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Friday, 23 September 2022
Jai Mahakaal: इस नवरात्रि में क्या उपाय करें और क्या है मुर्हुत ...
Monday, 27 June 2022
Jai Mahakaal: गुप्त नवरात्रि कब से है और क्या उपाय करें???
Thursday, 27 January 2022
कब से है गुप्त नवरात्रि और क्या करें,,
मित्रों जैसा की आप सभी जानते हैं कि 2 फरवरी से गुप्त नवरात्रि शुरू होने वाली है जो कि 2 फरवरी से लेकर 10 फरवरी तक है ये माँ के गुप्त नवरात्रि माघ माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से आरंभ होते है माघ माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 1 फरवरी दिन मंगलवार से आरंभ होगी ,परंतु प्रतिपदा का उदया तिथि 2 फरवरी दिन बुधवार पड़ रही है ,इसलिए पहले नवरात्र का व्रत 2 फरवरी दिन बुधवार को रखा जाएगा ,जो भक्त घट स्थापना करेंगे उनके लिए घट स्थापना करने का शुभ समय 2 फरवरी दिन बुधवार को सुबह 7 बजकर 9 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 31 मिनट तक शुभ है बाकी आप सभी को ज्ञात है कि वर्ष में एक शाकंभरी नवरात्रि और वर्ष में चार नवरात्रि होती है दो प्रत्यक्ष और दो गुप्त मित्रों इन चार नवरात्री में से दो को प्रत्यक्ष नवरात्र कहा गया है ,क्योंकि इनमें गृहस्थ और संन्यासी और साधक जीवन वाले साधना पूजन करते हैं लेकिन जो दो गुप्त नवरात्रि होते हैं, उनमें
आमतौर पर साधक सन्यासी, सिद्धि प्राप्त करने वाले, तांत्रिक-मांत्रिक और कुछ ग्रहस्थ साधक जो अपनी मर्यादा में रहते हैं वो देवी या अपने आराध्य देवी देवताओं की साधना उपासना करते हैं, हालांकि चारों नवरात्रि में देवी और आराध्य देव या देवी सिद्धि प्रदान करने वाली होती हैं लेकिन गुप्त नवरात्रि के दिनों में देवी की दस महासिद्धविधाएं की पूजा विशेष रुप से की जाती है, जिनका तंत्र शक्तियों और सिद्धियों में विशेष महत्व है जबकि प्रत्यक्ष नवरात्रि में सांसारिक जीवन से जुड़ी हुई चीजों को प्रदान करने वाली देवी देवताओं और मां दुर्गा के 9 रूपों की पूजा की जाती है हालांकि इसमें भी महासिद्धविधा और भैरव बाबा की कृपा प्राप्त की जा सकती है गुप्त नवरात्रि में अगर आमजन चाहें तो किसी विशेष इच्छा की पूर्ति या सिद्धि के लिए गुप्त नवरात्रि में साधना करके मनोरथ की पूर्ण कर सकते हैं और जो गुप्त नवरात्रि को गुप्त रहकर भी करते हैं मर्यादा पुर्वक तो उसको जन्म मरण से भी मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है और मित्रों गुप्त नवरात्रि के बारे में तो यहां तक कहा जाता है कि के जीवन में अपने आराध्य और सिद्ध विधा के जो कडे नियमों का पालन करते हैं उनको दुर्लभ सिद्धियां और अपने आराध्य की कृपा प्राप्त के प्रबल योग बन जाते हैं , मित्रों गुप्त नवरात्रि के दौरान, तंत्र मंत्र साधना में विश्वास करने वाले, अपने गुप्त तांत्रिक क्रियाकलापों के साथ-साथ सामान्य नवरात्रि की तरह ही उपवास करते हैं और अन्य अनुष्ठान करते हैं, 9 दिनों तक अखंड ज्योति जलाई जाती है, कलश स्थापन या घट स्थापना करके देवी मां दुर्गा के सामने दुर्गा सप्तशती मार्ग और मार्खदेव पुराण का पाठ किया जाता है ,नवरात्रि के सभी दिनों में उपवास या सात्विक आहार या अल्पाहार का सेवन किया जाता है, इसलिए मित्रों ,,
Thursday, 13 January 2022
मकरसंक्रांति कब है और क्या उपाय करें
मित्रों जैसा कि आप सभी जानते हैं कि मकरसंक्रांति चौदह 14 तारीख को ही मनाया जाता है पर इस बार 14 और 15 जनवरी दोनों को मनायी जायेगी क्योंकि पंचांगों में सुर्य की राशि परिवर्तन 14 जनवरी को रात्रि आठ बजे बाद का दिखा रही है पंचांग अनुसार 15 जनवरी को मकरसंक्रांति मनायी जायेगी और मित्रों सुर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ ही मांगलिक कार्य जैसे ग्रहपवेश यज्ञोपवीत, मुंडन शादी विवाह आदि मांगलिक कार्यों का शुभारम्भ हो जायेगा एक नयी ऊर्जा का शुभारम्भ होगा और ईश्वर अपने भक्तों और साधकों साधु संतों को खरमास में की गयी पुजा हवन या कर है उनको यथोचित या अधिक फल प्राप्ति शुरू हो जायेगी ।
Saturday, 8 January 2022
शाकंभरी नवरात्रि कब से है और क्या है इसका महत्व,
शाकम्भरी नवरात्रि का महत्व
शाकम्भरी नवरात्रि में माँ शाकम्भरी की पूजा आराधना की जाती है.
माँ शाकम्भरी भी देवी दुर्गा का ही एक रूप है.
शाकम्भरी माता इस जगत के प्राणियों के लिए अन्न और भोजन का प्रबंध करती है.
शाकम्भरी नवरात्रि पौष शुक्ल अष्टमी तिथि से प्रारंभ होकर पौष पूर्णिमा को समाप्त होती है.
पौष पूर्णिमा को शाकम्भरी माता की जयंती मनाई जाती है.
माता शाकम्भरी की आराधना करने वाले को शाकम्भरी माँ की कृपा प्राप्त होती है.
जिस पर भी शाकम्भरी माता की कृपा रहती है उसे कभी भी अन्न की कमी नहीं रहती है.
शाकम्भरी नवरात्रि प्रत्येक वर्ष पौष महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है.
शाकम्भरी नवरात्रि को अन्य किन नामों से जाना जाता है?
शाकम्भरी नवरात्रि को शाकम्भरी अष्टमी, बनादा अष्टमी आदि नामों से जाना जाता है.
शाकम्भरी नवरात्रि प्रत्येक वर्ष पौष महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारम्भ होती है. इस नवरात्रि में माता शाकम्भरी की पूजा की जाती है. इस बार 2022 में दो शाकंभरी नवरात्रि है समय ,
पहली शाकम्भरी नवरात्रि –
शाकम्भरी नवरात्रि 2022 प्रारंभ 10 जनवरी 2022, सोमवार
शाकम्भरी नवरात्रि 2022 समाप्त 17 जनवरी 2022, सोमवार
दूसरी शाकम्भरी नवरात्रि –
शाकम्भरी नवरात्रि प्रारंभ 30 दिसम्बर 2022, शुक्रवार
शाकम्भरी नवरात्रि समाप्त 06 जनवरी 2023, शुक्रवार
देवी मां शाकंभरी उनके नाम से ज्ञात होता है जिसका अर्थ है - ‘शाक’ जिसका अर्थ है ‘सब्जी व शाकाहारी भोजन’ और ‘भारी’ का अर्थ है ‘धारक’। इसलिए सब्जियों, फलों और हरी पत्तियों की देवी के रूप में भी जाना जाता है और उन्हें फलों और सब्जियों के हरे परिवेश के साथ चित्रित किया जाता है। शाकंभरी देवी को चार भुजाओं और कही पर अष्टभुजाओं वाली के रुप में भी दर्शाया गया है। माँ शाकम्भरी को ही रक्तदंतिका, छिन्नमस्तिका, भीमादेवी, भ्रामरी और श्री कनकदुर्गा कहा जाता है।
माँ श्री शाकंभरी के देश मे अनेक पीठ है। लेकिन शक्तिपीठ केवल एक ही है जो सहारनपुर के पर्वतीय भाग मे है यह मंदिर उत्तर भारत के सबसे अधिक देखे जाने वाले मंदिरों मे से एक है और उत्तर भारत मे वैष्णो देवी के बाद दूसरा सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। उत्तर भारत की नौ देवियों मे शाकम्भरी देवी का नौंवा और अंतिम दर्शन माना जाता है। नौ देवियों मे माँ शाकम्भरी देवी का स्वरूप सर्वाधिक करूणामय और ममतामयी माँ का है
तंत्र-मंत्र के साधकों को अपनी सिद्धि के लिए खास माने जाने वाली शाकंभरी नवरात्रि 10 जनवरी से शुरू होने वाली है इन दिनों साधक वनस्पति की देवी मां शाकंभरी की आराधना करेंगे। मां शाकंभरी ने अपने शरीर से उत्पन्न शाक-सब्जियों, फल-मूल आदि से संसार का भरण-पोषण किया था। इसी कारण माता 'शाकंभरी' नाम से विख्यात हुईं।
वैसे तो वर्ष भर में चार नवरात्रि मानी गई है, आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में शारदीय नवरात्रि, चैत्र शुक्ल पक्ष में आने वाली चैत्र नवरात्रि, तृतीय और चतुर्थ नवरात्रि माघ और आषाढ़ माह में मनाई जाती है।
देशभर में मां शाकंभरी के तीन शक्तिपीठ हैं। पहला प्रमुख राजस्थान से सीकर जिले में उदयपुर वाटी के पास सकराय माताजी के नाम से स्थित है। दूसरा स्थान राजस्थान में ही सांभर जिले के समीप शाकंभर के नाम से स्थित है और तीसरा स्थान उत्तरप्रदेश के मेरठ के पास सहारनपुर में 40 किलोमीटर की दूर पर स्थित है।
तंत्र-मंत्र के साधकों को अपनी सिद्धि के लिए खास माने जाने वाली शाकंभरी नवरात्रि के इन दिनों में साधक वनस्पति की देवी मां शाकंभरी की आराधना करेंगे। मां शाकंभरी ने अपने शरीर से उत्पन्न शाक-सब्जियों, फल-मूल आदि से संसार का भरण-पोषण किया था। इसी कारण माता 'शाकंभरी' नाम से विख्यात हुईं।
शाकंभरी माताजी का प्रमुख स्थल अरावली पर्वत के मध्य सीकर जिले में सकराय माताजी के नाम से विश्वविख्यात हो चुका है। तंत्र-मंत्र के जानकारों की नजर में इस नवरात्रि को तंत्र-मंत्र की साधना के लिए अतिउपयुक्त माना गया है। इस नवरात्रि का समापन 17 जनवरी की पूर्णिमा के दिन होगा
ऐसे करें पूजा: पौष मास की अष्टमी तिथि को सुबह उठकर स्नान आदि कर लें। सबसे पहले गणेशजी की पूजा करें। फिर माता शाकम्भरी का ध्यान करें। मां की प्रतिमा या तस्वीर रखें। पवित्र गंगाजल का छिड़काव करें। मां के चारों तरफ ताजे फल और मौसमी सब्जियां रखें। संभव हो, तो माता शाकम्भरी के मंदिर में जाकर सपरिवार दर्शन करें। मां को पवित्र भोजन का प्रसाद चढ़ाएं। इसके बाद मां की आरती करें। जिनका मिथुन, कन्या, तुला, मकर और कुंभ लग्न है, उन्हें मां शाकम्भरी की पूजा अवश्य करनी चाहिए नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी,।
शाकंभरी नवरात्रि के 9 दिनों में नीचे लिखे मंत्रों का जाप करके मां दुर्गा की आराधना करके कोई भी साधक पूरा जीवन सुख से बिता सकता है। जीवन में धन और धान्य से परिपूर्ण रहने के लिए नवरात्रि के दिनों में इन मंत्रों का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।
देवी मां शाकंभरी के खास मंत्र-
* 'ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं भगवति माहेश्वरि अन्नपूर्णे स्वाहा।।
* 'ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं भगवति अन्नपूर्णे नम:।।'
* 'ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धनधान्य: सुतान्वित:। मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:।।'
इन मंत्रों को बतौर अनुष्ठान 10 हजार, 1.25 लाख जप कर दशांस हवन, तर्पण, मार्जन व ब्राह्मण भोजन कराएं।
नित्य 1 माला जपें। हवन सामग्री में तिल, जौ, अक्षत, घृत, मधु, ईख, बिल्वपत्र, शकर, पंचमेवा, इलायची आदि लें। समिधा, आम, बेल या जो उपलब्ध हो, उनसे हवन पूर्ण करके आप सुखदायी जीवन का लाभ उठा सकते हैं
पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार देवी शाकंभरी आदिशक्ति दुर्गा के अवतारों में एक हैं। दुर्गा के सभी अवतारों में से रक्तदंतिका, भीमा, भ्रामरी, शाकंभरी प्रसिद्ध हैं। दुर्गा सप्तशती के मूर्ति रहस्य में देवी शाकंभरी के स्वरूप का वर्णन निम्न मंत्र के अनुसार इस प्रकार किया गया है-
मंत्र- शाकंभरी नीलवर्णानीलोत्पलविलोचना।
मुष्टिंशिलीमुखापूर्णकमलंकमलालया।।
अर्थात- मां देवी शाकंभरी का वर्ण नीला है, नील कमल के सदृश ही इनके नेत्र हैं। ये पद्मासना हैं अर्थात् कमल पुष्प पर ही विराजती हैं। इनकी एक मुट्ठी में कमल का फूल रहता है और दूसरी मुट्ठी बाणों से भरी रहती है
नादान बालक की कलम से आज बस इतना ही बाकी फिर कभी,
जय मां जय बाबा महाकाल जय श्री राधे कृष्णा अलख आदेश🌹🙏🏻