-डाकिनी, नजर आदि सब ठीक करें।

श्री हनुमान मंत्र (जंजीरा) 
ॐ हनुमान पहलवान पहलवान, बरस बारह का जबान, 
हाथ में लड्‍डू मुख में पान, खेल खेल गढ़ लंका के चौगान, 
अंजनी‍ का पूत, राम का दूत, छिन में कीलौ 
नौ खंड का भू‍त, जाग जाग हड़मान (हनुमान) 
हुंकाला, ताती लोहा लंकाला, शीश जटा 
डग डेरू उमर गाजे, वज्र की कोठड़ी ब्रज का ताला 
आगे अर्जुन पीछे भीम, चोर नार चंपे 
ने सींण, अजरा झरे भरया भरे, ई घट 
पिंड की रक्षा राजा रामचंद्र जी लक्ष्मण कुंवर हड़मान (हनुमान) करें। 

इस मंत्र की प्रतिदिन एक माला जप करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है। हनुमान मंदिर में जाकर साधक अगरबत्ती जलाएं। इक्कीसवें दिन उसी मंदिर में एक नारियल व लाल कपड़े की एक ध्वजा चढ़ाएं। जप के बीच होने वाले अलौकिक चमत्कारों का अनुभव करके घबराना नहीं चाहिए। यह मंत्र भूत-प्रेत, डाकिनी-शाकिनी, नजर, टपकार व शरीर की रक्षा के लिए अत्यंत सफल है।

चेतावनी : हनुमान जी की कोई भी साधना अत्यंत सावधानी और सतर्कता से करना चाहिए। यह साधना अगर पलट कर आ जाए तो साधक पर ही भारी पड़ सकती है। अत: शुद्धता, यानी बह्मचारी व्रत और एकाग्रता का विशेष ध्यान रखा जाए।

Tuesday, 14 November 2017

उर्वशी-यन्त्र” वशीकरण, सम्मोहन व आकर्षण हेतु साधना

वशीकरण, सम्मोहन व आकर्षण हेतु “उर्वशी-यन्त्र” साधना

इस यन्त्र को चमेली की लकड़ी की कलम से, भोजपत्र पर कुंकुम या कस्तुरी की स्याही से निर्माण करे।इस यन्त्र की साधना पूर्णिमा की रात्री से करें। रात्री में स्नानादि से पवित्र होकर एकान्त कमरे में आम की लकड़ी के पट्टे पर सफेद वस्त्र बिछावें, स्वयं भी सफेद वस्त्र धारण करें, सफेद आसन पर ही यन्त्र निर्माण व पूजन करने हेतु बैठें। पट्टे पर यन्त्र रखकर धूप-दीपादि से पूजन करें। सफेद पुष्प चढ़ाये। फिर पाँच माला

“ॐ सं सौन्दर्योत्तमायै नमः।”

नित्य पाँच रात्रि करें। पांचवे दिन रात्री में एक माला देशी घी व सफेद चन्दन के चूरे से हवन करें। हवन में आम की लकड़ी व चमेली की लकड़ी का प्रयोग करें।
 इस यंत्र मे गोलोचन का प्रयोग करेंगे तो अच्छा रहेगा

Sunday, 12 November 2017

आसानी से धन प्राप्ति के कुछ उपाय..

दोस्तों आज आसानी से धन प्राप्ति के कुछ आसन उपाय विधान कहते है

यह पाठ की प्रत्येक पंक्ति रहस्य-मयी है। पूर्ण श्रद्धा-सहित पाठ करने वाले को सफलता निश्चित रुप से मिलती है, ऐसी मान्यता है।
किसी कामना से इस पाठ का प्रयोग करने से पहले तीन रात्रियों में लगातार इस पाठ की १११ आवृत्तियाँ ‘अखण्ड-दीप-ज्योति’ के समक्ष बैठकर कर लेनी चाहिए। तदनन्तर निम्न प्रयोग-विधि के अनुसार निर्दिष्ट संख्या में निर्दिष्ट काल में अभीष्ट कामना की सिद्धि मिल सकेगी।
प्रयोग-विधिः-
१॰ लक्ष्मी-प्राप्ति हेतु
नैऋत्य-मुख बैठकर दो पाठ नित्य करें।
२॰ सन्तान-सुख-प्राप्ति हेतु
पश्चिम-मुख बैठकर पाँच पाठ तीन मास तक करें।
३॰ शत्रु-बाधा-निवारण हेतु
उत्तर-मुख बैठकर तीन दिन सांय-काल ग्यारह पाठ करें।
४॰ विद्या-प्राप्ति एवं परीक्षा उत्तीर्ण करने हेतु
पूर्व-मुख बैठकर तीन मास तक ३ पाठ करें।
५॰ घोर आपत्ति और राज-दण्ड-भय को दूर करने के लिए
मध्य-रात्रि में नौ दिनों तक २१ पाठ करें।
६॰ असाध्य रोग को दूर करने के लिए
सोमवार को एक पाठ, मंगलवार को ३, शुक्रवार को २ तथा शनिवार को ९ पाठ करें।
७॰ नौकरी में उन्नति और व्यापार में लाभ पाने के लिए
एक पाठ सुबह तथा दो पाठ रात्रि में एक मास तक करें।
८॰ देवता के साक्षात्कार के लिए
चतुर्दशी के दिन रात्रि में सुगन्धित धूप एवं अखण्ड दीप के सहित १०० पाठ करें।
९॰ स्वप्न में प्रश्नोत्तर, भविष्य जानने के लिए
रात्रि में उत्तर-मुख बैठकर ९ पाठ करने से उसी रात्रि में स्वप्न में उत्तर मिलेगा।
१०॰ विपरीत ग्रह-दशा और दैवी-विघ्न की निवृत्ति हेतु
नित्य एक पाठ सदा श्रद्धा से करें।

पूर्व-पीठिका
।। विनियोग ।।
श्रीसाबर-शक्ति-पाठ का, भुजंग-प्रयात है छन्द ।
भारद्वाज शक्ति ऋषि, श्रीमहा-काली काल प्रचण्ड ।।
ॐ क्रीं काली शरण-बीज, है वायु-तत्त्व प्रधान ।
कालि प्रत्यक्ष भोग-मोक्षदा, निश-दिन धरे जो ध्यान ।।
।। ध्यान ।।
मेघ-वर्ण शशि मुकुट में, त्रिनयन पीताम्बर-धारी ।
मुक्त-केशी मद-उन्मत्त सितांगी, शत-दल-कमल-विहारी ।।
गंगाधर ले सर्प हाथ में, सिद्धि हेतु श्री-सन्मुख नाचै ।
निरख ताण्डव छवि हँसत, कालिका ‘वरं ब्रूहि’ उवाचै ।।

धन संबंधी परेशानी हो तो क्या करे????

मित्रो आजकल धन की अवश्यकता किसको नही होती... 
आज हम आपको धन सम्बन्धी परेशानी हेतु एक उपाय दे रहे है,,
यदि आप भी किसी ग्रह बाधा से पीडि़त हैं और आपके पर्स में अधिक समय तक पैसा नहीं टिकता तो निम्र उपाय करें- किसी भी शुभ मुहूर्त या अक्षय तृतीया या पूर्णिमा या दीपावली या किसी अन्य मुहूर्त में सुबह जल्दी उठें।

सभी आवश्यक कार्यों से निवृत्त होकर लाल रेशमी कपड़ा लें।

अब उस लाल कपड़े में चावल के 21 दानें रखें। ध्यान रहें चावल के सभी 21 दानें पूरी तरह से अखंडित होना चाहिए यानि कोई टूटा हुआ दान न रखें।

उन दानों को कपड़े में बांध लें। इसके बाद धन की देवी माता लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजन करें। पूजा में यह लाल कपड़े में बंधे चावल भी रखें। पूजन के बाद यह लाल कपड़े में बंधे चावल अपने पर्स में छुपाकर रख लें। ऐसा करने पर कुछ ही समय में धन संबंधी परेशानियां दूर होने लगेंगी,,,,
जस माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश,, 

Saturday, 11 November 2017

रुद्राक्ष के कुछ चमत्कारी महारहस्य

रुद्राक्ष के बारे मे या उनके रहस्य के बारे मे बताये ये हमारे बूते से बाहर ही होगा पर कुछ प्रकाश डाल रहे है

 भगवान शिव के प्रिय रुद्राक्ष में स्वयं शिव का अंश होता है, रुद्राक्ष को शिवाक्ष,शर्वाक्ष,भावाक्ष,फलाक्ष,भूतनाशन,पावन,हराक्ष, नीलकंठ,तृणमेरु,शिवप्रिय, अमर और पुष्पचामर भी कहते हैं, आयुर्वेद के ग्रंथों में भी रुद्राक्ष की महामहिमा का वर्णन है, आयुर्वेदिक ग्रंथों में रुद्राक्ष को महौषधि,दिव्य औषधि आदि कह कर इसके दिव्य गुणों को विस्तार से बताया गया है, रुद्राक्ष की जड़,छाल,फल,बीज और फूल सबमें औषधीय व दैवीय गुण छिपे हुये है. यदि आप तंत्र मंत्र जादू टोना अथवा किसी बुरे साए से परेशान हों! किसी की नजर ने जीना दूभर कर रखा हो! तरह तरह से ग्रहों की दशाओं ने जीवन की नैया को डावा-ड़ोल कर दिया हो! बुद्धि विवेक मस्तिष्क तनाव या किसी समस्या के कारण ठीक से काम न कर पा रहे हो! साथ ही आप यदि हृदय रोगों से परेशान हों, नक्षत्र दोष के कारण बनते काम बिगड़ रहे हों! तो अब समय आ गया है, "दुर्भाग्य के नाश का" और शिव की तरह प्रसन्न और मुक्त होने का.    शिव पुराण में कहा गया है कि जिसने रुद्राक्ष धारण कर रखा हो, वो तो स्वयं शिव ही हो जाता है, जी हाँ ठीक सुना आपने जो भी व्यक्ति रुद्राक्ष धारण कर ले वो शिव के सामान ही दिव्य हो जाता है, लेकिन इसके लिए आपको जाननी होगी कुछ अतिगोपनीय विधियाँ,जो हम आज गहन अध्ययन केबाद आपके लिए ले कर आये हैं, अगर आपको लगता है कि आपका भाग्य साथ नहीं दे रहा, आप बहुत ही ज्यादा चंचल है और इस बजह से लगातार अपना नुक्सान कर रहे हैं, तो शिव के मन्त्रों से प्राण प्रतिष्ठा कर रुद्राक्ष धारण कीजिये, आपके जीवन में स्थिरता आने लगेगी.    राहु, शनि, केतु, मंगल जैसे क्रूर ग्रहों के दुष्प्रभाव से होने वाले रोगों व संकटों का नाश होगा, जीवन के संघर्षों से आपको राहत मिलेगी, साथ ही अकाल मृत्यु, दुर्घटनाओं को रोकेगा शिव का एक चमत्कारी रुद्राक्ष, सकन्ध पुराण और लिंग पुराण में कहा गया है कि रुद्राक्ष से आत्मविश्वास और मनोबल बढ़ता है, कार्य, व्यवसाय, व्यापार में अपार सफलता दिलवाता है, रुद्राक्ष सुख समृद्धि प्रदान करता है, साथ ही साथ पाप, शाप, ताप से भी भक्त की रक्षा करता है, हम आपको बता दें कि रुद्राक्ष भारत, नेपाल, जावा, मलाया जैसे देशों में पैदा होता है, भारत के असाम, बंगाल, देहरादून के जंगलों में पर्याप्त मात्र में रुद्राक्ष पैदा होतें है, रुद्राक्ष का फल कुछ नीला और बैंगनी रंग का होता है जिसके अन्दर गुठली के रूप में स्थित होता है शिव का परम चमत्कारी दैविक रुद्राक्ष, लेकिन रुद्राक्ष का एक हमशक्ल भी होता है जिसे भद्राक्ष कहा जाता है, पर उसमें रुद्राक्ष जैसे गुण नहीं होते, शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार रुद्राक्ष की क्षमता उसके मुखों के अनुसार ही होती है, रुद्राक्ष एक मुखी से ले कर इक्कीस मुखी तक प्राय: मिल जाते है, सबकी अलौकिकता एवं क्षमता अलग अलग होती है, हिमालय की तराइयों से प्राप्त रुद्राक्ष की महिमा सबसे बड़ी कही गई है, दस मुखी और चौदह मुखी रुद्राक्ष अतिदुर्लभ कहे गए है, पंद्रह से ले कर इक्कीस मुखी तक के रुद्राक्ष साधारणतय: नहीं मिल पाते, और एक मुखी की तो महिमा ही अपरम्पार है, जिसे मिल जाए उसे जीवन में फिर कुछ और पाना शेष नहीं रहता, वो केवल अत्यंत भाग्य वाले को ही मिल पाता है, रुद्राक्षों में नन्दी रुद्राक्ष, गौरी शंकर रुद्राक्ष, त्रिजूटी रुद्राक्ष, गणेश रुद्राक्ष, लक्ष्मी रुद्राक्ष, त्रिशूल रुद्राक्ष और डमरू रुद्राक्ष भी होते है, जो अंत्यंत दैविक माने गए हैं.  रुद्राक्ष का प्रयोग औषधि के रूप में तो होता ही है साथ ही इसे धारण भी किया जाता है या पूजा के लिए,माला के रूप में प्रयुक्त होता है,स्फटिक शिवलिंग, बाण लिंग अथवा पारद शिवलिंग को स्थापित कर यदि रुद्राक्ष धारण कर लिया जाए तो वो व्यक्ति सम्राटों जैसा बैभव प्राप्त कर लेता है, रुद्राक्ष ऐसा तेजस्वी मनका है जिसका उपयोग बड़े बड़े योगी संत ऋषि मुनि महात्मा परमहंस तो करते ही है साथ ही साथ तांत्रिक अघोरी जैसी वाममार्गी विद्याओं के जानकार भी इसके चमत्कारी प्रभावों के कारण इसकी महिमा गाते फिरते है, भारत के सिद्ध रुद्राक्षों का प्रयोग तो आज विश्व के हर कोने में बैठा व्यक्ति कर ही रहा है, तो आप और हम इसके दिव्य गुणों से दूर क्यों रहें? स्कंध पुराण में कार्तिकेय जी भगवान शिव से रुद्राक्ष की महिमा और उत्पत्ति के बारे में प्रश्न पूछते है तो स्वयं शिव कहते है कि "हे षडानन कार्तिकेय ! सुनो, मैं संक्षेप में बताता हूँ, पूर्व काल में युद्ध में मुश्किल से जीता जाने वाला दैत्यों का राजा त्रिपुर था. उस दैत्यराज त्रिपुर नें जब सभी देवताओं को युद्ध में परास्त कर कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया. तो ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्र, प्रमुख देवगण तथा पन्नग गण मेरे पास आ कर त्रिपुर का बध करने के लिए मेरी प्रार्थना करने लगे. देवताओं की प्रार्थना सुन कर संसार की रक्षा के लिए मैं बेग से अपने धनुष के साथ सर्व देवमय भयहारी कालाग्नि नाम के दिव्य अघोर अस्त्र को ले कर दैत्य राज त्रिपुर का बध करने के लिए चल पड़ा. लेकिन उसे हम त्रिदेवों से अनेक वर प्राप्त थे, इसलिए युद्ध में लम्बा समय लगा, एक हजार दिव्य वर्षों तक लगातार क्रोद्धमय युद्ध करने से व योगाग्नि के तेज के कारण अत्यंत विह्वल हुये मेरे नेत्रों से व्याकुल हो आंसू गिरने लगे, योगमाया की अद्भुत इच्छा से निकले वो आंसू जब धरा पर गिरे और बृक्ष के रूप में उत्त्पन्न हुये, तो रुद्राक्ष के नाम से विख्यात हो गए, ये षडानन रुद्राक्ष को धारण करने से महापुण्य होता है इसमें तनिक भी संदेह नहीं है, रुद्राक्षों के दिव्य तेज से आप कैसे दुखों से मुक्ति पा कर सुखमय जीवन जीते हुये शिव कृपा पा सकते हैं
 विद्या बुद्धि एवं सफलता प्राप्ति हेतु रुद्राक्ष
विद्या,ज्ञान व बुद्धि की प्राप्ति के लिए तीन मुखी व छ: मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए, इसे धारण करने से तीब्र बुद्धि होती है व अद्भुत स्मरण शक्ति प्राप्त होती है, जो पढाई में कमजोर हों वे इसे अवश्य धारण करें,बहुत ज्यादा लाभ मिलेगा, तीन मुखी या छ: मुखी रुद्राक्ष धारण, करने से रचनात्मक कार्यों में भी बहुत लाभ मिलता है, जैसे यदि आप फैशन डिजाइनर हो, सौन्दर्य जगत से जुड़े हो, लेखक या सम्पादक हों, चित्रकार या अनुसंधानकर्ता हों तो ये रुद्राक्ष आपको बहुत लाभ प्रदान करेंगे,
  रोजगार,व्यक्तित्व विकास एवं इन्टरवियू में सफलता हेतु रुद्राक्ष
यदि आप अपना चौमुखी विकास करना चाहते हों तो या रोजगार पाना चाहते हों तो नौ मुखी, चार मुखी या फिर तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करें, इसे धारण करने से सहनशीलता,बीरता,साहस,कर्मठता में बृद्धि होती है, इसका सबसे बड़ा गुण ये भी है की ये रुद्राक्ष संकल्प शक्ति में बृद्धि करते हैं जिससे आप अपने लक्ष्य तक जरूर पहुंचते ही है, बेरोजगार या नौकरी की तलाश कर रहे व्यक्ति को इससे उत्तम रोजगार प्राप्त होता है, यदि आप बार बार इन्टरवियू में असफल हो रहे हों तो इनमेंसे कोई एक रुद्राक्ष तुरंत धारण करेने से लाभ मिलेगा, यदि आप जीवन में आगे की बजाय पीछे की और जा रहे हों तो इन रुद्राक्षों को धारण करने से उन्नति अवश्य मिलेगी
सामाजिक,पारिवारिक समस्याओं एवं विवाह सम्बन्धी समस्याओं के लिए रुद्राक्ष
यदि आपका विवाह नहीं हो पा रहा है या विवाह के बाद गृहस्थी सुखी नहीं है, आपके सम्बन्ध अपने रिश्ते नाते वालों के साथ ठीक नहीं हैं या समाज में शत्रु ही शरु हो गए हों, तो आपको दो मुखी रुद्राक्ष या गौरी शंकर रुद्राक्ष धारण करना चाहिए,इसे धारण करने से घर में होने वाले परस्पर झगड़ों से मुक्ति पाई जा सकती है, ये रुद्राक्ष पति-पत्नी, पिता-पुत्र, भाई-बहन,गुरु शिष्य अथवा मित्रों आदि के साथ के मतभेदों को दूर करता है, लड़के लड़कियों के विवाह में अनावश्यक विलम्ब हो रहा हो तो इसे जरूर धारण करवाएं लाभ मिलेगा, आप मंगलबार के दिन इनमे से कोई भी रुद्राक्ष धारण करें
 दुर्घटना से बचाव, बुरी नजर, जादू-टोनों, बुरे ग्रहों से बचाव व अपनी सुरक्षा हेतु रुद्राक्ष
यदि आप अपनी सुरक्षा को ले कर बहुत चिंतित हों,  वाहन चलने से घबराते हों, बार-बार दुर्घटनाएं होती हों, कुंडली हमेशा ही कोई नीच ग्रह या बाधा बनी रहती हो, भाग्य आपका साथ न दे रहा हो, जादू-टोनों से या फिर बुरी नजर से परेशान हों, भूत प्रेत अथवा सांप चूहे छिपकली से डर लगता हो, तो आपको ग्यारह मुखी या फिर दस मुखी रुद्राक्ष धारण काना चाहिए, यदि घर में बुरे साए का वास हो जो आपको परेशान करता हो तो सभी पारिवारिक सदस्य इसे धारण करें, यदि आप पवित्रता से रख सकते हैं तो वाहन अथवा तिजोरी की चाबी में छल्ले के रूप में भी आप इसका प्रयोग कर सकते हैं
 प्रेम प्राप्ति अथवा आकर्षण हेतु रुद्राक्ष
यदि आप किसी से प्रेम करते है और चाहते है की आपका प्रेम परिणित हो अथवा आप आकर्षण प्राप्त करना चाहते हों, तो छ: मुखी या तेरह मुखी रुद्राक्ष धारण करें, आप थियेटर या मंच से जुड़े हुये हों, धर्माचार्य हों या शिक्षक हों, मार्केटिंग या प्रचार माधयमों जैसे टीवी रेडिओ फिल्म आदि से जुड़े हैं तो आप ये रुद्राक्ष धारण कर लाभ पा सकते हैं, आपका प्रेम सम्बन्ध यदि टूट गया है, या आपके जीवन में कोई है जिसे आप खोना नहीं चाहते तो ये रुद्राक्ष फायदेमंद रहेगा
अखंड धन लाभ एवं कार्य व्यवसाय, व्यापार से लाभ प्राप्त करने हेतु रुद्राक्ष
यदि आप व्यापारी हैं कोई व्यवसाय करते हैं, कोई कंपनी चलाते है, या कोई निजी व्यवसाय करते है जिससे आपको धन लाभ की आकांक्षा है, तो आप सातमुखी, ग्यारह मुखी,गणेश रुद्राक्ष अथवा लक्ष्मी रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं, इन रुद्राक्षों को धारण करने से गरीवी का नाश होता है, जिस व्यवसाय में आप हैं उसी से आपको लाभ मिलने लगता है, आपका यश, मान, प्रतिष्ठा ऐसी बढती है की हर ओर से धन ही धन आने लगता है,आपके जीवन के सुखों में ओर अधिक बृद्धि होती है
रोगमुक्ति, स्वास्थ्य व लम्बी आयु हेतु रुद्राक्ष
यदि आप सदा तरह-तरह के रोगों से ही घिरे रहते हों, बीमारियाँ आपका पीछा ही नहीं छोड़ रही हों, यदि आप मानसिक रूप से भी परेशान ही रहते हों, चिंताएं खाए जा रही हों, कुंडली या क्रूर ग्रह अकाल मृत्यु का संकेत दे रहे हों तो आपको चौदह मुखी या आठ मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए, अकाल मृत्यु को टालने की इनमें अभूतपूर्व क्षमता है, रोग नाश के साथ-साथ जीवन की विकट परिस्थितियों में उचित निर्णय लेने की क्षमता भी प्रदान करता है
समाजसेवा, शासन-प्रशासन, सत्ता  या राजनीती में सफलता हेतु रुद्राक्ष
 यदि आप समाज सेवी हैं और अपने कार्यों को तीब्रता से करना चाहते हैं, शासन प्रशासन में अपनी पकड मजबूत करना चाहते हैं, आप युवा नेता या गहरे राजनीतिज्ञ हैं और अपने क्षेत्र के मुकाम को हासिल करना चाहते हैं, तो आपको बारह मुखी या सात मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए, इससे व्यक्ति की कीर्ति, यश, सूर्य के सामान चमकने लगती है, इसे धारण करने से बाणी में चातुर्य आता है संबोधन में आकर्षण पैदा होता है, आप अपनी गहरी छाप सब पर छोड़ सकते हैं
मुसीबत से या कोर्ट कचहरी मुकद्दमों से शीघ्र मुक्ति हेतु रुद्राक्ष
यदि आप पर कोई मुसीबत आन पड़ी हो कोई रास्ता न सूझ रहा हो या आप कोर्ट कचहरी के मामलों में फँस गए हों, आपका धैर्य जबाब देने लगा हो, जीवन केवल संघर्ष ही रह गया हो, अक्सर हर जगह अपमानित ही महसूस करते हों, तो आपको सात मुखी, पंचमुखी अथवा ग्यारह मुखी रुद्राक्ष धारण करने चाहियें, समस्याओं के मध्य से भी तुरंत हल निकाल आएगा

लक्ष्मी प्राप्ति के कुछ अचूक उपाय

लक्ष्मी प्राप्ति के कुछ अचूक उपाय,,,,


आप अपने निवास स्थान में उत्तर-पूर्व दिशा में एक साफ जगह पर स्थान चुन लीजिये,उस स्थान को गंदगी आदि से मुक्त कर लीजिये, फिर एक साफ लकडी का पाटा उस स्थानपर रख लीजिये,और एक चमेली के तेल की सीसी, पचास मोमबत्ती सफेद और पचासमोमबत्ती हरी और एक माचिस लाकर रख लीजिये। अपना एक समय चुन लीजिये जिससमय आप जरूर फ्री रहते हों, उस समय में आप घडी मिलाकर ईश्वर से धन प्राप्त करने केउपाय करना शुरु कर दीजिये। पाटे को पानी और किसी साफ कपडे से साफ करिये, एकहरी मोमबत्ती और एक सफेद मोमबत्ती दोनो को चमेली के तेल में डुबोकर नहलालीजिये,दोनो को एक माचिस की तीली जलाकर उनके पैंदे को गर्म करने के बाद एकदूसरे से नौ इंच की दूरी पर बायीं (लेफ्ट) तरफ हरी मोमबत्ती और दाहिनी (राइट) तरफसफेद मोमबत्ती पाटे पर चिपका दीजिये। दुबारा से माचिस की तीली जलाकर पहले हरीमोमबत्ती को और फिर सफेद मोमबत्ती को जला दीजिये,दोनो मोमबत्तिओं को देखकरमानसिक रूप से प्रार्थना कीजिये ष्हे धन के देवता कुबेर ! मुझे धन की अमुक (जिस कामके लिये धन की जरूरत हो उसका नाम) काम के लिये जरूरत है, मुझे ईमानदारी से धनको प्राप्त करने में सहायता कीजियेष्, और प्रार्थना करने के बाद मोमबत्ती को जलता हुआछोड कर अपने काम में लग जाइये। दूसरे दिन अगर मोमबत्ती पूरी जल गयी है, तो उसजले हुये मोम को वहीं पर लगा रहने दें, और नही जली है तो वैसी ही रहने दें, दूसरीमोमबत्तियों को पहले दिन की तरह से ले लीजिये, और पहले जली हुयी मोमबत्तियों सेएक दूसरी के नजदीक लगाकर जलाकर पहले दिन की तरह से वही प्रार्थना करिये, इसतरह से धीरे धीरे मोमबत्तिया एक दूसरे की पास आती चलीं जायेगी, जितनी हीमोमबत्तियां पास आती जायेंगी, धन आने का साधन बनता चला जायेगा, और जैसे हीदोनो मोमबत्तियां आपस में सटकर जलेंगी, धन प्राप्त हो जायेगा। जब धन प्राप्त हो जाये तोपास के किसी धार्मिक स्थान पर या पास की किसी बहती नदी में उस मोमबत्तियों केपिघले मोम को लेजाकर श्रद्धा से रख आइये या बहा दीजिये, जो भी श्रद्धा बने गरीबों कोदान कर दीजिये, ध्यान रखिये इस प्रकार से प्राप्त धन को किसी प्रकार के गलत काम मेंमत प्रयोग करिये,अन्यथा दुबारा से धन नही आयेगा।

   दूसरे प्रकार के उपाय में कुछ धन पहले खर्च करना पडता है,इस उपाय के लिये आपकोजो भी मुद्रा आपके यहां चलती है आप ले लीजिये जैसे रुपया चलता है तो दस दस के पांचनोट ले लीजिये डालर चलता है तो पांच डालर ले लीजिये आदि। बाजार से पांच नगीनेजैसे गोमेद एमेथिस्ट जेड सुनहला गारनेट ले लीजिये, यह नगीने सस्ते ही आते है, साथही बाजार से समुद्री नमक भी लेते आइये। यह उपाय गुरुवार से शुरु करना है, अपने घरमे अन्दर एक ऐसी जगह को देखिये जहां पर लगातार सूर्य की रोशनी कम से कम तीनघंटे रहती हो, एक पोलीथिन के ऊपर पहले पांच नोट रखिये, उनके ऊपर एक एक नगीनारख दीजिये, और उन नगीनो तथा नोटों पर समुद्री नमक पीस कर थोडा थोडा छिडकदीजिये और उन्हे सूर्य की रोशनी में लगातार तीन घंटे के लिये छोड दीजिये। तीन घंटेबाद उन नोटों और नगीनों को समुद्री नमक को उसी पोलीथीन पर पर साफ कर लीजिये,और उस पोलीथिन वाले नमक को अपने घर के मुख्य दरवाजे पर डाल दीजिये, उननगीनों और नोटों को अपने पर्स में रख लीजिये, अगर कोई तुम्हारा जान पहिचान का याकोई रिस्तेदार तुम्हारे पास आता है तो उसे एक नगीना कोई सा भी उसी गुरुवार को यहकहकर दीजिये कि यह नगीना भाग्य बढाने वाला है, और एक नोट उनमें से किसी बच्चेको बिस्कुट लाने के लिये या किसी प्रकार बिल चुकाने के काम में उसी दिन ले लीजिये,दूसरे गुरुवार को दूसरा नगीना किसी को फिर दान कर दीजिये और एक नोट किसी बच्चेया किसी प्रकार के घरेलू खर्चे में खर्च कर दीजिये,यही क्रम लगातार चार गुरुवार तककरना है, पांचवे गुरुवार को बचा हुआ एक नगीना और नोट अपनी तिजोरी या धन रखनेवाले स्थान में रख लीजिये, आपके पास लगातार धन का प्रवाह शुरु हो जायेगा, उस धनमें से 3: दान करते रहिये, जब तक वह नगीना और नोट आपके पास रहेगा, धन की कमीनही आ सकती है।

भगवान श्री कृष्ण की ये फोटो मिटाती है कई कष्ट



श्रीकृष्ण की इस फोटो से दूर होंगी समस्याएं

सुख और दुख यह जीवन के दो पहलू हैं। सभी के जीवन में सुख और दुख आते-जाते रहते हैं। कुछ लोगों को अधिक परेशानियां झेलना होती है तो कुछ लोगों को कम। जीवन की परेशानियों को कम करने के लिए वास्तुशास्त्र में कई टिप्स बताई गई हैं।घर का वास्तु हमारे जीवन का प्रभावित करता है। यदि घर में कोई वास्तु दोष है तो उसकी वजह से हमें कई समस्याओं से जुझना पड़ता है। परेशानियों को कम करने के लिए अपने घर में बाल श्रीकृष्ण का फोटो लगाएं। बाल श्रीकृष्ण का ऐसा फोटो लगाएं जिसमें उन्हें वासुदेव द्वारा बाढग़्रस्त यमुना से श्रीकृष्ण को टोकरी में ले जाने वाली झांकी दिखाई गई हो। यह फोटो समस्याओं से उबरने की प्रेरणा देती है। जिस प्रकार श्रीकृष्ण ने वासुदेव यमुना की बाढ़ से भी पार करवा दिया ठीक उसी प्रकार कन्हैया हमारी समस्याओं को दूर करके सुख प्रदान करते हैं। इस फोटो से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि जीवन की समस्याओं के समय भगवान का स्मरण करना चाहिए। इससे जल्द ही हमें सुख और सृमद्धि प्राप्त होती है।
जय माँ जय बाबा महाकाल दोस्तो

ईश्वरीय कृपा से धन कैसे प्राप्त किया जाये

आज की दुनिया मे धन की सभी को जरुरत रहेती है आईये जानते है ईश्वरीय कृपा से धन धन प्राप्त करने के कुछ उपाय,,,
ईश्वरीय कृपा से धन

धन एक गौड साधन है,बिना धन के ज्ञानी व्यक्ति भी बेकार लगता है,बिना धन के किसी प्रकार की शक्ति भी आस्तित्वहीन होती है,आज के युग में जिसे देखो धन की तरफ़ भाग रहा है,और धन के लिये कितने ही गलत काम किये जा रहे है,भाई भाई का दुश्मन बना बैठा है,बाप बेटे को धन के लिये छोड देता है,पत्नी धन के लिये पति की हत्या करवा देती है,आदि तरीके लोग धन के लिये अपना रहे है,अगर धन को ईश्वरीय शक्ति से प्राप्त किया जाये,तो वह धन अधिक स्थाई और अच्छे कामों में खर्च होने वाला होता है,और जो भी खर्चा किया जाता है वह मानसिक और शारीरिक दोनो प्रकार के सुख देता है,तामसी कारणों से लोगों को लूट खसोट कर प्राप्त किया जाने वाला धन हमेशा बुरे कामों में ही खर्च होता है,धन तो खर्च होता ही है,लेकिन हमेशा के लिये दुखदायी भी हो जाता है। सही तरीके से और ईमानदारी से धन कमाने के लिये ईश्वरीय शक्ति की जरूरत पडती है,ईश्वरीय शक्ति को प्राप्त करने के लिये ईश्वर में आस्था बनानी पडती है,और आस्था बनाने के लिये नियमित रूप से उपाय करने पडते है,नियमित रूप से उपाय करने के लिये अपने को प्रयासरत रखना पडता है। आइये आपको कुछ सहज में ही ईश्वरीय शक्तियों से धन प्राप्त करने के तरीके बता देता हूँ,इस प्रकार से प्राप्त किये जाने वाले धन को प्रयोग करने के बाद आपको कितनी शांति और समृद्धि मिलती है,आपको खुद को पता चल जायेगा। प्रयास के लिये तीन बातों का ख्याल रखना भी जरूरी है कि इन्सान को तीन तरह का प्रयास सदैव जारी रखना चाहिये,एक तो अपनी मानवीय शक्ति को सहेज कर रखना,दूसरे जो भी भौतिक साधन अपने पास है,उनका प्रयोग करते रहना,और तीसरा प्रयास ईश्वर से दैविक शक्ति को प्राप्त करने के बाद उसका प्रयोग करते रहना।

पहला उपाय

आप अपने निवास स्थान में उत्तर-पूर्व दिशा में एक साफ़ जगह पर स्थान चुन लीजिये,उस स्थान को गंदगी आदि से मुक्त कर लीजिये,फ़िर एक साफ़ लकडी का पाटा उस स्थान पर रख लीजिये,और एक चमेली के तेल की सीसी,पचास मोमबत्ती सफ़ेद और पचास मोमबत्ती हरी और एक माचिस लाकर रख लीजिये। अपना एक समय चुन लीजिये जिस समय आप जरूर फ़्री रहते हों,उस समय में आप घडी मिलाकर ईश्वर से धन प्राप्त करने के उपाय करना शुरु कर दीजिये। पाटे को पानी और किसी साफ़ कपडे से साफ़ करिये,एक हरी मोमबत्ती और एक सफ़ेद मोमबत्ती दोनो को चमेली के तेल में डुबोकर नहला लीजिये,दोनो को एक माचिस की तीली जलाकर उनके पैंदे को गर्म करने के बाद एक दूसरे से नौ इंच की दूरी पर बायीं (लेफ़्ट) तरफ़ हरी मोमबत्ती और दाहिनी (राइट) तरफ़ सफ़ेद मोमबत्ती पाटे पर चिपका दीजिये। दुबारा से माचिस की तीली जलाकर पहले हरी मोमबत्ती को और फ़िर सफ़ेद मोमबत्ती को जला दीजिये,दोनो मोमबत्तिओं को देखकर मानसिक रूप से प्रार्थना कीजिये "हे धन के देवता कुबेर ! मुझे धन की अमुक (जिस काम के लिये धन की जरूरत हो उसका नाम) काम के लिये जरूरत है,मुझे ईमानदारी से धन को प्राप्त करने में सहायता कीजिये",और प्रार्थना करने के बाद मोमबत्ती को जलता हुआ छोड कर अपने काम में लग जाइये। दूसरे दिन अगर मोमबत्ती पूरी जल गयी है,तो उस जले हुये मोम को वहीं पर लगा रहने दें,और नही जली है तो वैसी ही रहने दें,दूसरी मोमबत्तियों को पहले दिन की तरह से ले लीजिये,और पहले जली हुयी मोमबत्तियों से एक दूसरी के नजदीक लगाकर जलाकर पहले दिन की तरह से वही प्रार्थना करिये,इस तरह से धीरे धीरे मोमबत्तिया एक दूसरे की पास आती चलीं जायेगी,जितनी ही मोमबत्तियां पास आती जायेंगी,धन आने का साधन बनता चला जायेगा,और जैसे ही दोनो मोमबत्तियां आपस में सटकर जलेंगी,धन प्राप्त हो जायेगा। जब धन प्राप्त हो जाये तो पास के किसी धार्मिक स्थान पर या पास की किसी बहती नदी में उस मोमबत्तियों के पिघले मोम को लेजाकर श्रद्धा से रख आइये या बहा दीजिये,जो भी श्रद्धा बने गरीबों को दान कर दीजिये,ध्यान रखिये इस प्रकार से प्राप्त धन को किसी प्रकार के गलत काम में मत प्रयोग करिये,अन्यथा दुबारा से धन नही आयेगा।

दूसरा उपाय

दूसरे प्रकार के उपाय में कुछ धन पहले खर्च करना पडता है,इस उपाय के लिये आपको जो भी मुद्रा आपके यहां चलती है आप ले लीजिये जैसे रुपया चलता है तो दस दस के पांच नोट ले लीजिये डालर चलता है तो पांच डालर ले लीजिये आदि। बाजार से पांच नगीने जैसे गोमेद एमेथिस्ट जेड सुनहला गारनेट ले लीजिये,यह नगीने सस्ते ही आते है,साथ ही बाजार से समुद्री नमक भी लेते आइये। यह उपाय गुरुवार से शुरु करना है,अपने घर मे अन्दर एक ऐसी जगह को देखिये जहां पर लगातार सूर्य की रोशनी कम से कम तीन घंटे रहती हो,एक पोलीथिन के ऊपर पहले पांच नोट रखिये,उनके ऊपर एक एक नगीना रख दीजिये,और उन नगीनो तथा नोटों पर समुद्री नमक पीस कर थोडा थोडा छिडक दीजिये और उन्हे सूर्य की रोशनी में लगातार तीन घंटे के लिये छोड दीजिये। तीन घंटे बाद उन नोटों और नगीनों को समुद्री नमक को उसी पोलीथीन पर पर साफ़ कर लीजिये,और उस पोलीथिन वाले नमक को अपने घर के मुख्य दरवाजे पर डाल दीजिये,उन नगीनों और नोटों को अपने पर्स में रख लीजिये,अगर कोई तुम्हारा जान पहिचान का या कोई रिस्तेदार तुम्हारे पास आता है तो उसे एक नगीना कोई सा भी उसी गुरुवार को यह कहकर दीजिये कि यह नगीना भाग्य बढाने वाला है,और एक नोट उनमें से किसी बच्चे को बिस्कुट लाने के लिये या किसी प्रकार बिल चुकाने के काम में उसी दिन ले लीजिये,दूसरे गुरुवार को दूसरा नगीना किसी को फ़िर दान कर दीजिये और एक नोट किसी बच्चे या किसी प्रकार के घरेलू खर्चे में खर्च कर दीजिये,यही क्रम लगातार चार गुरुवार तक करना है,पांचवे गुरुवार को बचा हुआ एक नगीना और नोट अपनी तिजोरी या धन रखने वाले स्थान में रख लीजिये,आपके पास लगातार धन का प्रवाह शुरु हो जायेगा,उस धन में से 3% दान करते रहिये,जब तक वह नगीना और नोट आपके पास रहेगा,धन की कमी नही आ सकती है।

तीसरा उपाय

अधिकतर मामलों में व्यापार करते हुये धन की कमी होती है,लगातार प्रतिस्पर्धा के कारण लोग व्यवसाय को काटते है,और ग्राहकों को अपनी तरफ़ आकर्षित करते है,अपनी बिजनिस बढाने के लिये तांत्रिक उपाय करते है,और उन तांत्रिक उपायों को करने के बाद खुद तो उल्टा सीधा कमाते है,लेकिन अपने सामने वाले को भी बरबाद करते है तथा कुछ दिनों में उनके द्वारा किये गये तांत्रिक उपायों का असर खत्म हो जाने पर दिवालिया बन कर घूमने लगते है। अपने व्यवसाय स्थल से नकारात्मक ऊर्जा को हटाने और ग्राहकी बढाने का तरीका आपको बता रहा हूँ, इस तरीके को प्रयोग करने के बाद आप खुद ही महसूस करने लगेंगे ।
सोमवार के दिन किसी नगीने बेचने वाले से तीन गारनेट के नग खरीदकर लाइये,और रात को उन्हे किसी साफ़ कांच के बर्तन में पानी में डुबोकर खुले स्थान में रख दीजिये,उन नगों को लगातार नौ दिन तक यानी अगले मंगलवार तक उसी स्थान पर रखा रहने दीजिये,और मंगलवार की शाम को उन नगीनों को मय उस पानी के उठा लीजिये,बुधवार को उस पानी से नगीनों को अपने व्यवसाय वाले स्थान पर निकाल लीजिये और पानी को व्यवसाय स्थान के सभी कोनों और अन्धेरी जगह पर कैस काउन्टर और टेबिल ड्रावर के अन्दर छिडक दीजिये,तथा उन नगीनों को (तीनों को) अपनी टेबिल पर सजाकर सामने रख लीजिये,इस प्रकार से आपके व्यापारिक स्थान की नकारात्मक ऊर्जा बाहर चली जायेगी,और सकारात्मक ऊर्जा आने लगेगी । नगीनों को सम्भाल कर रखे,जिससे कोई उन्हे ले न जा सके।

सबसे बड़ा धन

अधिकतर पढाई करने के बाद सन्तान की नौकरी और व्यवसाय की चिन्ता हर माता पिता को होती है,बच्चे जवानी और अपनी उमंग के कारण उन्हे कौन से क्षेत्र में जाना है,उसे भूल जाते है,और दूसरों की देखा देखी अपनी वास्तविक नोलेज को भूलकर दूसरों के चक्कर में पड कर अपने को बरबाद कर लेते है,जब वे अपनी योग्यता को नहीं दिखा पाते है तो वे गलत कार्यों की तरफ़ बढ जाते है,और उनका जीवन जो सहज रास्ते पर जा रहा था वह कठिनाइयों की तरफ़ चला जाता है,दिग्भ्रम हो जाने पर लाख कोशिश करने पर भी बच्चे अपनी जगह पर वापस नही आ पाते है,और आते है तब तक उनका बहुमूल्य समय बरबाद हो गया होता है। सबसे पहले अपने बच्चे को सही रास्ते पर लाने के लिये या वह कहीं गलत रास्ते पर तो नही जा रहा है,का ध्यान उसी प्रकार से रखना चाहिये जैसे एक माली अपने पेड को संभालता है,कब उसे पानी देना है कब उसमें खाद देनी है,कही जंगली जानवर उस पेड को खत्म तो नही कर रहा है,कहीं कोई बीमारी पेड को तो नही लग रही है,कहीं कोई खरपतवार उस पेड के साथ तो नही उग रहा है जो उस पेड को दी जाने वाली खाद पानी को पेड तक पहुंचने ही नही देना चाहता हो,आदि बातें ध्यान में रखने पर बच्चे को सही दिशा तक ले जाया सकता है। बच्चे को सही रास्ते पर ले जाने के लिये वैदिक रूप से कुछ उपाय बताये गये है,उनको आप लोगों के लिये लिख रहा हूँ।
रात को सोते समय बच्चे के सिरहाने उसकी दाहिनी तरफ़ पानी का एक लोटा या गिलास रखना चाहिये,जिससे रात को सोते समय कुविचार उसके सुषुप्त मस्तिक पर असर नही दे पायें।
बच्चे के जगने पर उसके पास जरूर उपस्थित रहें,जितना बच्चा जगने के बाद आपको देखेगा,उतना ही वह दिन भर आपकी तस्वीर को वह अपने दिमाग में रखेगा,अधिक समय तक आपको अपने सामने पाने पर वह कभी आपको अलग नही कर पायेगा,और गल्ती करने पर आपकी ही तस्वीर उसके दिमाग में आकर उसे गलत काम से रोकेगी।
बच्चे को अपने हाथ से खाना परोसना चाहिये,बनाया चाहे किसी ने भी हो,उसे बच्चे की रुचि के अनुसार अगर आपके हाथ से परोसा गया है तो वह उसके शरीर में उसी तरह से लगेगा जिस प्रकार से बचपन में माँ का दूध लगता है।
बच्चे को दूसरों की नजर जरूर लगती है,चाहे वह अपने ही घर वालों की क्यों न हो,शाम को बच्चा जब बिस्तर पर सोने जाये तो एक पत्थर को बच्चे के ऊपर से ओसारा करने के बाद किसी पानी से धोकर एक नियत स्थान पर रख देना चाहिये,जिस दिन खतरनाक नजर लगी होगी या कोई बीमारी परेशान करने वाली होगी,वह पत्थर अपने स्थान पर नही मिलेगा,अथवा टूटा मिलेगा।

धन एक गौड साधन है,बिना धन के ज्ञानी व्यक्ति भी बेकार लगता है,बिना धन के किसी प्रकार की शक्ति भी आस्तित्वहीन होती है,आज के युग में जिसे देखो धन की तरफ़ भाग रहा है,और धन के लिये कितने ही गलत काम किये जा रहे है,भाई भाई का दुश्मन बना बैठा है,बाप बेटे को धन के लिये छोड देता है,पत्नी धन के लिये पति की हत्या करवा देती है,आदि तरीके लोग धन के लिये अपना रहे है,अगर धन को ईश्वरीय शक्ति से प्राप्त किया जाये,तो वह धन अधिक स्थाई और अच्छे कामों में खर्च होने वाला होता है,और जो भी खर्चा किया जाता है वह मानसिक और शारीरिक दोनो प्रकार के सुख देता है,तामसी कारणों से लोगों को लूट खसोट कर प्राप्त किया जाने वाला धन हमेशा बुरे कामों में ही खर्च होता है,धन तो खर्च होता ही है,लेकिन हमेशा के लिये दुखदायी भी हो जाता है। सही तरीके से और ईमानदारी से धन कमाने के लिये ईश्वरीय शक्ति की जरूरत पडती है,ईश्वरीय शक्ति को प्राप्त करने के लिये ईश्वर में आस्था बनानी पडती है,और आस्था बनाने के लिये नियमित रूप से उपाय करने पडते है,नियमित रूप से उपाय करने के लिये अपने को प्रयासरत रखना पडता है। आइये आपको कुछ सहज में ही ईश्वरीय शक्तियों से धन प्राप्त करने के तरीके बता देता हूँ,इस प्रकार से प्राप्त किये जाने वाले धन को प्रयोग करने के बाद आपको कितनी शांति और समृद्धि मिलती है,आपको खुद को पता चल जायेगा। प्रयास के लिये तीन बातों का ख्याल रखना भी जरूरी है कि इन्सान को तीन तरह का प्रयास सदैव जारी रखना चाहिये,एक तो अपनी मानवीय शक्ति को सहेज कर रखना,दूसरे जो भी भौतिक साधन अपने पास है,उनका प्रयोग करते रहना,और तीसरा प्रयास ईश्वर से दैविक शक्ति को प्राप्त करने के बाद उसका प्रयोग करते रहना।

पहला उपाय

आप अपने निवास स्थान में उत्तर-पूर्व दिशा में एक साफ़ जगह पर स्थान चुन लीजिये,उस स्थान को गंदगी आदि से मुक्त कर लीजिये,फ़िर एक साफ़ लकडी का पाटा उस स्थान पर रख लीजिये,और एक चमेली के तेल की सीसी,पचास मोमबत्ती सफ़ेद और पचास मोमबत्ती हरी और एक माचिस लाकर रख लीजिये। अपना एक समय चुन लीजिये जिस समय आप जरूर फ़्री रहते हों,उस समय में आप घडी मिलाकर ईश्वर से धन प्राप्त करने के उपाय करना शुरु कर दीजिये। पाटे को पानी और किसी साफ़ कपडे से साफ़ करिये,एक हरी मोमबत्ती और एक सफ़ेद मोमबत्ती दोनो को चमेली के तेल में डुबोकर नहला लीजिये,दोनो को एक माचिस की तीली जलाकर उनके पैंदे को गर्म करने के बाद एक दूसरे से नौ इंच की दूरी पर बायीं (लेफ़्ट) तरफ़ हरी मोमबत्ती और दाहिनी (राइट) तरफ़ सफ़ेद मोमबत्ती पाटे पर चिपका दीजिये। दुबारा से माचिस की तीली जलाकर पहले हरी मोमबत्ती को और फ़िर सफ़ेद मोमबत्ती को जला दीजिये,दोनो मोमबत्तिओं को देखकर मानसिक रूप से प्रार्थना कीजिये "हे धन के देवता कुबेर ! मुझे धन की अमुक (जिस काम के लिये धन की जरूरत हो उसका नाम) काम के लिये जरूरत है,मुझे ईमानदारी से धन को प्राप्त करने में सहायता कीजिये",और प्रार्थना करने के बाद मोमबत्ती को जलता हुआ छोड कर अपने काम में लग जाइये। दूसरे दिन अगर मोमबत्ती पूरी जल गयी है,तो उस जले हुये मोम को वहीं पर लगा रहने दें,और नही जली है तो वैसी ही रहने दें,दूसरी मोमबत्तियों को पहले दिन की तरह से ले लीजिये,और पहले जली हुयी मोमबत्तियों से एक दूसरी के नजदीक लगाकर जलाकर पहले दिन की तरह से वही प्रार्थना करिये,इस तरह से धीरे धीरे मोमबत्तिया एक दूसरे की पास आती चलीं जायेगी,जितनी ही मोमबत्तियां पास आती जायेंगी,धन आने का साधन बनता चला जायेगा,और जैसे ही दोनो मोमबत्तियां आपस में सटकर जलेंगी,धन प्राप्त हो जायेगा। जब धन प्राप्त हो जाये तो पास के किसी धार्मिक स्थान पर या पास की किसी बहती नदी में उस मोमबत्तियों के पिघले मोम को लेजाकर श्रद्धा से रख आइये या बहा दीजिये,जो भी श्रद्धा बने गरीबों को दान कर दीजिये,ध्यान रखिये इस प्रकार से प्राप्त धन को किसी प्रकार के गलत काम में मत प्रयोग करिये,अन्यथा दुबारा से धन नही आयेगा।

दूसरा उपाय

दूसरे प्रकार के उपाय में कुछ धन पहले खर्च करना पडता है,इस उपाय के लिये आपको जो भी मुद्रा आपके यहां चलती है आप ले लीजिये जैसे रुपया चलता है तो दस दस के पांच नोट ले लीजिये डालर चलता है तो पांच डालर ले लीजिये आदि। बाजार से पांच नगीने जैसे गोमेद एमेथिस्ट जेड सुनहला गारनेट ले लीजिये,यह नगीने सस्ते ही आते है,साथ ही बाजार से समुद्री नमक भी लेते आइये। यह उपाय गुरुवार से शुरु करना है,अपने घर मे अन्दर एक ऐसी जगह को देखिये जहां पर लगातार सूर्य की रोशनी कम से कम तीन घंटे रहती हो,एक पोलीथिन के ऊपर पहले पांच नोट रखिये,उनके ऊपर एक एक नगीना रख दीजिये,और उन नगीनो तथा नोटों पर समुद्री नमक पीस कर थोडा थोडा छिडक दीजिये और उन्हे सूर्य की रोशनी में लगातार तीन घंटे के लिये छोड दीजिये। तीन घंटे बाद उन नोटों और नगीनों को समुद्री नमक को उसी पोलीथीन पर पर साफ़ कर लीजिये,और उस पोलीथिन वाले नमक को अपने घर के मुख्य दरवाजे पर डाल दीजिये,उन नगीनों और नोटों को अपने पर्स में रख लीजिये,अगर कोई तुम्हारा जान पहिचान का या कोई रिस्तेदार तुम्हारे पास आता है तो उसे एक नगीना कोई सा भी उसी गुरुवार को यह कहकर दीजिये कि यह नगीना भाग्य बढाने वाला है,और एक नोट उनमें से किसी बच्चे को बिस्कुट लाने के लिये या किसी प्रकार बिल चुकाने के काम में उसी दिन ले लीजिये,दूसरे गुरुवार को दूसरा नगीना किसी को फ़िर दान कर दीजिये और एक नोट किसी बच्चे या किसी प्रकार के घरेलू खर्चे में खर्च कर दीजिये,यही क्रम लगातार चार गुरुवार तक करना है,पांचवे गुरुवार को बचा हुआ एक नगीना और नोट अपनी तिजोरी या धन रखने वाले स्थान में रख लीजिये,आपके पास लगातार धन का प्रवाह शुरु हो जायेगा,उस धन में से 3% दान करते रहिये,जब तक वह नगीना और नोट आपके पास रहेगा,धन की कमी नही आ सकती है।

तीसरा उपाय

अधिकतर मामलों में व्यापार करते हुये धन की कमी होती है,लगातार प्रतिस्पर्धा के कारण लोग व्यवसाय को काटते है,और ग्राहकों को अपनी तरफ़ आकर्षित करते है,अपनी बिजनिस बढाने के लिये तांत्रिक उपाय करते है,और उन तांत्रिक उपायों को करने के बाद खुद तो उल्टा सीधा कमाते है,लेकिन अपने सामने वाले को भी बरबाद करते है तथा कुछ दिनों में उनके द्वारा किये गये तांत्रिक उपायों का असर खत्म हो जाने पर दिवालिया बन कर घूमने लगते है। अपने व्यवसाय स्थल से नकारात्मक ऊर्जा को हटाने और ग्राहकी बढाने का तरीका आपको बता रहा हूँ, इस तरीके को प्रयोग करने के बाद आप खुद ही महसूस करने लगेंगे ।
सोमवार के दिन किसी नगीने बेचने वाले से तीन गारनेट के नग खरीदकर लाइये,और रात को उन्हे किसी साफ़ कांच के बर्तन में पानी में डुबोकर खुले स्थान में रख दीजिये,उन नगों को लगातार नौ दिन तक यानी अगले मंगलवार तक उसी स्थान पर रखा रहने दीजिये,और मंगलवार की शाम को उन नगीनों को मय उस पानी के उठा लीजिये,बुधवार को उस पानी से नगीनों को अपने व्यवसाय वाले स्थान पर निकाल लीजिये और पानी को व्यवसाय स्थान के सभी कोनों और अन्धेरी जगह पर कैस काउन्टर और टेबिल ड्रावर के अन्दर छिडक दीजिये,तथा उन नगीनों को (तीनों को) अपनी टेबिल पर सजाकर सामने रख लीजिये,इस प्रकार से आपके व्यापारिक स्थान की नकारात्मक ऊर्जा बाहर चली जायेगी,और सकारात्मक ऊर्जा आने लगेगी । नगीनों को सम्भाल कर रखे,जिससे कोई उन्हे ले न जा सके।

सबसे बड़ा धन

अधिकतर पढाई करने के बाद सन्तान की नौकरी और व्यवसाय की चिन्ता हर माता पिता को होती है,बच्चे जवानी और अपनी उमंग के कारण उन्हे कौन से क्षेत्र में जाना है,उसे भूल जाते है,और दूसरों की देखा देखी अपनी वास्तविक नोलेज को भूलकर दूसरों के चक्कर में पड कर अपने को बरबाद कर लेते है,जब वे अपनी योग्यता को नहीं दिखा पाते है तो वे गलत कार्यों की तरफ़ बढ जाते है,और उनका जीवन जो सहज रास्ते पर जा रहा था वह कठिनाइयों की तरफ़ चला जाता है,दिग्भ्रम हो जाने पर लाख कोशिश करने पर भी बच्चे अपनी जगह पर वापस नही आ पाते है,और आते है तब तक उनका बहुमूल्य समय बरबाद हो गया होता है। सबसे पहले अपने बच्चे को सही रास्ते पर लाने के लिये या वह कहीं गलत रास्ते पर तो नही जा रहा है,का ध्यान उसी प्रकार से रखना चाहिये जैसे एक माली अपने पेड को संभालता है,कब उसे पानी देना है कब उसमें खाद देनी है,कही जंगली जानवर उस पेड को खत्म तो नही कर रहा है,कहीं कोई बीमारी पेड को तो नही लग रही है,कहीं कोई खरपतवार उस पेड के साथ तो नही उग रहा है जो उस पेड को दी जाने वाली खाद पानी को पेड तक पहुंचने ही नही देना चाहता हो,आदि बातें ध्यान में रखने पर बच्चे को सही दिशा तक ले जाया सकता है। बच्चे को सही रास्ते पर ले जाने के लिये वैदिक रूप से कुछ उपाय बताये गये है,उनको आप लोगों के लिये लिख रहा हूँ।
रात को सोते समय बच्चे के सिरहाने उसकी दाहिनी तरफ़ पानी का एक लोटा या गिलास रखना चाहिये,जिससे रात को सोते समय कुविचार उसके सुषुप्त मस्तिक पर असर नही दे पायें।
बच्चे के जगने पर उसके पास जरूर उपस्थित रहें,जितना बच्चा जगने के बाद आपको देखेगा,उतना ही वह दिन भर आपकी तस्वीर को वह अपने दिमाग में रखेगा,अधिक समय तक आपको अपने सामने पाने पर वह कभी आपको अलग नही कर पायेगा,और गल्ती करने पर आपकी ही तस्वीर उसके दिमाग में आकर उसे गलत काम से रोकेगी।
बच्चे को अपने हाथ से खाना परोसना चाहिये,बनाया चाहे किसी ने भी हो,उसे बच्चे की रुचि के अनुसार अगर आपके हाथ से परोसा गया है तो वह उसके शरीर में उसी तरह से लगेगा जिस प्रकार से बचपन में माँ का दूध लगता है।
बच्चे को दूसरों की नजर जरूर लगती है,चाहे वह अपने ही घर वालों की क्यों न हो,शाम को बच्चा जब बिस्तर पर सोने जाये तो एक पत्थर को बच्चे के ऊपर से ओसारा करने के बाद किसी पानी से धोकर एक नियत स्थान पर रख देना चाहिये,जिस दिन खतरनाक नजर लगी होगी या कोई बीमारी परेशान करने वाली होगी,वह पत्थर अपने स्थान पर नही मिलेगा,अथवा टूटा मिलेगा।

क्या है बीज मंत्रो का रहस्य????

 जय हो बाबा हनुमान जी की जय हो...




हमारे भारत वर्ष में अक्षर पूजा की मान्यता रही है,अक्षरों को मूर्तियों में उकेर कर और उनके रूप को सजाकर विभिन्न नाम दिये गये है। समय की धारा में मूर्ति को ही भगवान मान लिया गया और उन्ही की श्रद्धा से पूजा की जाने लगी,हनुमान जी की पूजा का अर्थ भी यही लिया गया। अक्षर "ह" को सजाकर और ब्रह्मविद्या से जोड कर देखा जाये तो "हं" की उत्पत्ति होती है। मुँह को खोलने के बाद ही अक्षर "ह" का उच्चारण किया जा सकता है। अक्षर "हं" को उच्चारित करते समय नाक और मुंह के अलावा नाभि से लेकर सिर के सर्वोपरि भाग में उपस्थित ब्रह्मरन्ध तक हवा का संचार हो जाता है। "हं हनुमतये नम:" का जाप करते करते गला जीभ और व्यान अपान सभी वायु निकल कर शरीर से बाहर हो जाती हैं। इसी प्रकार मारक अक्षर "क" का सम्बोधन करने पर और बीजाक्षर "क्रीं" को सजाने पर मारक शक्ति काली का रूप सामने आता है,लेकिन बीज "क्रां" को सजाने पर पर्वत को धारण किये हुये हनुमान जी का रूप सामने आजाता है,ग्रहों के बीजाक्षरों को उच्चारण करने पर     उन्ही अक्षरों के प्रयोग को सकारात्मक,नकारात्मक और द्विशक्ति बीजों का उच्चारण किया जाता है। जैसे मंगल जिनके देवता स्वयं हनुमान जी है,के बीजात्मक मंत्र के लिये "ऊँ क्रां क्रीं क्रौं स: भोमाय नम:" का उच्चारण किया जाता है,इस बीज मंत्र में "क्र" आक्रामक रूप में सामने होता है,बडे आ की मात्रा लगाने पर समर्थ होता है और बिन्दु का प्रयोग करने पर ब्रह्माण्डीय शक्तियों का प्रवेश होता है।

 इसी प्रकार से अगर शिव जी के मंत्र को जपा जाता है तो "ऊँ नम: शिवाय" का जाप किया जाता है,अक्षर "श" को ध्यानपूर्वक देखने पर बैठे हुये भगवान शिव का रूप सामने आता है,लेकिन जबतक "इ" की मात्रा नही लगती है,तब तक शब्द "शव" ही रहता है,इ की मात्रा लगते ही "शिव" शक्ति से पूर्ण हो जाता है,शनि देव का रंग काला है और ग्रहों के लिये इनका प्रयोग शक्ति वाले श का प्रयोग किया गया है,अगर शनि के बीज मंत्र को ध्यान से देखें तो "शं" बीज का प्रयोग किया गया है,"ऊँ शं शनिश्चराय नम:" का जाप करने पर भगवान शनि के द्वारा दिये गये कठिन समय को आराम से निकाला जा सकता है।

 लेकिन अक्षर "शं" को साकार रूप में सजाने पर मुरली बजाते हुये भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति भी मिलती है,और उस मूर्ति का रंग भी काला है,वृंदावन में कोकिलावन की उपस्थिति इसी बात का द्योतक मानी जा सकती है। शब्द हरि को अगर सजा दिया जाये तो लिटाकर रखने पर सागर के अन्दर लेटी हुयी भगवान विष्णु की प्रतिमा को माना जा सकता है। "श्रीं" शब्द को सजाकर देखा जाये तो लक्ष्मी जी का रूप साक्षात देखा जा सकता है।

 ह्रीं को सजाकर देखने पर माता सरस्वती को देखा जा सकता है,इसी प्रकार से विभिन्न अक्षरों को सजाकर देखने पर उन भगवान के दर्शन होते है।

ॐ ओर स्वास्तिक का महत्व है क्या अपने जीवन मे

आईये जानते है ऊँ और स्वास्तिक का महत्व


स्वास्तिक भारतीयों में चाहे वे वैदिक मतालम्बी हों या सनातनी हो या जैन मतालम्बी,ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र सभी मांगलिक कार्यों जैसे विवह आदि संस्कार घर के अन्दर कोई भी मांगलिक कार्य होने पर "ऊँ" और स्वातिक का दोनो का अथवा एक एक का प्रयोग किया जाता है। इन दोनो का प्रयोग करने का तरीका यह जरूरी नही है कि वह पढे लिखे या विद्वान संगति में ही देखने को मिलता हो,यह किसी भी ग्रामीण या शहरी संस्कृति में देखने को मिल जाता है। किसी के घर में मांगलिक कार्य होते है तो दरवाजे पर लिखा जाता है,किसी मंदिर में जाते है तो उसके दरवाजे पर यह लिखा मिलता है,किसी प्रकार की नई लिखा पढी की जाती है तो शुरु में इन दोनो को या एक को ही प्रयोग में लाया जाता है। "ऊँ" के अन्दर तीन अक्षरों का प्रयोग किया जाता है,"अ उ म" इन तीनो अक्षरों में अ से अज यानी ब्रह्मा जो ब्रह्माण्ड के निर्माता है,सृष्टि का बनाने का काम जिनके पास है,उ से उनन्द यानी विष्णुजी जो ब्रह्माण्ड के पालक है और सृष्टि को पालने का कार्य करते है, म से महेश यानी भगवान शिवजी,जो ब्रह्माण्ड में बदलाव के लिये पुराने को नया बनाने के लिये विघटन का कार्य करते है। वेदों में ऊँ को प्रणव की संज्ञा दी गयी है,जब भी किसी वेद मंत्र का उच्चारण होता है तो ऊँकार से ही शुरु किया जाता है,स्वास्तिक को चित्र के रूप में भी बनाया जाता है और लिखा भी जाता है जैसे "स्वास्ति न इन्द्र:" आदि.

हिन्दू समाज में किसी भी शुभ संस्कार में स्वास्तिक का अलग अलग तरीके से प्रयोग किया जाता है,बच्चे का पहली बार जब मुंडन संस्कार किया जाता है तो स्वास्तिक को बुआ के द्वारा बच्चे के सिर पर हल्दी रोली मक्खन को मिलाकर बनाया जाता है,स्वास्तिक को सिर के ऊपर बनाने का अर्थ माना जाता है कि धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों का योगात्मक रूप सिर पर हमेशा प्रभावी रहे,स्वास्तिक के अन्दर चारों भागों के अन्दर बिन्दु लगाने का मतलब होता है कि व्यक्ति का दिमाग केन्द्रित रहे,चारों तरफ़ भटके नही,वृहद रूप में स्वास्तिक की भुजा का फ़ैलाव सम्बन्धित दिशा से सम्पूर्ण इनर्जी को एकत्रित करने के बाद बिन्दु की तरफ़ इकट्ठा करने से भी माना जाता है,स्वास्तिक का केन्द्र जहाँ चारों भुजायें एक साथ काटती है,उसे सिर के बिलकुल बीच में चुना जाता है,बीच का स्थान बच्चे के सिर में परखने के लिये जहाँ हड्डी विहीन हिस्सा होता है और एक तरह से ब्रह्मरंध के रूप में उम्र की प्राथमिक अवस्था में उपस्थित होता है और वयस्क होने पर वह हड्डी से ढक जाता है,के स्थान पर बनाया जाता है। स्वास्तिक संस्कृत भाषा का अव्यय पद है,पाणिनीय व्याकरण के अनुसार इसे वैयाकरण कौमुदी में ५४ वें क्रम पर अव्यय पदों में गिनाया गया है। यह स्वास्तिक पद ’सु’ उपसर्ग तथा ’अस्ति’ अव्यय (क्रम ६१) के संयोग से बना है,इसलिये ’सु+अस्ति=स्वास्ति’ इसमें ’इकोयणचि’सूत्र से उकार के स्थान में वकार हुआ है। ’स्वास्ति’ में भी ’अस्ति’ को अव्यय माना गया है और ’स्वास्ति’ अव्यय पद का अर्थ ’कल्याण’ ’मंगल’ ’शुभ’ आदि के रूप में प्रयोग किया जाता है। जब स्वास्ति में ’क’ प्रत्यय का समावेश हो जाता है तो वह कारक का रूप धारण कर लेता है और उसे ’स्वास्तिक’ का नाम दे दिया जाता है। स्वास्तिक का निशान भारत के अलावा विश्व में अन्य देशों में भी प्रयोग में लाया जाता है,जर्मन देश में इसे राजकीय चिन्ह से शोभायमान किया गया है,अन्ग्रेजी के क्रास में भी स्वास्तिक का बदला हुआ रूप मिलता है,हिटलर का यह फ़ौज का निशान था,कहा जाता है कि वह इसे अपनी वर्दी पर दोनो तरफ़ बैज के रूप में प्रयोग करता था,लेकिन उसके अंत के समय भूल से बर्दी के बेज में उसे टेलर ने उल्टा लगा दिया था,जितना शुभ अर्थ सीधे स्वास्तिक का लगाया जाता है,उससे भी अधिक उल्टे स्वास्तिक का अनर्थ भी माना जाता है। स्वास्तिक की भुजाओं का प्रयोग अन्दर की तरफ़ गोलाई में लाने पर वह सौम्य माना जाता है,बाहर की तरफ़ नुकीले हथियार के रूप में करने पर वह रक्षक के रूप में माना जाता है। काला स्वास्तिक शमशानी शक्तियों को बस में करने के लिये किया जाता है,लाल स्वास्तिक का प्रयोग शरीर की सुरक्षा के साथ भौतिक सुरक्षा के प्रति भी माना जाता है,डाक्टरों ने भी स्वास्तिक का प्रयोग आदि काल से किया है,लेकिन वहां सौम्यता और दिशा निर्देश नही होता है। केवल धन (+) का निशान ही मिलता है। पीले रंग का स्वास्तिक धर्म के मामलों में और संस्कार के मामलों में किया जाता है,विभिन्न रंगों का प्रयोग विभिन्न कारणों के लिये किया जाता है।
ऊँ परमात्मा वाची कहा गया है,ऊँ को मंगल रूप में जाना गया है,जैन धर्म के अनुसार ऊँ पंच परमेष्ठीवाचक की उपाधि से विभूषित है। णमोकार मंत्र के पहले इसे प्रयोग किया गया है। ऊँ एक बीजाक्षर की भांति है,इसके मात्र उच्चारण करने से ही भक्ति महिमा का निष्पादन हो जाता है। इसका रूप दोनो आंखों के बीच में आंखों को बन्द करने के बाद सुनहले रूप में कल्पित करते रहने से यह सहज योग का रूप सामने लाना शुरु कर देता है,और उन अनुभूतियों की तरफ़ मनुष्य जाना शुरु कर देता है जिन्हे वह कभी सोच भी नही सकता है।
ऊँ कार बिन्दु संयुक्तं नित्यं ध्यायन्ति योगिना:।
कामदं मोक्षदं चैव ऊँकाराय नमो नम:॥

जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश,,

मानस के कुछ सिद्ध मंत्र जो हर काम करे चुटकी मे

 कई शास्त्रो मे कई वर्णित मंत्र है जिसमे श्री रामचरित मानस के मंत्रो मे शाबर का प्रभाव अति त्तर्वि दिखाया गया है

श्री रामचरित मानस के सिद्ध 'मन्त्र'

सबसे पहले नियम-
मानस के दोहे-चौपाईयों को सिद्ध करने का विधान यह है कि किसी भी शुभ दिन की रात्रि को दस बजे के बाद अष्टांग हवन के द्वारा मन्त्र सिद्ध करना चाहिये। फिर जिस कार्य के लिये मन्त्र-जप की आवश्यकता हो, उसके लिये नित्य जप करना चाहिये। वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को साक्षी बनाकर श्रद्धा से जप करना चाहिये।
अष्टांग हवन सामग्री
१॰ चन्दन का बुरादा, २॰ तिल, ३॰ शुद्ध घी, ४॰ चीनी, ५॰ अगर, ६॰ तगर, ७॰ कपूर, ८॰ शुद्ध केसर, ९॰ नागरमोथा, १०॰ पञ्चमेवा, ११॰ जौ और १२॰ चावल।
जानने की बातें-

जिस उद्देश्य के लिये जो चौपाई, दोहा या सोरठा जप करना बताया गया है, उसको सिद्ध करने के लिये एक दिन हवन की सामग्री से उसके द्वारा (चौपाई, दोहा या सोरठा) १०८ बार हवन करना चाहिये। यह हवन केवल एक दिन करना है। मामूली शुद्ध मिट्टी की वेदी बनाकर उस पर अग्नि रखकर उसमें आहुति दे देनी चाहिये। प्रत्येक आहुति में चौपाई आदि के अन्त में 'स्वाहा' बोल देना चाहिये।
प्रत्येक आहुति लगभग पौन तोले की (सब चीजें मिलाकर) होनी चाहिये। इस हिसाब से १०८ आहुति के लिये एक सेर (८० तोला) सामग्री बना लेनी चाहिये। कोई चीज कम-ज्यादा हो तो कोई आपत्ति नहीं। पञ्चमेवा में पिश्ता, बादाम, किशमिश (द्राक्षा), अखरोट और काजू ले सकते हैं। इनमें से कोई चीज न मिले तो उसके बदले नौजा या मिश्री मिला सकते हैं। केसर शुद्ध ४ आने भर ही डालने से काम चल जायेगा।
हवन करते समय माला रखने की आवश्यकता १०८ की संख्या गिनने के लिये है। बैठने के लिये आसन ऊन का या कुश का होना चाहिये। सूती कपड़े का हो तो वह धोया हुआ पवित्र होना चाहिये।
मन्त्र सिद्ध करने के लिये यदि लंकाकाण्ड की चौपाई या दोहा हो तो उसे शनिवार को हवन करके करना चाहिये। दूसरे काण्डों के चौपाई-दोहे किसी भी दिन हवन करके सिद्ध किये जा सकते हैं।
सिद्ध की हुई रक्षा-रेखा की चौपाई एक बार बोलकर जहाँ बैठे हों, वहाँ अपने आसन के चारों ओर चौकोर रेखा जल या कोयले से खींच लेनी चाहिये। फिर उस चौपाई को भी ऊपर लिखे अनुसार १०८ आहुतियाँ देकर सिद्ध करना चाहिये। रक्षा-रेखा न भी खींची जाये तो भी आपत्ति नहीं है। दूसरे काम के लिये दूसरा मन्त्र सिद्ध करना हो तो उसके लिये अलग हवन करके करना होगा।
एक दिन हवन करने से वह मन्त्र सिद्ध हो गया। इसके बाद जब तक कार्य सफल न हो, तब तक उस मन्त्र (चौपाई, दोहा) आदि का प्रतिदिन कम-से-कम १०८ बार प्रातःकाल या रात्रि को, जब सुविधा हो, जप करते रहना चाहिये।
कोई दो-तीन कार्यों के लिये दो-तीन चौपाइयों का अनुष्ठान एक साथ करना चाहें तो कर सकते हैं। पर उन चौपाइयों को पहले अलग-अलग हवन करके सिद्ध कर लेना चाहिये।
१॰ विपत्ति-नाश के लिये
"राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।।"
२॰ संकट-नाश के लिये
"जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।।
जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।"
३॰ कठिन क्लेश नाश के लिये
"हरन कठिन कलि कलुष कलेसू। महामोह निसि दलन दिनेसू॥"
४॰ विघ्न शांति के लिये
"सकल विघ्न व्यापहिं नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही॥"
५॰ खेद नाश के लिये
"जब तें राम ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए॥"
६॰ चिन्ता की समाप्ति के लिये
"जय रघुवंश बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृशानू॥"
७॰ विविध रोगों तथा उपद्रवों की शान्ति के लिये
"दैहिक दैविक भौतिक तापा।राम राज काहूहिं नहि ब्यापा॥"
८॰ मस्तिष्क की पीड़ा दूर करने के लिये
"हनूमान अंगद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भाजे।।"
९॰ विष नाश के लिये
"नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।"
१०॰ अकाल मृत्यु निवारण के लिये
"नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि बाट।।"
११॰ सभी तरह की आपत्ति के विनाश के लिये / भूत भगाने के लिये
"प्रनवउँ पवन कुमार,खल बन पावक ग्यान घन।
जासु ह्रदयँ आगार, बसहिं राम सर चाप धर॥"
१२॰ नजर झाड़ने के लिये
"स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी।।"
१३॰ खोयी हुई वस्तु पुनः प्राप्त करने के लिए
"गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।।"
१४॰ जीविका प्राप्ति केलिये
"बिस्व भरण पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत जस होई।।"
१५॰ दरिद्रता मिटाने के लिये
"अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद धन दारिद दवारि के।।"
१६॰ लक्ष्मी प्राप्ति के लिये
"जिमि सरिता सागर महुँ जाही। जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।
तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ।।"
१७॰ पुत्र प्राप्ति के लिये
"प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।'
१८॰ सम्पत्ति की प्राप्ति के लिये
"जे सकाम नर सुनहि जे गावहि।सुख संपत्ति नाना विधि पावहि।।"
१९॰ ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त करने के लिये
"साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ।।"
२०॰ सर्व-सुख-प्राप्ति के लिये
सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई। लहहिं भगति गति संपति नई।।
२१॰ मनोरथ-सिद्धि के लिये
"भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि।
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि।।"
२२॰ कुशल-क्षेम के लिये
"भुवन चारिदस भरा उछाहू। जनकसुता रघुबीर बिआहू।।"
२३॰ मुकदमा जीतने के लिये
"पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।"
२४॰ शत्रु के सामने जाने के लिये
"कर सारंग साजि कटि भाथा। अरिदल दलन चले रघुनाथा॥"
२५॰ शत्रु को मित्र बनाने के लिये
"गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।।"
२६॰ शत्रुतानाश के लिये
"बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई॥"
२७॰ वार्तालाप में सफ़लता के लिये
"तेहि अवसर सुनि सिव धनु भंगा। आयउ भृगुकुल कमल पतंगा॥"
२८॰ विवाह के लिये
"तब जनक पाइ वशिष्ठ आयसु ब्याह साजि सँवारि कै।
मांडवी श्रुतकीरति उरमिला, कुँअरि लई हँकारि कै॥"
२९॰ यात्रा सफ़ल होने के लिये
"प्रबिसि नगर कीजै सब काजा। ह्रदयँ राखि कोसलपुर राजा॥"
३०॰ परीक्षा / शिक्षा की सफ़लता के लिये
"जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥
मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥"
३१॰ आकर्षण के लिये
"जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू॥"
३२॰ स्नान से पुण्य-लाभ के लिये
"सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग।
लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग।।"
३३॰ निन्दा की निवृत्ति के लिये
"राम कृपाँ अवरेब सुधारी। बिबुध धारि भइ गुनद गोहारी।।
३४॰ विद्या प्राप्ति के लिये
गुरु गृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल विद्या सब आई॥
३५॰ उत्सव होने के लिये
"सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं।
तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु।।"
३६॰ यज्ञोपवीत धारण करके उसे सुरक्षित रखने के लिये
"जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।
पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग।।"
३७॰ प्रेम बढाने के लिये
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥
३८॰ कातर की रक्षा के लिये
"मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ। एहिं अवसर सहाय सोइ होऊ।।"
३९॰ भगवत्स्मरण करते हुए आराम से मरने के लिये
रामचरन दृढ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग ।
सुमन माल जिमि कंठ तें गिरत न जानइ नाग ॥
४०॰ विचार शुद्ध करने के लिये
"ताके जुग पद कमल मनाउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ।।"
४१॰ संशय-निवृत्ति के लिये
"राम कथा सुंदर करतारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी।।"
४२॰ ईश्वर से अपराध क्षमा कराने के लिये
" अनुचित बहुत कहेउँ अग्याता। छमहु छमा मंदिर दोउ भ्राता।।"
४३॰ विरक्ति के लिये
"भरत चरित करि नेमु तुलसी जे सादर सुनहिं।
सीय राम पद प्रेमु अवसि होइ भव रस बिरति।।"
४४॰ ज्ञान-प्राप्ति के लिये
"छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।"
४५॰ भक्ति की प्राप्ति के लिये
"भगत कल्पतरु प्रनत हित कृपासिंधु सुखधाम।
सोइ निज भगति मोहि प्रभु देहु दया करि राम।।"
४६॰ श्रीहनुमान् जी को प्रसन्न करने के लिये
"सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपनें बस करि राखे रामू।।"
४७॰ मोक्ष-प्राप्ति के लिये
"सत्यसंध छाँड़े सर लच्छा। काल सर्प जनु चले सपच्छा।।"
४८॰ श्री सीताराम के दर्शन के लिये
"नील सरोरुह नील मनि नील नीलधर श्याम ।
लाजहि तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम ॥"
४९॰ श्रीजानकीजी के दर्शन के लिये
"जनकसुता जगजननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की।।"
५०॰ श्रीरामचन्द्रजी को वश में करने के लिये
"केहरि कटि पट पीतधर सुषमा सील निधान।
देखि भानुकुल भूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान।।"
५१॰ सहज स्वरुप दर्शन के लिये
"भगत बछल प्रभु कृपा निधाना। बिस्वबास प्रगटे भगवाना।।"

बाकी इन सभी मंत्रो का पुणे मनोयोग से जप करे बाकी राम से बड़ा राम का नाम मतलब राम नाम ही काफी है जीने के लिए..
जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश

रामायण का महामंत्र जाने कोनसा है

 रामायण का सबसे बडा महा मंत्र


रामायण का सबसे बडा मंत्र मिल जाये तो संसार की कोई भी निधि उसके सामने मायना नही रखती है,निधि को तो चोर ले जायेंगे,लुटेरे लूट लेंगे,लेकिन अगर यह निधि अगर ह्रदय में निवास करते है,तो फ़िर से वापस सभी निधियां आ जायेंगी.रामायण के सबसे बडे मंत्र का बखान श्री गोस्वामी तुलसीदास जी ने कितनी खूबशूरती से किया है:-

"राम रमेति रमेति रमो,रामेति मनोरमे,सहस्त्र नाम तातुल्यम राम नाम वरानने"

इस मंत्र को ह्रदय में रखने के बाद संसार की सभी अमूल्य निधियां मनुष्य की दासी बन जायेंगी,और उसे किसी प्रकार का डर,भय,गरीबी,अपमान,आदि किसी भी बात को सहन नही करना पडेगा.इस मंत्र को मैने अपनाया है,और आज भी मेरे ह्रदय में निवास करता है,इस मंत्र को मैने साक्षात प्रभावी माना है,इसका एक प्रमाण आपके सामने कभी प्रस्तुत करेगे
फिलहाल आप सभी इसका अनुभव प्राप्त करे
जय माँ जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश,,